HomeBrand Bihariशहादत वर्षगाँठ: वर्ष 1947 में बिहार की पहली राजनीतिक हत्या

शहादत वर्षगाँठ: वर्ष 1947 में बिहार की पहली राजनीतिक हत्या

शहादत का यह वक़्या है 28 मार्च 1947, के शाम के क़रीब 7 बजे का जब फतुहा से पटना की तरफ़ आती एक कार को खसरुपुर रोड पर रेल्वे क्रॉसिंग के पास तीन नौजवानों ने रोक लिया। तीनों चेहरे और हाव भाव से गोरख लग रहे थे अपने आप को INA का सेवनिवृत सैनिक बता रहे थे। तीन में से एक के हाथ में एक बंदूक़ था।

कार में एक 55 वर्षीय बुजुर्ग सवार थे जिनके पास एक शानदार राजनीतिक इतिहास और इतिहास विषय की ढेर सारी डिग्रीयों थी और उनके साथ झारियाँ कोयला खधान के मज़दूर नेता सधन गुप्ता थे। कार के ड्राइवर के हाथों में भी एक बंदूक़ था जो वहीं खड़ा था जबकि बुजुर्ग और नौजवानों के बीच झड़प अभी भी जारी थी।

शहादत:

झड़प के दौरान बुजुर्ग ने गोरखा नौजवान के हाथों से उसकी रायफल छिन ली। इसी बीच क्षेत्र के इग्ज़ेक्युटिव इंजीनियर एन वर्मा पहुँचे। बुजुर्ग उस गोरखा नौजवान को उसकी रायफल लौटाने को तैयार थे लेकिन इसके लिए उसे पटना स्थित INA के मुख्यालय तक साथ चलने की ज़िद्द कर रहे थे। लम्बी झड़प के बाद अंततः उस बुजुर्ग ने उक्त गोरखा नौजवान को उसकी रायफल वापस कर दी लेकिन रायफल मिलते ही उस गोरखा ने उस बुजुर्ग पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाई जिससे बुजुर्ग की वहीं मृत्यु हो गई।

शहादत की यह खबर पूरे पटना में आग की तरह फैली। घंटे भर के भीतर तमाम बड़े पुलिस अधिकारी के साथ साथ बिहार के प्रधानमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा, और के बी सहाय भी शहादत स्थल पर पहुँच चुके थे। शहादत हुए इस विभूति का नाम था प्रफ़ेसर अब्दुल बारी (1892-1947) जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के साथ साथ कई मज़दूर संगठनों के नेता भी थे। उत्तर प्रदेश, बंगाल समेत ओड़िसा के विधानसभा में इनकी शहादत पर शोकसभा का आयोजन हुआ और ओड़िसा के विधानसभा की कार्यवाही बीच में ही स्थगित कर दी गई। शहादत के इस शोक में टाटा ने भी अपने सभी कारख़ाने एक दिन के लिए बंद कर दिया था।

Gandhi at Abdul Bari
चित्र: प्रफ़ेसर अब्दुल बारी की शहादत पर पटना पहुँचे महात्मा गांधी। स्त्रोत: Alamy

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अगले दिन अर्थात् 29 मार्च 1947 को पटना शहर में उनकी शवयात्रा निकाली गई जिसमें महात्मा गांधी समेत बिहार और देश के सभी प्रमुख राष्ट्रवादी नेता शामिल हुए थे। अफ़वाह उड़ाई गई कि अब्दुल बारी की हत्या के पीछे कुछ कांग्रेसी नेताओं का हाथ था जो उनके द्वारा जमशेदपुर, धनबाद आदि में मज़दूर आंदोलन में सक्रियता से नाराज़ थे और उनकी बढ़ती लोकप्रियता से राजनीतिक तौर पर असुरक्षित भी महसूस कर रहे थे। उनकी शहादत के कुछ दिन पहले भी धनबाद में उनके उपर जानलेवा हमला हुआ था।

बिहार के विभूति:

महात्मा गांधी के करीबी अब्दुल बारी ने वर्ष 1917 में गांधीजी के चंपारन यात्रा के दौरान पटना में मेज़बानी कर रहे थे और गांधीजी के सभी बिहार यात्रा के दौरान गांधीजी के साथ रहे। वर्ष 1937 के बिहार प्रांतीय चुनाव में चंपारन से निर्वाचित होकर बिहार विधानसभा के न सिर्फ़ सदस्य बने बल्कि उपसभापति भी मनोनीत हुए। इसके पहले वो वर्ष 1921 में बिहार विद्यापीठ की स्थापना में अहम भूमिका निभा चुके थे।

प्रफ़ेसर अब्दुल बारी की शहादत के एक वर्ष के भीतर बिहार सरकार ने पटना के ठकुरवारी मार्ग का नाम बदलकर अब्दुल बारी पथ रख दिया। आज बिहार में इस सड़क के अलावा जमशेदपुर, जहानाबाद, सिंहभूम, आसनसोल आदि में कई स्थानों का नाम इनके नाम पर रखा गया है।

शहादत के समय प्रफ़ेसर अब्दुल बारी टाटा मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष थे। अब्दुल बारी से पहले सुभाष चंद्रा बोस वर्ष 1936 तक इसी टाटा मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष थे।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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