15 जनवरी 1934 को बिहार के इतिहास का सर्वाधिक भीषण भूकम्प आया जिसमें दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर और मुंगेर शहर में जान-माल की सर्वाधिक क्षति हुई थी। दरभंगा भूकम्प का केंद्र था और इसलिए यहाँ लगभग 311 लोगों की मृत्यु हुई थी। उस समय T A Freston दरभंगा ज़िले के मजिस्ट्रेट थे। Feston ने तिरहुत कमिश्नर को पत्र लिखकर दरभंगा शहर के पुनः उद्धार का आग्रह किया लेकिन कमिश्नर की तरफ़ से नकारात्मक जवाब मिला। इसके बाद Feston दरभंगा महाराज से मिले जिन्होंने Feston की योजना के लिए पैसा देने को तुरंत तैयार हो गए। सितम्बर में दरभंगा इम्प्रूवमेंट क़ानून पारित हुआ और दिसम्बर में दरभंगा टाउन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट की स्थापना हुई। T A Feston को ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया गया।
दरभंगा का पुनः निर्माण:
वर्ष 1945 तक दरभंगा महाराज ने ट्रस्ट को लगभग 7.5 लाख रुपए का अनुदान दिया। शुरुआत में दरभंगा महाराज की ओर से दिए गए पाँच लाख रुपए में से 2,74,575 रुपयों से वो सारी ज़मीनें ख़रीदी गई जहां पर ओवल मार्केट बनना था। इस दौरान ट्रस्ट ने दरभंगा शहर में 14 निर्माण कार्यों की रूपरेखा तैयार किया जिसमें से लालबाग न्यू व एक्सटेंशन एरिया, स्टेशन रोड, कठलबारी, हरही तालाब, आदि का काम सफलता पूर्वक पूरा किया गया।
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फंड की कमी और स्थानीय लोगों के द्वारा ज़मीन अधिग्रहण का विरोध किए जाने के कारण कटकि बाज़ार, बरा-बाज़ार, लहेरिया सराय सड़क, मखनिया तालाब आदि का कार्य कभी पूरा नहीं हो पाया। फंड की कमी के कारण अंततः 20 मई 1948 को ट्रस्ट को अधिकारिक तौर पर ख़त्म कर दिया गया।
ओवल बाज़ार का किराया:
वर्ष 1940 में 102 स्टॉल वाले ओवल बाज़ार को दरभंगा नगर निगम ने 1,20,00 रुपए में ख़रीद लिया। दरभंगा नगर निगम ने ओवल बाज़ार का एक हिस्सा वर्ष 1938 में स्थापित मिथिला कॉलेज को 80 रुपए प्रतिमाह के किराए पर दे दिया। वर्ष 1942 में ओवल बाज़ार का कुछ अन्य हिस्सा भी मिथिला कॉलेज को किराए पर दिया और किराया बढ़ाकर 307 रुपए वार्षिक कर दिया गया। आज़ादी के बाद सितम्बर 1949 में ओवल बाज़ार के सभी 102 स्टाल में से 94 स्टाल को अगले 99 वर्ष के लिए मात्र पाँच रुपए वार्षिक के किराए पर मिथिला कॉलेज को दे दिया गया। बचे हुए 8 स्टाल से दरभंगा नगर निगम को 329 रुपए मासिक की आमदनी होती थी।
मॉडल टाउन:
भूकम्प आने के दो हफ़्ते के भीतर जनवरी की आख़री सप्ताह में बिहार सरकार के आला अधिकारियों ने भी पटना में दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर और मुंगेर शहर के पुनः निर्माण की योजना बनाने के लिए बैठक किया। ब्रिटिश सरकार ने मुज़फ़्फ़रपुर और मुंगेर शहर के पुनः निर्माण की ज़िम्मेदारी ली और दरभंगा महाराज से दरभंगा शहर के पुनः निर्माण की ज़िम्मेदारी लेने का आग्रह किया।
इन शहरों के पुनः निर्माण के दौरान हुई बहस का केंद्रबिंदु भूकम्प रोधी टाउन प्लानिंग की जगह शहर की स्वच्छता थी। तिरहुत के कमिश्नर नव-निर्मित शहर में हवादार, खुली सड़कों, तालाब, पार्क आदि के निर्माण पर सर्वाधिक जोर दे रहे थे और इस त्रासदी को एक सुनहरा अवसर के रूप में देख रहे थे जब बिहार के इन शहरों को मॉडल टाउन के रूप में विकसित किया जा सकता था। हालाँकि वह इस बात को भी आगाह कर रहे थे कि स्थानीय लोग इस निर्माण प्रक्रिया में अपनी ज़मीन सस्ते भाव में नहीं देंगे जिससे पुनः निर्माण की यह प्रक्रिया काफ़ी खर्चीला होगा।

ओवल क्यूँ?
वर्ष 2012 में स्थानीय सांसद कृति आज़ाद ने ओवल मार्केट को दरभंगा का कनॉट प्लेस बोला और उसके पुनः निर्माण करने की घोषणा किया लेकिन आज तक इस ओर कोई प्रगति नहीं हो पायी। दरभंगा के अलावा विश्व के कई हिस्सों में ओवल नाम से शहरों के विशेष स्थान का नाम है। वर्ष 1845 में निर्मित लंदन का सर्वाधिक पुराना और प्रसिद्ध मैदान जिसपर वर्ष 1870 में ब्रिटेन का पहला अंतर्रष्ट्रिय फ़ुट्बॉल मैच और सितम्बर 1880 में दुनियाँ का पहला टेस्ट क्रिकेट खेला गया था उसका नाम भी ओवल ही है। यह 1844 तक गोभी बाज़ार हुआ करता था। आज भी ब्रिटेन के लंदन शहर में एक ओवल किसान बाज़ार और एक ओवल बैंड्स्टैंड व लॉन भी स्थित है।
दरअसल ओवल शब्द का शाब्दिक अर्थ एक आकर है जो गोल भी नहीं होता है और अंडाकार भी नहीं होता है बल्कि उन दोनो के बीच का होता है। मिथिला का प्रसिद्ध मख़ाना भी ओवल आकर का ही होता है सम्भवतः जिसके कारण ओवल मार्केट का आकर उसी तरह का निर्मित किया गया। इसी तरह मैसूर शहर के के॰के॰ बाज़ार में भी एक मिर्ज़ा इस्माइल ओवल पार्क है।

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