दिन था 31 दिसंबर 1956, चीन के पहले कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री Chou (Zhou) En-lai भारत दौरे पर आये हुए थे. दोनों देशों के बीच सम्बन्ध बहुत तेजी से बिगड़ रहे थे जिसे नेहरु सुधारने का प्रयास कर रहे थे। यह चीनी प्रधानमंत्री की एक महीने के भीतर भारत की दूसरी यात्रा थी।
नेहरु-चाऊ का ट्रेन सफ़र:
Chou (Zhou) En-lai 30 दिसंबर को नयी दिल्ली पहुंचे. नेहरु फटाफट श्रीमान Chou से थोड़ी देर बात-चित की और फटाफट एक विशेष ट्रेन से नांगल निकल गए। नांगल पंजाब का एक शहर था जो सतलुज नदी पर बसा हुआ था और भांखड-नांगल बांध के लिए पुरे देश में प्रसिद्द था।
नेहरु अपने तथाकथित दोस्त Chou को विश्व के सर्वाधिक बड़े डैम, नए हिंदुस्तान की शान और नेहरु की नजर में ‘आधुनिक हिंदुस्तान के मंदिर’, निर्माणाधीन भांखडा-नांगल बांध दिखाने जा रहे थे। ट्रेन को बीच में कहीं नहीं रुकना था लेकिन जगह जगह पर उत्साहित भीड़ ट्रेन को जबरदस्ती देशी तकनीकों से रोक देते थे और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगा रहे थे और तिरंगे के साथ चीनी झंडा लहरा रहे थे।

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31 दिसंबर:
अगले दिन सुबह, यानी 31 दिसंबर 1956, वर्ष का आखरी दिन, को ट्रेन नांगल सुबह 8:30 बजे पहुंची। स्टेशन पर स्वागत के लिए जमा अथाह भीड़ से निकलते हुए नेहरू और Chou सतलुज सदन (आश्रम) पहुंचे जहाँ Chou निचली मंजिल पर रुके और नेहरु पहली मंजिल पर। थोड़ी देर आराम करने के बाद दोनों डैम देखने पहुँच गए।
31 दिसंबर की वो शाम, लोगों की खचाखच भीड़, ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ नारों और झंडों के बीच नेहरु और Chou के बीच वार्ता के लिए एक बुलेटप्रूफ कांच का कमरा बनाया गया। बीसवीं सदी के दो महान नेता, दो महान देश के बीच और एशिया का भविष्य तय कर रहे थे और बाहर जनता इस ख़ुशी में चिल्ला रही थी। जब दोनों नेता कांच के वार्ता कक्ष से बाहर आये तो दोनों खासकर Chou के चेहरे हावभाव से सबकुछ ठीक नहीं लग रहा था। संभवतः वार्ता Chou का आशा के अनुरूप नहीं हुआ था।

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नया वर्ष:
31 दिसंबर की शाम को पंजाब के राज्यपाल के यहाँ साल के आखरी दिन की पार्टी रखी गई जिसमे नेहरु और Chou दोनों को जाना था। दोनों गए भी, और खूब मस्ती भी किया जो उस वक्त की तस्वीरों में आज भी कैद है। अगले दिन दोनों नेता वापस दिल्ली उसी ट्रेन से आये और 1 जनवरी 1957 को नए साल का स्वागत करने के बाद Chou अपने देश चीन के लिए रवाना हो गए। इस गर्मजोशी के बावजूद भारत और चीन के बीच तिब्बत, मिश्र और हंगरी के मुद्दे पर मतभेद नहीं सुलझ पाया।
31 दिसंबर को जिस हर्ष-उल्लास से ट्रेन दिल्ली से नांगल पहुंची थी, 1 जनवरी 1957 को वापस दिल्ली लौटते समय वो हर्ष-उल्लास न तो ट्रेन के भीतर थी और न ही ट्रेन के बाहर। नांगल में दोनों नेताओं के बीच वार्ता के लिए बनी वो कांच वार्ता कक्ष आज भी वहीँ खड़ा है लेकिन भारत-चीन सम्बन्ध कांच के भवन की तरह अगले पञ्च वर्षों के भीतर बिखर गया। अगले तीन वर्षों में दोनों नेता एक दुसरे के यहाँ दौरे पर गए, दोनों देश के बीच कई दौर की वार्ताएं हुई, लेकिन सफलता नहीं मिली। चीन वर्ष 1962 में भारत पर हमला किया जिसमे हिंदुस्तान की हार हुई।

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