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Photo Stories 2: 1906 में ग्वाल्दम से नीती-माणा का सफ़र, चित्रों की ज़ुबानी

Photo Stories एक ऋंखला है जिसमें चित्रों के सहारे कहानी लिखने, दिखाने और सुनाने का प्रयास है।

साल था 1906, पाँच ब्रिटिश पर्वतारोही दिल्ली, बरेली, काठगोदाम, नैनीताल, अलमोडा होते हुए ग्वाल्दम पहुँचे। दिल्ली से बरेली तक का सफ़र सामान्य ट्रेन और बरेली से काठगोदाम तक संकरी रेललाइन वाली ट्रेन से। ये पाँच के नाम थे: Henery Brocherel, Alexis Brocherel, Dr. Tom Longstaff, Major Bruce और A L Mumm.

दिल्ली से कठगोदाम तक का इनका सफ़र ट्रेन से, काठगोदाम से ग्वाल्दम तक टैक्सी, घोड़े और खच्चर पर हुई और ग्वाल्दम के बाद पैदल होनी थी। अलमोडा और ग्वाल्दम कुछ भारतीय पर्वतारोही (इन्हें कभी पहचान नहीं मिली) और कुछ कुली भी इनके साथ हो लिए। यात्रा में मदद करने के लिए, जैसे समान ढोना, टेंट लगाना, खाना बनाना, मालिश करना, और रास्ते भी पता करना। असल में रास्ते स्थानीय पर्वतारोहियों और कुलियों को ही पता होता था। 

“Photo Stories एक ऋंखला है जिसमें चित्रों के सहारे कहानी लिखने, दिखाने और सुनाने का प्रयास है”

इस लेख में हम यात्रा के दौरान उनके द्वारा खिचे गए कुछ चित्रों के माध्यम से उसी यात्रा पर ले चलने की कोशिस करेंगे और आशा करेंगे कि आपको सौ वर्ष पहले हिमालय पर ट्रेकिंग करने, गढ़वाल की  वदीयों, नदियों, चोटीयों के साथ-साथ गाँव, घर और स्थानीय लोगों के जीवन का अहसास करा पाएँ। प्रयास यह भी रहेगा कि वर्तमान में इस यात्रा मार्ग से जुड़े विभिन्न पहलुओं के साथ यात्रा किया जाय। गौर करने वाली बात यह होगी कि इस पूरे यात्रा में फ़ोटोग्राफ़र और इस यात्रा के अनुभव पर एक किताब (Five Months In Himalaya) लिखने वाले A L Mumm की एक भी तस्वीर नहीं मिल पायी है।

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Bunglow at Gwaldam
चित्र 1: ग्वाल्दम का ब्रिटिश बंगला। अंग्रेजों के जमाने में ग्वाल्दम एक प्रमुख पर्यटन स्थल था जहां से पर्वतारोही रूपकुंड, नंदा देवी, त्रिशूल, कामेत पर्वत आदि होते हुए नीती माना तक का सफ़र तय करते थे। ग्वाल्दम में लोग गर्मी का मौसम से छुटकारा पाने भी आते थे। आज भी ग्वाल्दम नंदा देवी राज जात यात्रा का प्रमुख केंद्र है और विदेशी सैलानी आज भी यहाँ ट्रेकिंग और छूटियाँ बिताने आते हैं। ग्वाल्दम के स्थानीय लोग आज भी सरकार से नीती-माणा की तर्ज़ पर ग्वाल्दम को पर्यटन नगरी घोषित करने की माँग कर रहे हैं।
Bridge over Pindar river below Gwaldam
चित्र 2: ग्वाल्दम से नीचे वाण गाँव की तरफ़ बढ़ेंगे तो रास्ते में ये पुल आज भी आपको टूटी हुई हालत में नज़र आ जाएगी। अंग्रेजों के दौर में ग्वाल्दम से वाण गाँव जाने का रास्ता समय के अनुसार बहुत अच्छा था। देवाल होते हुए वाण गाँव को जाने वाली इस सड़क की हालत आज भी बहुत ख़राब है और कई जगहों पर कच्ची हालत में है।
Camp at Wan 30 April
चित्र 3. पर्वतारोहियों का दल 30 अप्रिल को वाण गाँव पहुँचा और वहाँ अपना कैम्प लगाया। चित्र में तीन पर्वतारोही H. Brocherel, Dr. Lonstaff, और Major Bruce के साथ उनके भारतीय सहयोगी दीना हैं। चित्र में टोकरियों को ध्यान से देखिए। आज भी पहाड़ के गाँव में बिलकुल ऐसी ही टोकरियों में गाँव की औरतें घास और अन्य सामान ढ़ोते हुए दिख जाएँगे। ख़ाली टिन के डब्बों को पाने के लिए स्थानीय लोगों के बीच आपस में झगड़े हो जाते थे क्यूँकि स्थानीय लोगों की नज़र में ये टिन के ख़ाली डब्बे बहुत उपयोगी हुआ करते थे।

