HomeBrand Bihariबिहार जातिगत जनगणना ने इन अफ़वाहों, सिद्धांतो, अंतःविरोधों और पूर्वाग्रहों को तोड़ा

बिहार जातिगत जनगणना ने इन अफ़वाहों, सिद्धांतो, अंतःविरोधों और पूर्वाग्रहों को तोड़ा

पिछले कुछ दिनों में बिहार के गली-गली में यह चर्चा चल रही है कि बिहार जातीय जनगणना 2022 में सिर्फ़ ऊँची जाति के लोगों का ही जनसंख्या अनुपात घटा है और सभी पिछड़ों का जनसंख्या अनुपात बढ़ा है। ये खबर सरासर ग़लत है, झूठ है, फ़ेक है। झूठ तो सोशल मीडिया पर साल 1931 का बिहार का जातीय गणना का अलग अलग जातियों का आँकड़ा भी वायरल हुआ है।

इस 1931 के आँकड़ों के झूठ के ऊपर भी हमारा लेख आप पढ़ सकते हैं लेकिन इस लेख में बात सिर्फ़ उस अफ़वाह की जिसमें यह बोला जा रहा है कि बिहार में सिर्फ़ भुमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ जैसे अगड़ों का ही जनसंख्या अनुपात घटा है और सभी दलित, पिछड़ों, अति-पिछड़ों और मुस्लिम का जनसंख्या अनुपात बढ़ा है। 

बिहार जातिगत जनगणना ने इन अफ़वाहों, सिद्धांतो, अंतःविरोधों और पूर्वाग्रहों को तोड़ा 

साल 1931 में बिहार में भूमिहार की कुल आबादी 8,55,036 थी जो साल 2023 में बढ़कर 37,50,886 हो गयी। यानी की पिछले 92 वर्षों के दौरान भूमिहार की कुल आबादी 338.68 प्रतिशत बढ़ी है। इसी तरह से साल 1931 में बिहार में राजपूत  की कुल आबादी 11,84,260 थी जो साल 2023 में बढ़कर 45,10,733 हो गयी। यानी की पिछले 92 वर्षों के दौरान राजपूत की कुल आबादी 280.89% प्रतिशत बढ़ी है। और इसी तरह ब्राह्मण की आबादी में 264.57% की वृद्धि हुई है।

जाति अनुपात:

लेकिन जब हम बिहार के अलग अलग जातियों के जनसंख्या अनुपात में पिछले 92 वर्षों के दौरान हुए परिवर्तन पर नज़र डालते हैं तो पता चलता है कि भूमिहारों का जनसंख्या अनुपात 3.61% से घटकर 2.87 प्रतिशत हो गया, राजपूतों का जनसंख्या अनुपात 5 प्रतिशत से घटकर 3.45 प्रतिशत हो गया और ब्राह्मणों का बिहार की कुल जनसंख्या में अनुपात 5.54% से घटकर 3.66% हो गया। इन अगडी जातियों के जनसंख्या अनुपात में आए इस कमी का आँकड़ा देखकर पूरे मीडिया से लेकर गाली-गाली में हल्ला मचा हुआ है और ख़ासकर अगडी जातियों में। 

लेकिन बड़ी बड़ी और प्रभुत्व वाली के इस बहस में छोटी जातियों के बारे में चर्चा करना हम भूल गए हैं। समझ में नहीं आता है कि कोई डोम जाति का नाम क्यूँ नहीं ले रहा है? पिछले 92 वर्षों के दौरान बिहार में डोम का जनसंख्या अनुपात 0.30% से घटकर 0.20% हो गई जो की अनुपात के रूप में देखें तो भूमिहार, ब्राह्मण या राजपूत से अधिक अनुपात में डोम के जनसंख्या अनुपात कमी आइ है।

Table Caste Census 1931 2023
बिहार जातिगत जनगणना के आँकड़े कितने भ्रामक हैं?

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इसी तरह साल 1931 में बिहार में कुर्मी की कुल आबादी 7,89,426 थी जो साल 2023 में बढ़कर 37,62,969 हो गयी। इसी तरह से साल 1931 में बिहार में धानुक  की कुल आबादी 5,25,371 थी जो साल 2023 में बढ़कर 27,96,605 हो गयी। साल 1931 में कुर्मी जाति की आबादी बिहार की कुल आबादी का 3.33% हिस्सा था जो साल 2023 में घटकर 2.88% हो गया है।

इसी तरह से साल 1931 और 2023 के दौरान धानुक जाति का जनसंख्या अनुपात 2.22% से घटकर 2.14% रह गया है।  इसी तरह से कुशवाहा समाज का भी जनसंख्या अनुपात  साल 1931 से 2023 के बीच 92 वर्षों के दौरान 4.24 प्रतिशत से घटकर 4.21 प्रतिशत हो गई। और कहार का जनसंख्या अनुपात इसी दौरान 1.73% से घटकर 1.65% रह गया। इसका मतलब सिर्फ़ अगडी जातियों का नहीं बल्कि कुछ पिछड़ी जातियों का भी जनसंख्या अनुपात पिछले 92 वर्षों के दौरा घटा है। 

population increase caste
Table: Population Increase Rate of Different Castes in Bihar during 1931 and 2023.

