ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और ब्रिटिश सरकार:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का नाम इतिहास में आर्थिक क्रूरता के लिए जाना जाता है। इनकी आर्थिक क्रूरता, अर्थात् लोगों का आर्थिक दोहन करने के क़िस्से इतने मशहूर थे कि जब हिंदुस्तान में 1857 की क्रांति हुई तो इंग्लैंड में संसद से लेकर गाली-गलियारों तक में हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को ख़त्म करने के माँग बड़े ज़ोर शोर से उठी। ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1858 में हिंदुस्तान में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को ख़त्म कर दिया।
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लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी वर्ष 1877 तक हिंदुस्तान के व्यापार-उध्योग में सर्वाधिक शक्तिशाली कम्पनी बनी रही। उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के शेयरधारक हिंदुस्तान में चलने वाली विभिन्न सरकारी प्राजेक्ट्स में ब्रिटिश सरकार से सर्वाधिक ठेका लेते थे। इन सरकारी ठेकों पर ब्रिटिश सरकार इन निजी पूँजीपतियों और उद्योगपतियों को एक न्यूनतम लाभ की गारंटी देती थी।

ब्रिटिश भारतीय रेल और निजी कम्पनी के लाभ:
जैसे आज अड़ानी-अम्बानी की कम्पनी के कई ब्रांच (अड़ानी पेट्रोकेमिकल्स, अड़ानी पोर्ट्स, अड़ानी एंटर्प्रायज़ेज़, अड़ानी पावर, अड़ानी ग्रीन एनर्जी आदि) हैं वैसे ही ईस्ट इंडिया कम्पनी के शेयरधारक भी अपने अपने कई ब्रांच बना लिए थे जैसे रेल्वे, चाय बाग़ान, टेलीग्राफ़ कम्पनी आदि। माना जाता था कि ब्रिटिश सरकार इन निजी कम्पनी को ठेका देने के क्रम में पूरी दुनियाँ में सर्वाधिक लाभ देती थी।
अंग्रेजों के दौर में भारतीय रेल निजी क्षेत्र में था। सरकार निजी कम्पनीयों को ठेका देती थी और बदले में उन्हें प्रोफ़िट की गारंटी मिलती थी। प्रोफ़िट की गारंटी का दर न्यूनतम तीन प्रतिशत और अधिकतम 20 प्रतिशत सालाना हुआ करती थी। अर्थात् किसी रेल्वे की कमाई से कोई भी निजी कम्पनी पाँच वर्षों में अधिकतम ढाई गुना से अधिक नहीं बढ़ा सकता था।
ब्रिटिश इंडिया के आँकडें बताते हैं कि हरिद्वार से देहरादून रेल्वे लाइन का निर्माण और संचालन करने वाली निजी कम्पनी का इस लाइन से वर्ष 1901 में कुल आय 2,13,456 रुपय थी जो अगले पाँच वर्षों में वर्ष 1906 में बढ़कर 3,34,110 रुपए, वर्ष 1911 में 4,31,161 रुपए और वर्ष 1920-21 में 7,38,764 रुपए हो गई। अर्थात् बीस वर्षों में लगभग सात गुना की वृद्धि। दूसरी तरफ़ अड़ानी के शेयर के दाम में वर्ष 2003 से 2023 के बीस वर्षों के अंतराल में लगभग पचास गुना की वृद्धि देखने को मिली है। वो ग़ुलाम हिंदुस्तान का ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी थी और ये आज़ाद हिंदुस्तान का अड़ानी है।
मोदी राज में अड़ानी:
मोदी जी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद 7 फ़रवरी 2003 को अड़ानी एंटर्प्रायज़ के शेयर का भाव 4.07 रुपए था जो दिसम्बर 2007 मोदी जी के गुजरात में दुबारा मुख्यमंत्री बनते समय 244.57 रुपए तक पहुँच गया। अर्थात् पाँच वर्ष से भी कम समय में लगभग 60 गुना की वृद्धि। लेकिन सितम्बर 2013 में मोदी जी के भाजपा का प्रधानमंत्री उम्मीदवार चुने जाने तक आड़नी के शेयर के दाम आधे से भी कम अर्थात् 3 सितम्बर 2013 को मात्र 83.08 रुपए थे।

लेकिन मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के एक वर्ष के अंतर अड़ानी के शेयर के दाम फिर से बढ़कर 26 मई 2015 को 495.50 रुपए तक पहुँच गया अर्थात् क़रीब 6 गुना की वृद्धि। कुछ दिन पहले तक आड़नी शेयर के भाव इसी गति के बढ़ते रहे लेकिन हिंडनबर्ग द्वारा किए गए भंडाफोड़ के बाद आड़नी एंटर्प्रायज़ के शेयर के भाव तेज़ी से गिरे हैं। हालाँकि इतने भी नहीं गिरे हैं कि अड़ानी का अस्तित्व ख़तरे में हो। 3 फ़रवरी 2023 को अड़ानी एंटर्प्रायज़ के भाव उतने ही हैं जितने अक्तूबर-नवम्बर 2021 तक हुआ करते थे। अर्थात् अड़ानी का नुक़सान सिर्फ़ उतना ही है जितना उसने पिछले 15 महीने में कमाया था।

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