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Coolies on the Kyari pass May 5
चित्र 4: पाँच मई 1906 को लिए गए इस चित्र में क्यारी पास पर आगे बढ़ते कुली दिखाई दे रहे हैं। ये कुली यात्रियों को अपनी सेवा देते थे जिसके बदले उन्हें मेहनताना दिया जाता था। लेकिन सरकार के कर्मचारी और अधिकारी इनसे बेगारी करवाते थे। अर्थात् इन्हें सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को अपनी सेवा मुफ़्त में देनी पड़ती थी। 1921 में स्वतंतता सेनानी और कुमाऊँ केसरी के नाम से प्रसिद्ध बद्री दत्त पाण्डेय के नेतृत्व में कूली बेगार आंदोलन चलाया गया और पहाड़ों में इस प्रथा को बंद करवाया। इस आंदोलन से उभरकर गोविंद बल्लव पंत महात्मा गांधी के करीबी हो गए और राष्ट्रीय राजनीति में अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे।
कुली-बेगार
चित्र 5: 7 मई 1906, टोवा गाँव से अपना कैम्प (तंभु) हटाने की तैयारी करते पर्वतारोही की टीम। सामने कुछ कुली बैठे दिखाई दे रहे हैं। इन सरकारी पर्वतारोहियों की कई दिनो तक बेगरी करने के बाद ये कुली उनके जाने का इंतज़ार करते थे ताकि पर्वतारोहियों द्वारा अपने पीछे छोड़े गए समान को कुली आपस में बाँट सकें। ये सरकारी पर्वतारोही जिन सामानों को अपने पीछे छोड़कर आगे बढ़ते थे उसमें टिन का डब्बा कुलीयों के लिय महत्वपूर्ण हुआ करता था। ठंढे पहाड़ों में टिन के ख़ाली डब्बों बहुत क़ीमती समझा जाता था।
Gwaldam
चित्र 6: 15 मई 1906, बैगनी ग्लेशर के नीच टीम का कैम्प। चित्र में आप देख सकते हैं कैसे टीम में शामिल स्थानीय लोग और कूली कैम्प व्यवस्थित कर रहे हैं खाना बना रहे हैं जबकि ब्रिटिश अधिकारी पीछे बैठे हुए हैं।
Bagini Glacier looking north 21 May
चित्र 7: 21 मई 1906, बैगनी ग्लेशर पहुँचने के बाद आपस में चर्चा करते Major Bruce, Dr. Longstaff और Brocherel।

Route Planning(April-July 1906): London—Delhi—Baraily–Kathgodam—Nainital—Almora—Gwaldam—Dewal—Wan Village—Ramani Village—Birahi Ganga—Kuari Pass—Towa—Lata Kharak—Surai Thota—Ruing Village—Bagini Glacier—Bagini Pass—Rishi Valley—Juma Gwar—Tolma Village—Duti—Trisuli Nala—Arhamani Valley—Malari—Dhauli—Niti-Village—Raikana Glacier—Dhauli River—Gamsali—Rataban—Colonel Smyth’s Pass—Eri Udair—Bhayundar Glacier—Bhamini Daur—Badrinath—Mana Gorge—Bagat Kharak—Pandukeshwar—Joshimath—Chamoli—Karnprayag—Almora. 

