HomeBrand BihariPhoto Story: 19वीं सदी के दौरान अफ़ीम उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

Photo Story: 19वीं सदी के दौरान अफ़ीम उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

अफ़ीम 17वीं सदी से ही भारत-यूरोप व्यापार का अहम हिस्सा था। 19वीं सदी आते आते अफ़ीम व्यापार इतना अधिक महत्वपूर्ण हो गया कि चीन और अंग्रेज के बीच अफ़ीम के व्यापार को लेकर तीन युद्ध हुए जिसका नाम इतिहास में अफ़ीम युद्ध के नाम से ही दर्ज है। अफ़ीम उत्पादन की मुख्यतः दो प्रक्रिया थी जिसमें पारम्परिक तौर पर अफ़ीम का उत्पादन स्थानीय स्तर पर खेत के आस-पास छोटे स्तर पर होता था लेकिन 18वीं और 19वीं सदी के दौरान बड़े बड़े अफ़ीम फ़ैक्टरीयों में अफ़ीम उत्पादन होने लगा। इन्हीं अफ़ीम फ़ैक्टरीयों में से एक फ़ैक्टरी पटना के गुलज़ारबाग में स्थित था।

Shiv Lal
चित्र: अफ़ीम के खेतों में अफ़ीम का संग्रहण। स्त्रोत: शिवलाल, 1857, Victoria & Albert Museum London

स्थानीय अफ़ीम उत्पादन पद्धति:

the pots of opium that have been put into baskets being labelled ready for despatch. Shiv Lal
चित्र: अफ़ीम को व्यापारियों को बेचने के लिए घड़े में संग्रहित किया जाता था। स्त्रोत: शिवलाल, 1857, Victoria & Albert Museum London

अफ़ीम उत्पादन की मुख्यतः दो पद्धति थी। अंग्रेजों द्वारा अफ़ीम फ़ैक्टरी बनाने से पहले अफ़ीम उत्पादन छोटे स्तर पर स्थानीय किसान और व्यापारी मिलकर करते थे। स्थानीय स्तर पर अफ़ीम उत्पादन की प्रक्रिया का पहला चरण में अलग अलग खेतों में उत्पादित कच्चे अफ़ीम को बिचौलिये ठेकेदार गाँव-गाँव घूमकर एकत्रित करते थे। बड़े किसान अफ़ीम का मिश्रण स्वयं करते थे और मिश्रित अफ़ीम को मिट्टी के घड़े में एकत्रित करके बड़े व्यापारियों को बेचते थे।

This picture shows carpenters making crates with individual compartments for the opium balls. Shiv Lal
चित्र: संग्रहित अफ़ीम का मिश्रण तैयार करने के लिए स्थानीय स्तर पर लकड़ी का बक्सा तैयार किया जाता था। स्त्रोत: शिवलाल, 1857, Victoria & Albert Museum London

व्यापारियों द्वारा ख़रीदे हुए अफ़ीम का मिश्रण तैयार करने के लिए लकड़ी का एक बक्सा तैयार किया जाता था। अफ़ीम को इन लकड़ी के बक्सों में मिश्रित किया जाता था। मिश्रण की प्रक्रिया के दौरान अफ़ीम की आद्रता संतुलित किया जाता था ताकि अफ़ीम लम्बे समय तक ख़राब नहीं हो सके। घड़े से निकालकर फिर से इस अफ़ीम को सुखाया जाता था और सामान भार में तौलकर अफ़ीम का गोला बनाकर उसे कांसे के एक गोल बर्तन में रखा जाता था। अब अफ़ीम बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो चुका है।

opium being mixed in a large square wooden vat. Shiv Lal
चित्र: अफ़ीम का मिश्रण तैयार करने की प्रक्रिया।
opium being tested for purity Shiv Lal
चित्र: अफ़ीम की गुणवत्ता जाँच।
some opium being moulded into a ball and put into a brass cup. Shiv Lal 1857 1
चित्र: बिकने के लिए तैयार अफ़ीम को गोल कांसे के बर्तन में पैक किया जाता था।

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opium being moulded into balls and put into brass cups. Shiv Lal
चित्र: गोल कांसे के बर्तन के अलावा मिट्टी के बर्तन में भी अफ़ीम का संग्रहण किया जाता था।

फ़ैक्टरी उत्पादन:

फ़ैक्टरी में अफ़ीम तैयार होने की प्रक्रिया भी लगभग इसी तरह की होती थी। अगर अफ़ीम फ़ैक्टरी अफ़ीम के खेत से ज़्यादा दूर नहीं होता था तो अफ़ीम का मिश्रण तैयार करने की प्रक्रिया फ़ैक्टरी में भी होती थी अन्यथा अफ़ीम का मिश्रण तैयार करने की प्रक्रिया स्थानीय स्तर पर ही कर लिया जाता था। बड़े व्यापारी अफ़ीम के गोले को थोक भाव में ख़रीदते थे और फ़ैक्टरी को बेचते थे या फ़ैक्टरी के कर्मचारी खुद ख़रीदने आते थे।

Opium Collection
चित्र: स्थानीय व्यापारियों द्वारा लाए गए अफ़ीम की फ़ैक्टरी द्वारा ख़रीद। स्त्रोत: 1908, Drugging a Nation, Fleming H Revell Company

