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पटना संग्रहालय और बिहार संग्रहालय के बीच क्या सम्बंध है जिसे बिहार सरकार दोहराना चाहती है?

बिहार संग्रहालय आधुनिक बिहार का पहला संग्रहालय था जिसकी पहली इमारत पटना नहीं बल्कि बिहार शरीफ़ में 19वीं सदी के दौरान बनी थी। वर्ष 1912 में जब बिहार को बंगाल से अलग कर पृथक राज्य बनाया गया तो पटना संग्रहालय की नीव रखी गई। वर्ष 2015 में बनकर तैयार बिहार संग्रहालय का नवीनतम स्वरूप भले ही अंतर्रष्ट्रिये ख्याति बटोर रहा हो लेकिन बिहार संग्रहालय और पटना संग्रहालय को सुरंग के माध्यम से जोड़ने का बिहार सरकार के प्रयास से उत्तपन्न नया विवाद इतिहास की गहराइयों से जवाब देता है। 

16 मार्च 2023 को बिहार सरकार ने एक अधिसूचना जारी किया जिसके तहत अब पटना संग्रहालय का प्रबंधन और संचालय बिहार संग्रहालय समिति करेगी। पटना संग्रहालय सको बिहार संग्रहालय से जोड़ने के लिए एक लम्बी सुरंग का भी निर्माण किया जाएगा ताकि पर्यटक बिहार संग्रहालय और पटना संग्रहालय को एक समझे। 

वर्ष 2011 में जब 500 करोड़ की लागत से नए बिहार संग्रहालय बनाने की अधिसूचना जारी हुई तभी से बिहार सरकार के इस फ़ैसले का विरोध हुआ और मामला पटना उच्च न्यायालय तक पहुँच। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई कि चुकी बिहार में पटना संग्रहालय समेत पहले से ही 26 संग्रहालय फंड की कमी के कारण जर्जर स्थिति में है, ऐसे में पुराने संग्रहालय की देखरेख पर ध्यान न देकर नए संग्रहालय पर इतना अधिक धन खर्च करना ग़लत है।

बिहार संग्रहालय

आम धारणा के विपरीत पटना संग्रहालय बिहार का पहला राज्य स्तरीय संग्रहालय नहीं है। वर्ष 1870 में बिहार का पहला राज्य स्तरीय बिहार संग्रहालय का निर्माण बिहार शरीफ़ में किया गया। इसके पहले इस संग्रहालय का नाम “Broadley Collection” भी था क्यूँकि बिहार के कलेक्टर A M Broadley द्वारा इस संग्रहालय का निर्माण करवाया गया और बिहार के राजगीर, नालंदा, बड़गाँव, बेगमपुर, डपठु, घोसरावाँ, आदि स्थानो पर भारी मात्रा में उत्खनन करवाकर इसमें प्राचीन मूर्तियाँ व शिल्पकलाओं का संग्रहण किया गया। 

1891 आते आते इस संग्रहालय में संग्रहित चीजें इतने प्रसिद्ध हुई कि ब्रिटिश सरकार ने इस संग्रहालय के साथ साथ बिहार से अन्य मूर्तियों के संग्रहण को कलकत्ता स्थित भारत संग्रहालय में स्थानांतरित करने का फ़ैसला लिया। स्थानांतरण करने के इस दायित्व का कार्य पूर्ण चंद्रा मुखर्जी को दिया गया। अप्रिल-मई 1891 में मुखर्जी 735 शिल्पियाँ लेकर कलकत्ता गए जिसकी कोई रिपोर्ट मुखर्जी ने सरकार को नहीं दिया। सरकार के साथ धांधली के इस आरोप के कारण मुखर्जी को नौकरी से निकल दिया गया लेकिन कलकत्ता संग्रहालय में बिहार से लाकर रखी गई ऐतिहासिक कलाकृतियों की पहचान कर पाना मुश्किल हो गया। 

अंततः शिमला में संग्रहित ‘List of Archaeological Photo-Negatives Stored in the Office of the Director General of Archaeology in India’ के संग्रहण में बिहार संग्रहालय के लगभग अठारह नेगेटिव सुरक्षित संग्रहित हैं जिसके आधार पर बिहार संग्रहालय से लाकर कलकत्ता संग्रहालय में रखी गई बिहार के कई ऐतिहासिक कलाकृत्यों की पहचान हो पायी और उसे वापस बिहार लाकर पटना संग्रहालय में रखा गया।

बिहार में खनन के दौरान मिली कई अमूल्य ऐतिहासिक कलाकृतियों को वापस बिहार लाने का प्रयास बहुत लम्बा चला जिसके दौरान न सिर्फ़ कलकत्ता संग्रहालय से कलाकृतियाँ वापस लायी गई बल्कि  देश और दुनियाँ के अन्य स्थानों से भी बिहारी कलाकृतियाँ वापस लाने का प्रयास दशकों तक जारी रहा। 

पटना संग्रहालय
चित्र: पटना संग्रहालय में सौ वर्ष पुरानी रोड रोलर की जर्जर हालत। चित्र: PTI

पटना संग्रहालय: 

वर्ष 1912 में जब बिहार बंगाल से अलग होकर पृथक राज्य बना तो राज्य स्तर की कई संस्थयों का निर्माण होना प्रारम्भ हुआ। इसी प्रयास में पटना संग्रहालय का भी निर्माण वर्ष 2015 में प्रारम्भ हुआ जब 20 जनवरी 2015 को Bihar & Orissa Research Society के एक मीटिंग में यह फ़ैसला लिया गया। इसके लिए 250000 रुपए का बजट रखा गया जो प्रथम विश्व युद्ध के कारण ब्रिटिश सरकार ने देने से इंकार कर दिया। इसके बाद बिहार के कई बड़े ज़मींदार और सचिदानंद सिन्हा जैसे लोगों ने इसके निर्माण के लिए दान दिया। दरभंगा महाराज ने इसके लिए पटना में अपनी ज़मीन दान दिया। सोनपुर जैसे छोटे ज़मींदार ने भी इसके लिए 6000 रुपए का दान दिया था।