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चित्र 8: यह मानचित्र महत्वपूर्ण है क्यूँकि इसमें ऊपर का मानचित्र चालीस वर्ष पहले GTS की मदद से बनाया गया था और डॉक्टर लॉंग्स्टैफ़ अपने साथ लाए थे। लेकिन नीचे का मानचित्र यहाँ पहुँचने के बाद खुद डॉक्टर लॉंग्स्टैफ़ ने बनाया। दोनो मानचित्र में घेरा लगाए गए क्षेत्र को गौर से देखने पर पता चलता है कि ऋषि गंगा वैली में लगभग चालीस वर्ष पूर्व रहमनी ग्लेशर के बग़ल में एक ग्लेशर हुआ करता था जो डॉक्टर लॉंग्स्टैफ़ के द्वारा बनाए गए मानचित्र में नहीं है। इसके अलावा डॉक्टर लॉंग्स्टैफ़ के मानचित्र में रहमनी ग्लेशर का आकार भी बदल गया है। टीम में शामिल स्थानीय पर्वतारोही डामर सिंह जो हमेशा त्रिशूली नाला ज़ाया करता था उन्होंने लेखक को बताया कि नंदा देवी पर्वत को चरो तरफ़ से घेरने वाला ग्लेशर भी ग़ायब था। इससे यह आशय लगाया जाता है कि जिस तरह नदियाँ अपना रास्ता और रुख़ बदलती है उसी तरह ग्लेशर भी हमेशा अपना रास्ता और रुख़ बदलते रहती है और ये प्रक्रिया पहाड़ों में बहुत ही स्वाभाविक है।
1906
चित्र 9: नदी या ग्लेशर जब अपना रास्ता बदलता है तो पर्वतारोहियों को रास्ता पता करने में कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कई बार वो भटक जाते हैं। अपनी यात्रा के दौरान पर्वतारोहीयों की यह टीम भी भटक गई थी। अपने इस भटके हुए समय के दौरान उन्होंने जहां अपना कैम्प लगाया उसे मिज़री कैम्प का नाम दिया जहां उन्हें 7 और 8 जून को कैम्प लगानी पड़ी।
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चित्र 10: 28 जून 1906 को पर्वतारोही टीम (दल) रैकाना ग्लेशर पहुँची जहां उन्हें तिब्बत से व्यापार करने वाले लोग अपने जत्थे के साथ दिखे। जत्थे में घोड़े और खच्च्रों के ऊपर लदे समान चित्र में देखा जा सकता है। चित्र में जो शिखर दिख रहा है ठीक उसके पीछे तिब्बत पास हैं जहां से ये तिब्बत के व्यापार व्यापार करके वापस आ रहे थे। अक्सर पर्वतारोहण या ट्रेकिंग पर जाने वाले लोग जब रास्ता भटक ज़ाया करते थे तो ये व्यापारी उनके लिए मसीहा की तरह मिलते थे और उन्हें रास्ता दिखते थे। स्थानीय लोगों को सभी परिस्थितियों में दर्रों को पार करने का हुनर हासिल होता था।

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चित्र 11: भारत चीन सीमा पर नीती गाँव, चित्र में गाँव के ऊपर से तिब्बत सीमा की तरफ़ जाता हुआ रास्ता लघु रास्ता था जिसकी जानकारी सिर्फ़ स्थानीय लोगों को होती थी जबकि गाँव के नीचे से गुजरता रास्ता लम्बा है पर आसान है। नीती गाँव से आगे जाने के लिए याक जानवर का इस्तेमाल होता था क्यूँकि नीती गाँव से ऊपर ठंढी बहुत अधिक होती है।
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चित्र 11: भयुंदर पास
Group taken at Timor Shim June 25
चित्र 12: 25 जून 1906 को तिमोर शिम गाँव में पर्वतारोहियों की पूरी टीम (दस्ता)। गौर करने की बात है कि फ़ोटो में कौन खड़ा है और कौन बैठा है या कौन पहली पंक्ति में है और कौन पिछली पंक्ति में है इसका फ़ैसला व्यक्ति के ओहदे के अनुसार तय नहीं होती थी, जैसा की आज किया जाता है। पहली पंक्ति में दिना सिंह बैठे हुए हैं जबकि पिछली पंक्ति में हर्बर्ट बरोचेरेल खड़े देखे जा सकते हैं।

Sources: Five Months in The Himalaya: A Record of Mountain Travel in Garhwal and Kashmir by A. L. Mumm, published in 1909.

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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