क़िस्सा, कहानी, कहावतें आदि को इतिहास लेखन का महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है। पर क्या कहती है मंडुवा (Finger Millets) से सम्बंधित पहाड़ी कहवाते? इस लेख में हम दो पहाड़ी कहावतों के सहारे हम पहाड़ और मंडुवा के इतिहास को समझने की कोशिस करेंगे।
1) “मडुवा राजा जब सेकौ तब ताज़ा” (Finger Millets is King, It gets Fresh whenever you oven it)
“हिंदुस्तान के लगभग सभी क्षेत्रों में मंडुवा (Finger Millets) के सेवन से सम्बंधित कई भ्रांतियां प्रचलित है”
पहाड़ के लिए मंडुवा सर्वाधिक महत्वपूर्ण भोजन सिर्फ़ इसलिए नहीं था क्यूँकि ये पहाड़ों में आसानी से पैदा हो जाता था बल्कि इसलिए भी था क्यूँकि पहाड़ी जीवन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त था। उपरोक्त कहावत में इस फसल को भोजन का राजा कहा गया है क्यूँकि पहाड़ों में कृषक खाना खाने के लिए बार-बार घर नहीं जा सकते थे और अगर कहीं यात्रा पर जाना हो तो एक दिन में वापस नहीं आ सकते थे इसलिए मंडुवा की रोटी ज़्यादा बेहतर थी क्यूँकि इसकी की रोटी को किसी भी तरह के आग पर सेंकने मात्र से ताजी हो ज़ाया करती थी।
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ऐसी ही कहानी है मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले मछुआरों की भी है। यहाँ के मछुआरे आज भी ज्वार और बाजरे की रोटी बांध कर नदी तट पर जाते हैं और रात भर वहीं पर मछली मारते और उसी मछली के साथ ज्वार-बाजरे की रोटी गरम करके खाते हैं। इस नज़रिए से नर्मदा क्षेत्र का राजा ज्वार-बाजरा है। आज भी सभी पूजा और त्योहारों में इस क्षेत्र (नर्मदा नदी के उत्तर और दक्षिण) में ज्वार और बाजरे की रोटी प्रसाद (भंडारा) के रूप में खाया जाता है।

मंडुवा के सम्मान और पवित्रता को उजागर करता हुआ एक और पहाड़ी कहावत है जिसमें मंडुवा को राजा शब्द से सम्बोधित किया गया है:
2) “धान पधान, मडुवा राजा, ग्यूं ग़ुलाम” (Paddy is for village headman, Finger Millets for King and Wheat is for Slaves)
उपरोक्त कहावत में धान (चावल) को पधानो (ग्राम प्रधान) का फसल कहा गया है क्यूँकि इतिहास में ग्राम के प्रधान किसानो से भूमि-कर और घुस, धान के फसल के रूप में लेते थे। ये पहाड़ी धान हुआ करता था, लाल चावल वाला धान। दूसरी तरफ़ मंडुवा को राजा कहा जाता था जिसे राजा के दरबार में नज़राने के रूप में पेश किया जाता था। आश्चर्य है कि उपरोक्त पहाड़ी कहावत के अनुसार गेहूं को ग़ुलामों का फसल माना जाता था। जो गेहूं का आटा आज सबका चहेता है वो कलतक पहाड़ियों के लिए ग़ुलामों का फसल था।
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एक समय था जब मंडुवा (Finger Millets) पहाड़ों की मुख्य, पवित्र और सम्माजनक फसल हुआ करती थी और गेहूं का रोटी की कोई पूछ नहीं थी। आज ये वक़्त है जब लोग इस अनाज को शौक़ और शान से खाते हैं। देहरादून में बैठे लोग मंडुवा ऐसे खाते और उसका सोशल मीडिया पर प्रचार करते हैं जैसे पहाड़ी संस्कृति पर कोई उपकार कर रहे हों। कल तक मंडुवा पहाड़ी जीवन का हिस्सा था और आज पहाड़ी संस्कृति का हिस्सा हो गया है जिसकी रक्षा की दुकान चलाते हैं।
इस संदर्भ में महेश चंद्र पुणेठा की दो पंक्ति को पलटकर कुछ यूँ भी कहा जा सकता है:
“मंडुवा तुम आब आइ हो रसोई, जब सारा रसोई, किचन में चला गया” !!

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