यादव-मुस्लिम: जनसंख्या भ्रम

हालाँकि बहुत सारी पिछड़ी जातियाँ भी हैं जिनका जनसंख्या अनुपात पिछले 92 वर्षों के दौरान बढ़ा है। उदाहरण के लिए साल 1931 में बिहार में यादवों की कुल जनसंख्या 30,09,499 थी जो कि साल 2023 में बढ़कर 1,86,50,119 हो गई। इसका मतलब साल 1931 से 2023 के बीच बिहार में यादवों की जनसंख्या में  519.71% की वृद्धि हुई है। इसी तरह साल 1931 में बिहार में मुसलमानों की कुल जनसंख्या 34,57,252 थी जो कि साल 2023 में बढ़कर 2,31,49,925 हो गई। इसका मतलब साल 1931 से 2023 के बीच बिहार में यादवों की जनसंख्या में  569.60% की वृद्धि हुई है।

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मतलब यादवों और मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि भुमिहार, ब्राह्मण और राजपूत से कहीं ज़्यादा है और ये सच भी है। लेकिन ये सच बिल्कुल नहीं है कि पिछले 92 वर्षों के दौरान सबसे कम जनसंख्या वृद्धि सिर्फ़ ब्राह्मण भुमिहार और राजपूतों की ही हुई है। क्यूँकि इसी दौरान अगडी जातियों में ही कायस्थों का जनसंख्या वृद्धि मात्र 152.54 % थी जो कि भूमिहारों के 338.68% आधा से भी कम है लेकिन हल्ला मचाने में भूमिहार सबसे ज़्यादा आगे हैं।

इस दौरान भूमिहारों से भी कम जनसंख्या वृद्धि राजपूतों और ब्राह्मणों का है लेकिन हल्ला सबसे ज़्यादा भुमिहार मचा रहे हैं। और ये भी बिल्कुल झूठ है कि सभी अगडी जातियों का जनसख्या वृद्धि दर पिछड़ी जातियों के जनसंख्या वृद्धि दर से बहुत कम है। उदाहरण के लिए पिछले 92 वर्षों के दौरान भुमिहार का जनसंख्या वृद्ध दर 338.68% था लेकिन इसी दौरान डोम जाति का जनसंख्या वृद्धि दर मात्रा 271.80 प्रतिशत रहा जो भुमिहार के साथ साथ राजपूत दोनो से कम है। 

share of caste population changed

बिहार सरकार के इस जातीय जनगणना ने एक और भ्रम को तोड़ा है। लोगों के अंदर यह आम धारणा है कि मुसलमानों का जनसंख्या वृद्धि दर सभी जातियों और सभी धर्मों के लोगों से ज़्यादा होता है लेकिन पिछले 92 वर्षों के दौरान बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या में 569.60% की वृद्धि हुई थी लेकिन इसी दौरान बडही जाति की जनसंख्या में 664.15% की वृद्धि हुई थी और मल्लाह जाति की जनसंख्या में 681.15% की वृद्धि हुई थी और पासी जाति की जनसंख्या में 710% की वृद्धि हुई थी।

इसका मतलब ये हुआ कि बडही, मल्लाह और पासी जातियों का जनसंख्या वृद्धि दर मुसलमानों के जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक है। बडही, मल्लाह और पासी जातियों की यह जनसंख्या वृद्धि दर एक और बात का खुलासा करती है कि यादव और मुसलमान तो भूमिहारों, राजपूतों या ब्राह्मणों के टार्गेट पर बेकार हैं पिछले 92 सालों के दौरान यादव या मुसलमान से ज़्यादा जनसंख्या वृद्धि दर तो बडही, मल्लाह और पासी का था। 

कहने का मतलब यह है कि बिहार जातीय गणना 2023 ने जनसंख्या वृद्धि से सम्बंधित कई अफ़वाहों, सिद्धांतो, अंतः विरोधों और पुरवग्रहों को तोड़ा है। फिर चाहे जनसंख्या वृद्धि का जातीय पक्ष हो या जनसंख्या वृद्धि का धार्मिक पक्ष हो बिहार के इस जातीय गणना के और भी विस्तृत आँकड़े जैसे जैसे सार्वजनिक होगे वैसे वैसे कई पर्दे उठेंगे।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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