फ़ैक्टरी तक पहुँचे अफ़ीम मिश्रण को केक के रूप में काटकर सुखाया जाता था। व्यापारी अक्सर अधिक नमी वाले अफ़ीम फ़ैक्टरी को बेचते थे क्यूँकि अधिक नमी से अफ़ीम का भार अधिक हो जाता था जिससे व्यापारियों को अधिक क़ीमत मिलती थी।

Drying Mixing
चित्र: व्यापारियों से फ़ैक्टरी द्वारा ख़रीदे गए अफ़ीम को फ़ैक्टरी में सबसे पहले सुखाया जाता था।

फ़ैक्टरी द्वारा अफ़ीम की नमी कम करने के बाद फ़ैक्टरी एक बार फिर से दोबारा अफ़ीम की गुणवत्ता की जाँच की जाती थी। गुणवत्ता की जाँच के बाद अफ़ीम को कांसे के गोल बर्तन में बंद कर बाज़ार में बेचने के लिए तैयार किया जाता था।

फ़ैक्टरी में अफ़ीम उत्पादन
चित्र: 1770 में पटना में तैयार अफ़ीम फ़ैक्टरी का डिज़ाइन।

पटना के गुलज़ार बाग में ब्रिटिश सरकार ने अफ़ीम उत्पादन के लिए 17वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में एक फ़ैक्टरी का निर्माण करवाया था जिसका वृहद् रूप 1657 में तैयार किया गया। इस फ़ैक्टरी के डिज़ाइन में समय समय पर बदलाव होता रहा और 19वीं सदी के दौरान इसमें आठ अलग-अलग भवन बन चुके थे जिसमें अफ़ीम उत्पादन की अलग अलग प्रक्रिया पूरी की जाती थी। इस फ़ैक्टरी में उत्पादित अफ़ीम गंगा के रास्ते कलकत्ता होते हुए चीन को निर्यात किया जाता था।

Final Prepration
चित्र: पटना स्थित अफ़ीम फ़ैक्टरी में अफ़ीम उत्पादन की प्रारम्भिक प्रक्रिया जिसमें अफ़ीम को तौलकर उसे मिश्रित किया जाता था।
First Test
चित्र: फ़ैक्टरी में अफ़ीम की नमी जाँच की पद्धति।
Final Test
चित्र: फ़ैक्टरी में अफ़ीम की शुद्धता जाँच की पद्धति।

अब अफ़ीम पूरी तरह बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो चुका होता है। बिकने से पहले अफ़ीम के गोले को एक जगह संग्रहित किया जाता था। अफ़ीम का संग्रह सामान भर के कांसे के गोले में इसलिए किया जाता था ताकि सभी अफ़ीम का भार करने के बजाय उनकी गिनती के आधार पर बाज़ार या व्यापारी को आसानी से बेचा जा सके।

Balling and drying room
चित्र: पटना स्थित अफ़ीम फ़ैक्टरी में अफ़ीम का गोला बनाने की प्रक्रिया।

पटना से कलकत्ता की तरफ़ जाता अफ़ीम का जहाज़ जहां से अफ़ीम चीन को निर्यात होता था। कुछ अफ़ीम सड़क के रास्ते से नेपाल होते हुए भी चीन जाता था जो अक्सर तस्करी का हिस्सा होता था।

Storing and Shipping
चित्र: पटना स्थित अफ़ीम फ़ैक्टरी में अफ़ीम संग्रहण और उसके व्यापार की प्रक्रिया।

पटना के अलावा वर्ष 1820 में ग़ाज़ीपुर में स्थापित अफ़ीम की फ़ैक्टरी हिंदुस्तान की सर्वाधिक बड़ी अफ़ीम उत्पादन फ़ैक्टरी थी जो आज भी कार्यरत है।

अफ़ीम और राजनीति:

17वीं सदी के दौरान यह अफ़ीम मुख्यतः यूरोप के बाज़ारों में दवाई के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता था लेकिन 18वीं सदी के दौरान ब्रिटिश व्यापारियों ने भारतीय अफ़ीम को भारी मात्रा में चीन को निर्यात करना प्रारम्भ किया। इस दौरान अफ़ीम की बढ़ती माँग के कारण अफ़ीम उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई। चीन में अफ़ीम का सेवन मुख्यतः नशा के रूप में किया जाता था जिसके कारण चीन सरकार ने अफ़ीम के आयात पर रोक लगा दिया।

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चीन में अफ़ीम के आयात पर रोक लगने के बाद यूरोपीय व्यापारी ग़ैर-क़ानूनी तौर पर चीन में अफ़ीम का तस्कर करने लगे जिसके कारण चीनी सरकार और यूरोपीय व्यापारियों के बीच अक्सर झड़प होने लगी जिसके कारण अंततः 1830 और 1840 के दशक के दौरान चीन और ब्रिटिश के बीच तीन अफ़ीम युद्ध हुए जिसमें चीन की हार हुई और चीन को आयात पर प्रतिबंध हटाना पड़ा।

Opium Trade
चित्र: पटना की अफ़ीम से भरी जहाज़ जो गंगा नदी के सहारे कलकत्ता तक जा रही है। स्त्रोत: Walter S Sherwill, The Opium Fleet, 1850.

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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