HomeBrand BihariHistoryकर्पूरी ठाकुर से लालू यादव तक राजनीतिक गालियों का सफ़र

कर्पूरी ठाकुर से लालू यादव तक राजनीतिक गालियों का सफ़र

कर्पूरी ठाकुर और लालू यादव के राजनीतिक गालियों के सफ़र की शुरुआत तो 1970 के दशक में हुई थी और अंत 1990 के दशक में हुई जब आख़िरकार लालू यादव और उनके समर्थकों ने पलटकर जवाब देना शुरू कर दिया था।

साल 1991 में एक फ़िल्म आयी थी, साजन। इस फ़िल्म का एक मशहूर गाना था, “देखा है पहली बार, साजन की आँखों में प्यार।” इसी 1990 के दशक के दौरान बिहार की गलियों में बच्चे, ख़ासकर स्वर्ण जाति के बच्चे  एक और गाना गाया करते थे। और स्वर्ण में भी भूमिहर जाति के बच्चे ये गाना कुछ ज़्यादा ही गाते थे। ये गाना था “देखा है पहली बार, बाभन के जलमल गोवार”।

बाभन मतलब भूमिहार। बिहार में के का मतलब का, जलमल मतलब जन्मा हुआ और गोवार मतलब ग्वाला, यानी की यादव, और यादव मतलब लालू यादव। बिहार में और ख़ासकर दक्षिण बिहार में बाभन का मतलब भूमिहार ही होता था और गोवार का मतलब यादव ही होता है। 

Karpoori Thakur और Lalu Yadav को राजनीतिक गालियाँ और लालू यादव का स्वर्णों पर पलटवार

भूमिहार के बाभन बनने की कहानी भी काफ़ी दिलचस्प है जिसपर चर्चा कभी और करेंगे फ़िलहाल इतना जान लीजिए कि बाभन शब्द भुमिहर की तुलना जितना ज़्यादा सम्माजनक समझा जाता है गोवार शब्द यादव से उतना ही ज़्यादा बेज्जती वाला शब्द समझा जाता था। शब्दों के इतिहास पर चर्चा फिर कभी और करेंगे फ़िलहाल वापस लौटते हैं ‘देखा है पहली बार’ वाले गाने पर। 

“देखा है पहली बार, साजन की आँखों में प्यार” का राजनीतिक डूप्लिकेट गाना यानी कि  “देखा है पहली बार, बाभन के जलमल गोवार” लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने पर भूमिहारों का तंज था। इस गाने का मतलब यह था कि ‘ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई गोवार (यादव) भुमिहर पुरुष से जन्मा हुआ हो क्यूँकि लालू यादव के सभी चाल, चलन और तेवर भूमिहारों वाले थे। ऐसा इसलिए क्यूँकि लालू यादव ने प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर क़ब्ज़ा करके जो काम किया था उसपर आजतक सिर्फ़ भूमिहारों का एकाधिकार हुआ करता था।”

आज़ादी के बाद से बिहार की राजनीति में इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि बिना भूमिहारों के मदद या मर्ज़ी के कोई सत्ता के शीर्ष तक पहुँचा हो। मुख्यमंत्री बना हो। बिहार के भूमिहार यह पचा नहीं पा रहे थे कि कैसे कोई यादव जाति का व्यक्ति अपने दम पर न सिर्फ़ प्रदेश का मुख्यमंत्री बनता है बल्कि पाँच साल के भीतर अपनी पार्टी भी बनाता है और दुबारा मुख्यमंत्री बन जाता है। 

बिहार की राजनीति में यह कोई पहली बार नहीं हो रहा था जब पिछड़े वर्ग के राजनेता की सफलता पर स्वर्ण जाति के लोग तंज कर रहे थे, फबतियाँ कस रहे थे और अप्रत्यक्ष रूप से गाली-चौराहों पर गालियाँ दे रहे थे। बिहार में पिछड़ी जाति के नेताओं को इस तरह की अप्रत्यक्ष गाली देने का पहला उदाहरण तब मिलता है जब कर्पूरी ठाकुर 1970 के दशक में बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं। 

कर्पूरी ठाकुर:

कर्पूरी ठाकुर बिहार के ही नहीं बल्कि देश के पहले मुख्यमंत्री थे जो अति-पिछड़ा वर्ग से आते थे। बिहार के अति-पिछड़ों के नायक, जन-नायक कर्पूरी ठाकुर का बिहार की सर्वोच्च गद्दी पर बैठना स्वर्ण जाति के लोगों को रास नहीं आया और राजनीतिक गलियारों से लेकर खेत खलिहानों तक उनके बारे में ऐसी भद्दी भद्दी गालियाँ दी जाती थी। उदाहरण के लिए 

करपूरी करपुरा, छोड़ गद्दी, उठा उस्तरा

दिल्ली से चमरा भेजा संदेश, कर्पूरी बार (केश) बनावे भैंस चरावे रामनरेश

इसी तरह 1970 के दशक के दौरान जब कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में OBC आरक्षण लागू किया था तो उन्हें फिर से गंदी गंदी गालियाँ दी गई। 