प्रारम्भ में पटना संग्रहालय की कलाकृतियों को तात्कालिक तौर पर पटना कमिशनर के आवास और फिर पटना उच्च न्यायालय के भवन में रखा  गया। इस अस्थाई भवन में लगभग 114 कलाकृतियाँ रखी गई थी। वर्ष 07 मार्च 1929 को जब पटना संग्रहालय की अपनी दो मंज़िली इमारत बनकर तैयार हुआ तो बिहार संग्रहालय से लेजाकर कलकत्ता संग्रहालय में रखी गई बिहार की कई कलाकृतियों को वापस बिहार लाया गया।

संग्रहालय के संचालन के लिए पटना संग्रहालय समिति (The Managing Committee Of The Patna Museum) का गठन किया गया था जिसके लगभग 30 सदस्य थे। यह समिति 1935 तक प्रत्येक वर्ष संग्रहालय के कार्यों की रिपोर्ट जारी करती थी। लेकिन 1937 में बिहार की प्रांतीय सरकार ने इस संग्रहालय का देखरेख अपने हाथ में ले लिए और तब से आज तक पटना संग्रहालय की देखरेख बिहार सरकार कर रही है। 

बिहार संग्रहालय का विरोध: 

राहुल संक्रित्ययन की बेटी ज़ाया संक्रित्यायन ने बिहार सरकार के इस फ़ैसले का विरोध दो बार (12 सितम्बर 2017 और 6 मार्च 2023) कर चुकी है कि पटना संग्रहालय में रखी उनके पिता द्वारा दान की गई सामग्री को बिहार संग्रहालय में स्थान्तरित नहीं किया जाए। इससे पहले पटना संग्रहालय से कम से कम 25 हजार पुरावशेष बिहार संग्रहला को शिफ़्ट किए जा चुके हैं। इसके पहले वर्ष 2015 में भी कई समाजशास्त्रियों ने नीतीश कुमार को पत्र लिखकर पटना म्यूज़ियम में रखे पुरावशेषों को बिहार म्यूज़ियम में शिफ़्ट किए जाने का विरोध किया था।

आरोप यह है कि चुकी बिहार संग्रहालय पूरी तरह सरकारी संस्थान नहीं है इसलिए बिहार सरकार ऐतिहासिक धरोहर की ज़िम्मेदारी निजी हाथों या किसी संस्था को न दे। नवनिर्मित बिहार संग्रहालय एक सॉसाययटी रेजिस्ट्रेशन ऐक्ट के तहत रेजिस्टर्ड है जिसके प्रबंधन की ज़िम्मेदारी ट्रस्ट की है और बिहार सरकार सिर्फ़ उसके लिए ट्रस्ट को अनुदान देती है। जिस दिन बिहार सरकार अनुदान देना बंद या कम कर देगी उसके बाद संग्रहालय के संचालन में परेशानी उत्पन्न हो सकती है। 

याचिकाकर्ताओं का यह भी आरोप है कि चुकी पटना संग्रहालय के निर्माण से लेकर वहाँ पुरावशेषों को जमा करने की प्रक्रिया में बिहार के कई महान हस्तियों ने व्यक्तिगत योगदान दिया था इसलिए बिहार सरकार को नैतिक अधिकार नहीं है कि वो इन पुरावशेषों को पटना संग्रहालय से बिहार संग्रहालय में शिफ़्ट करे। राहुल संक्रित्यायन वर्ष 1929 से 1938 के दौरान तिब्बत की कई यात्राएँ की थी और उस दौरान तिब्बत से कई ग्रंथ को अपने हाथों से लिखकर बिहार लाए थे और नवनिर्मित पटना संग्रहालय को दान दे दिया था। 

पटना संग्रहालय जन्म से ही कभी पूर्णतः सरकारी संस्था नहीं थी। आज़ादी के बाद ही पटना संग्रहालय को पूर्णतः बिहार सरकार के अंतर्गत किया गया था। पटना संग्रहालय की स्थापना से ही इसके निर्माण पर होने वाले ख़र्चों से लेकर इनमे रखी गई कलाकृतियाँ बिहार के कई प्रभुत्वशाली व्यक्तियों द्वारा दान में दी गई थी। पटना संग्रहालय को धन और कलाकृति दान देने देने वालों में दरभंगा महाराज जैसे बड़े महाराज से लेकर सोनपुर के छोटे ज़मींदार और गया के विष्णुपद मंदिर से लेकर महाबोद्धि मंदिर के पुजारी तक शामिल थे। 

जिस तरह आज बिहार सरकार नवनिर्मित बिहार सरकार को सिर्फ़ अनुदान देती है उसी तरह उस दौर में भी ब्रिटिश सरकार पटना संग्रहालय को आर्थिक अनुदान देती थी जबकि संग्रहालय का प्रबंधन और संचालन के लिए एक समिति का गठन किया गया था जिसके सदस्यों में बिहार सरकार व पटना ज़िला के के आला अधिकारियों के साथ साथ बिहार के कई ज़मींदार शामिल थे। इसके अलावा बिहार के सचिदानंद सिन्हा जैसे कई राजनेता भी इस समिति के सदस्य थे। 

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