नेहरु-इंदिरा:
वर्ष 1947 से 1964 तक नेहरु के कार्यकाल के दौरान रुपए के मुक़ाबले डॉलर की क़ीमत एक रुपए प्रति डॉलर से बढ़कर 4.79 रुपए प्रति डॉलर हो गई। अर्थात् लगभग 17 वर्षों के नेहरु के कार्यकाल के दौरान डॉलर की क़ीमत में 3.79 रुपए की वृद्धि आई जिसका वार्षिक औसत मात्र 0.222 रुपए की थी। डॉलर की क़ीमत में इस वृद्धि का मुख्य कारण था पंचवर्षीय योजना के क्रियान्वयन के लिए नेहरु सरकार द्वारा विश्व के विभिन्न देशों से लिया गया क़र्ज़।
वर्ष 1962, 1965 और 1971 में पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध, 1966-67 का बिहार अकाल, और 1972 का महाराष्ट्र अकाल और 1973-74 की वैश्विक तेल संकट के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त अर्थिक बोझ बढ़ा जिससे भारतीय रुपया के मुक़ाबले डॉलर की क़ीमत फिर से वर्ष 1975 में बढ़कर 8.39 रुपए प्रति डॉलर हो गई। अर्थात् वर्ष 1964 से 1975 के 11 वर्षों के दौरान 1 $ की क़ीमत में 3.6 रुपए की वृद्धि आई जिसका वार्षिक औसत मात्र 0.327 रुपए थी।

अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण:
वर्ष 1991 की अर्थिक संकट और भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की नीती के कारण भारतीय रुपए के मुक़ाबले डॉलर की क़ीमत में लगातार वृद्धि देखी गई। रुपए के मुक़ाबले 1 $ की क़ीमत वर्ष 1985 में 12 रुपए से बढ़कर वर्ष 1991 में 17.90 रुपए और 1993 में 31.37 रुपए तक हो गई। डॉलर की क़ीमत में यह वृद्धि और रुपए की क़ीमत में गिरावट आज़ादी के बाद सर्वाधिक औसत गिरावट थी। वर्ष 1975 से 1993 के दौरान 18 वर्षों में 1 $ की क़ीमत में 22.98 रुपए की वृद्धि दर्ज की गई। अर्थात् प्रतिवर्ष 1.27 रुपए की औसत वृद्धि थी।

भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण होने के बाद शुरुआत के कुछ वर्षों में रुपए की क़ीमत में यह गिरावट और डॉलर की क़ीमत में यह वृद्धि स्वाभाविक था। लेकिन इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने अगले एक दशक से अधिक समय तक विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ तेज़ी और पूर्ण दक्षता के साथ सामंजस्य बैठाया। यही कारण है कि वर्ष 1993 से 1998 के दौरान 5 वर्षों में डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपए की क़ीमत में मात्र 5.79 रुपए की गिरावट दर्ज की गई। अर्थात् वर्ष 1993 में हिंदुस्तान में 1 $ की क़ीमत 31.37 रुपए थी जो वर्ष 1998 में बढ़कर 37.16 रुपए हो गया।
वाजपेयी सरकार
वर्ष 1998 में देश की सत्ता में परिवर्तन आई और देश में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। अगले छः वर्षों तक देश में भाजपा की सरकार रही और इस दौरान 1 $ के मुक़ाबले रुपए की औसत वार्षिक क़ीमत वर्ष 1997-98 में 37.16 रुपए से बढ़कर वर्ष 2003-04 में 45.95 रुपए पहुँच गई अर्थात् छः वर्षों में 8.79 रुपए की वृद्धि दर्ज की गई। डॉलर की क़ीमत में इस वृद्धि का औसत 1.465 रुपए प्रति वर्ष था।

मनमोहन सरकार:
वर्ष 2004 में फिर से देश में अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी। वर्ष 2008 में वैश्विक आर्थिक मंदी आने से पहले वर्ष 2003-04 से वर्ष 2007-08 के दौरान रुपया मज़बूत हुआ। वर्ष 2003-04 में 1 $ की क़ीमत 45.95 रुपए थी जो वर्ष 2007-08 में घटकर 40.24 रुपए हो गई। वर्ष 2008 में वैश्विक आर्थिक मंदी आई। वर्ष 2011-12 में 1 $ की क़ीमत बढ़कर 47.92 रुपए हो गई जो वर्ष 2003-04 के 45.95 रुपए के मुक़ाबले मामूली वृद्धि थी।
अभी हिंदुस्तान 2008 की आर्थिक मंदी से उभर भी नहीं पाया था कि वर्ष 2012 से हिंदुस्तान में कोलगेट, 2G, 3G आदि भ्रष्टाचार उजागर होने और आंदोलनों का सिलसिला शुरू हुआ जिससे भारत की छवि पूरे विश्व में ख़राब होने लगी। इसका असर भारत की मुद्रा पर भी पड़ा और 1 $ की क़ीमत वर्ष 2011-12 में 47.92 रुपए से वर्ष 2013-14 में बढ़कर 60.50 रुपए पहुँच गई। चार वर्षों में 1 $ की क़ीमत में 12.58 रुपए की वृद्धि हुई जिसका औसत 3.145 रुपए वार्षिक था और यह औसत वार्षिक वृद्धि आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में सर्वाधिक था।
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मोदी सरकार और डॉलर :
26 मई 2014 को जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो उस दिन रुपए के मुक़ाबले डॉलर की क़ीमत 58.6299 रुपए थी। आठ वर्षों के मोदी सरकार के कार्यकाल के बाद आज 1 $ की क़ीमत उछलकर 80 रुपए से भी अधिक जा चुकी है। अर्थात् पिछले आठ वर्षों के दौरान डॉलर लगभग 22 रुपए महँगा हुआ है जिसका औसत वार्षिक वृद्धि दर तीन रुपए प्रति वर्ष से थोड़ा ही कम है।
आज़ाद हिंदुस्तान के विभिन्न प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान रुपए के मुक़ाबले डॉलर की बढ़ती क़ीमत का तुलनात्मक अध्यन किया जाए तो टेबल संख्या-2 से पता चलता है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में प्रति वर्ष डॉलर की क़ीमत के सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई है।
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