‘ये आरक्षण कहाँ से आयी, कर्पूरी ठाकुर के माई बियाइ’, 

सुदामा कटैगरी कहाँ से आई, कर्पूरी ठाकुर के माई बीयायी’

‘एमए-बीए पास करेंगे, कपुरिया को बांस करेंगे’

कर्पूरी ठाकुर और उनकी OBC आरक्षण नीति के ख़िलाफ़ अपशब्द कहने वालों में सिर्फ़ स्वर्ण जाति के लोग नहीं थे बल्कि पिछड़ी जाती के भी कुछ नेता शामिल थे। एक मान्यता के अनुसार किसी और ने नहीं बल्कि पिछड़ों के मसीहा स्वयं लालू यादव कर्पूरी ठाकुर को ‘कपटी कपूरी’ कहते थे क्यूँकि OBC आरक्षण के कर्पूरी फ़ॉर्म्युला में अति-पिछड़ों को पिछड़ों से पृथक आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था और पिछड़ों के भीतर क्रीमी लेअर को आरक्षण से बाहर रखा गया था।

इसके साथ साथ तीन प्रतिशत आरक्षण महिलाओं और तीन प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए भी था। लालू यादव इसे कर्पूरी ठाकुर द्वारा पिछड़ों के साथ कपट करने या धोखा देना मानते थे और कर्पूरी ठाकुर को कपटी कर्पूरी कहते थे। जवाब में कर्पूरी ठाकुर ने सिर्फ़ इतना ही बोला कि अगर वो यादव होते तो उन्हें इस तरह अपमानित नहीं किया जाता। कर्पूरी ठाकुर ने इसके अलावा कभी किसी राजनीतिक गाली का कोई जवाब नहीं दिया। 

लालू यादव :

लेकिन कर्पूरी ठाकुर के विपरीत दोहों, गानों और शब्दों की जुगलबंदी में माहिर लालू यादव ने खूब पलटकर पटखनी मारी स्वर्णों के ख़िलाफ़। भूरा बाल साफ़ करो, यानी की भू से भूमहार, रा से राजपूत, बा से बामन और ल से लाला को साफ करने के नारे से लेकर बिहार की गलियों में स्वर्णों के ख़िलाफ़ कई नारे लगते थे। ‘तबला बजेगा धिन-धिन, तब एगो पर बैठेगा तीन-तीन’ ‘यानी  कि एक अगड़ी के ऊपर तीन पिछड़े रहेंगे क्योंकि राज्य में पिछड़ों की आबादी तीन चौथाई थी।

लालू यादव अपनी रैलियों में अक्सर कहा करते थे ‘हाथी पड़े पांकी में, सियार मारे हुचुकी’ इसमें हाथी का मतलब पिछड़े जाति के लोग क्योंकि उनकी संख्या ज़्यादा थी और सियार अगड़ी जातियों को बोला जाता था जो सिर्फ़ चिल्लाते हैं। सत्ता के गलियारों तक पहुँचने के लिये यादव की भूमिका पर लालू यादव लोगों को सलाह देते थे कि ‘‘सिंघिया पर से चढ़ी भैसिया पर और पूछिया सहारे उतर जाई’ यानी कि अगाड़ी जाति के हथियारों और संसाधनों का इस्तेमाल करके उनको पीछे छोड़ दो। 

इसे भी पढ़े: स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के दिग्गज नेता मुंगेरीलाल, कैसे बन गए हास्य के पात्र ?

फ़िल्म साजन विशुद्ध रूप से प्रेम कहानी थी और उसका “देखा है पहली बार” वाला ओरिजनल गाना भी विशुद्ध रूप से प्रेम प्रसंग में ही गाया जाता था, और वो भी 1990 के दशक में, डीडीएल के टाइप वाला, डीडीएल मतलब दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे। लेकिन भूमिहार जाति की गलियों में इस गाने का जो जातीय रूपांतरण गाया जा रहा था, वो उतना ही विशुद्ध राजनीतिक था जितना लालू यादव के अगडी जातियों पर कसता हुआ जुमलों का तंज। दरअसल 1990 के दशक के दौरान पहली बार सिर्फ़ साजन की ही आँखों में प्यार नहीं दिख रहा था बल्कि बिहार से लेकर देश में बहुत कुछ पहली बार ही दिख रहा था। 

पहली बार देश अपनी अर्थव्यवस्था का लिबरलाईजेसन यानी की उदारीकरन देख रहा था, निजी कम्पनीयों के साथ साथ विदेशी कम्पनीयों की बढ़ती संख्या देख रहा था। पेप्सी का, ‘ये दिल माँगे मोर’ से लेकर ‘ठंडा मतलब कोका कोला’ भी ‘मंडल के साथ कमंडल’ की आग को नहीं बुझा पा रही थी। ये सब कुछ नया था, पहली बार हो रहा था, साजन की आँखों की तरह, भारतीय उपभोक्ताओं के लिए भी, और भारतीय राजनीति के लिए भी। बिहार पहली बार लालू यादव की खाँटी, मतलब एकदम देशी अन्दाज़ में लठैती वाला मुख्यमंत्रीगिरी देख रहा था, और स्वर्ण जातियों की प्राइवट आर्मी भी देख रहा था। 

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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