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पहाड़ का किताब ऋंखला 6: Dancing With Self: Personhood and Performance in The Pandav Leela of Garhwal

गढ़वाल के गाँव गाँव में होने वाले पांडव लीला (Pandav Leela) पर शोधपरक यह किताब इस विषय को समझने के लिए सर्वोत्तम किताबों में से एक माना जाता है।

शीर्षक: Dancing With Self: Personhood and Performance in The Pandav Leela of Garhwal’

लेखक: William S. Sax

प्रकाशन वर्ष: 2002 (Oxford University Press) (240 पृष्ठ)

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विल्यम स्टरमन सैक्स के द्वारा गढ़वाल के गाँव गाँव में लगभग दस वर्षों के फ़ील्ड वर्क के बाद लिखित और वर्ष 2002 में आक्स्फ़र्ड द्वारा प्रकाशित यह किताब गढ़वाल के गाँव गाँव में होने वाले पांडव लीला (Pandav Leela) को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण किताब है।

सात अध्यायों में बटी यह किताब बिना किसी भारी-भरकम शब्द या सिद्धांत का इस्तेमाल करते हुए पहले अध्याय से शुरू होती है जहां ऐसा लगेगा जैसे लेखक आसान भाषा में बस कुछ कहानियाँ सुना रहा है। लेकिन सातवें और आख़री अध्याय तक पहुँचते पहुँचते लेखक उन्ही सुनाई गाईं कहानियों से आपको समाज विज्ञान और ऐन्थ्रॉपॉलॉजी (मनुष्य जाति का विज्ञान) के बड़े बड़े सिद्धांत को समझा देती है। अगर आप सामाजिक विज्ञान या ऐन्थ्रॉपॉलॉजी में उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं किए हैं तो मेरा सुझाव यही रहेगा कि आप इस किताब का इंट्रडक्शन (परिचय) अध्याय सातवें अध्याय के साथ पढ़े। 

“पांडव लीला (Pandav Leela) पहाड़ के गाँव-गाँव में खेली जाने वाली लीला है जिसके केंद्र में महाभारत होती है”

इस किताब का एक महत्वपूर्ण पक्ष है गढ़वाल के कुछ हिस्सों में दुर्योधन की पूजा होने का ज़िक्र। इस किताब का यह पक्ष इसे इस तरह की अन्य किताबों और लेखों के समतुल्य खड़ा करता है जिसमें महाकाव्यों में वर्णित रावण, महाबली, दुर्योधन जैसे तथाकथित राक्षस, असुर, और अधर्मीयों का देश के विभिन्न हिस्सों में पूजा-अर्चना करने का ज़िक्र किया गया है। ए के रामानुजन द्वारा लिखित  ‘300 रामायण: फ़ाइव इग्ज़ैम्पल एंड थ्री थॉट्स ऑन ट्रैन्स्लेशन’ लेख इस परिपेक्ष में एक अन्य महत्वपूर्ण लेख है जिसमें भारतीय लोक-साहित्य की संस्कृति के बहुआयामी और विविध संस्कृति को उजागर किया गया है। यह किताब गढ़वाल के गाँव-गाँव में खेले जाने वाले पांडव के विविध लोक-स्वरूप को बखूबी उभारता है। 

Pandav Leela
चित्र: पांडव लीला (Pandav Leela) का चक्रव्यूह

अगर आपने महाभारत के बारे में बिलकुल भी नहीं जानते हैं तो पहला अध्याय आपके लिए बहुत ज़रूरी है क्यूँकि इस अध्याय में महाभारत का सारांश दिया गया है। लेकिन ये सारांश वेद-व्यास के महाभारत का सारांश नहीं है बल्कि गाँव में खेले जाने वाले पांडव लीला का सारांश है जो कई जगहों पर वेद व्यास के महाभारत से भिन्न है। दूसरा अध्याय इन्हीं भिन्नता को बखूबी उभरता है जिसमें पांडवों के व्यक्तित्व में गढ़वाली किसानो के व्यक्तित्व और उनके जीवन की झलक दिखती है। तीसरा अध्याय में भिन्नता को प्रस्तुत करने की यह प्रक्रिया जारी रहती है जिसे अर्जुन के पुत्र नागार्जुन के द्वारा अपने पिता अर्जुन की हत्या तक जारी रहता है।

इसे भी पढ़े: पहाड़ का किताब सिरीज़ 11: ‘The Ascent of Nanda Devi’

चौथे अध्याय से किताब पांडव लीला (Pandav Leela) के पीछे की कहानी सुनाना शुरू करता है जिसमें चौथे अध्याय में लेखट यह दावा करता है कि पांडव लीला गढ़वाल के ब्रह्मणो और राजपूतों के बीच प्रतिस्पर्धा को प्रतिबिम्बित करता है।

यहाँ से यह पुस्तक समसामयिक हो जाता है। पाँचवें अध्याय में पुस्तक क्षेत्र में महिला शक्ति को पांडव लीला के माध्यम से समझाने का प्रयास करता है। छठा अध्याय पश्चमी गढ़वाल में कर्ण के राज्य-क्षेत्र में दुर्योधन की पूजा का ज़िक्र करता है। और सातवें अध्याय के बारे में आपको ऊपर बताया जा चुका है। कुल मिलाकर पढ़ने लायक़ है ये किताब अगर आप उत्तराखंड के इतिहास, वर्तमान के साथ साथ यहाँ की धर्म, राजनीति और संस्कृति को समग्र रूप से समझना चाहते हैं तो। 

किताब महँगी है, रुपए 2000, और सिर्फ़ अमेजन पर उपलब्ध है। हालाँकि ये किताब उत्तर भारत के ज़्यादातर यूनिवर्सिटी के पुस्तकालय में भी उपलब्ध है। अगर आप किताब को कम्प्यूटर, लैप्टॉप, टैब, फ़ोन, आदि पर PDF में पढ़ने में सहज हैं तो हमारे वेब्सायट से भी डाउनलोड कर सकते हैं।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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