पूर्वी पाकिस्तान में जब पृथक राष्ट्र बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई हो रही थी तो उसी दौरान वहाँ बंगाली मुस्लिम द्वारा बिहारी मुस्लिम के ख़िलाफ़ भी अभियान चला था। बंगाली मुसलमानों का आरोप था कि बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान इन बिहारी मुसलमानों ने पाकिस्तान की सेना का साथ दे रही थी। इस लड़ाई में एक हज़ार से अधिक बिहारी मुसलमानों का क़त्ल हुआ और लाखों बेघर हुए। आज भी लाखों बिहारी मुस्लिम रेफ़्यूजी बांग्लादेश के रेफ़्यूजी कैम्प में पाकिस्तान जाने के इंतज़ार में फँसे हुए हैं।
बिहारी मुस्लिम रेफ़्यूजी:
वर्ष 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के बाद इन बिहारी मुसलमानों को बांग्लादेश सरकार ने लगभग 116 अस्थाई रेफ़्यूजी कैम्प में रखा और पाकिस्तान सरकार से उन्हें पाकिस्तान ले जाने का आग्रह किया। पाकिस्तान सरकार ने अगले दस वर्षों के दौरान लगभग 163,000 ऐसे बिहारी मुस्लिम को पाकिस्तान ले जाकर बसाया। पाकिस्तान में इन बिहारी मुस्लिमों को बसाने की प्रक्रिया आज भी जारी है।
इस अभियान में संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर दुनियाँ के कई मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद की है लेकिन आज तक यह कार्य पूरा नहीं हो पाया है। इस दौरान बिहारी मुसलमानों को सर्वप्रथम और सर्वाधिक मदद दुनियाँ के अलग अलग हिस्सों में रहने वाले बिहारी मुसलमानों ने किया।
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बांग्लादेश के बंगाली मुसलमानों और सरकार का आरोप है कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान बिहारी मुसलमानों ने पाकिस्तानी आर्मी का साथ दिया था। इससे पहले बांग्लादेश में वर्ष 1970 में सम्पन्न हुए चुनाव में इन बिहारी मुसलमानों ने पश्चिमी पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन किया था जिससे बंगाली राजनेता के साथ साथ लोग भी इनसे नाराज़ थे। बांग्लादेश की आज़ादी के बाद भी बांग्लादेश के इन बिहारी मुस्लिम के रेफ़्यूजी कैम्प में पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे, पाकिस्तान के झंडे और बांग्लादेश या भारत के साथ पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच के दौरान बिहारी मुसलमानों ने पाकिस्तान का सपोर्ट करते थे।
पाकिस्तान में बिहारी रेफ़्यूजी:
इस दौरान बांग्लादेश में रेफ़्यूजी की ज़िंदगी जी रहे बिहारी मुस्लिम के साथ साथ पाकिस्तान बस चुके बिहारी मुस्लिम की परेशनियाँ कम नहीं हुई है। पाकिस्तान की स्थानीय नागरिकों ने पाकिस्तान सरकार की बिहारी मुस्लिम को पाकिस्तान में बसाने लगातार विरोध कर रही है। 1990 के दशक के दौरान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इन बिहारी मुस्लिम की बस्तियों पर कई बार हमले हुए, बम फटे और मौतें हुई। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इन बिहारी मुस्लिम को पाकिस्तान में बसने से रोकने के लिए वहाँ के स्थानीय मुसलमानों द्वारा ‘बिहारी रोको अभियान’ चलाया गया।
एक मौक़े पर तो बेनजीर भुट्टो ने तो यहाँ तक कह दिया था कि अगर बिहारी मुस्लिम को सिंध में बसने दिया जाएगा तो सिंध में पाकिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ अलगाववादी ताक़तें सिंध को पाकिस्तान से अलग करने की लड़ाई में सफल हो जाएँगे। इसके अलावा पाकिस्तान सरकार ने प्रतिक्रिया में पाकिस्तान में बसे लगभग सात सौ बंगाली मुस्लिम को देश निकाला दे दिया। इस दौरान कई पाकिस्तानी राजनेता ने भी बिहारी मुस्लिम को पाकिस्तान में बसाने की नीति को बंद करने का प्रयास किया और विश्व के अन्य मुस्लिम देशों से उन्हें अपने देश में बसाने का अहवाहन भी कर चुके हैं।
बांग्लादेश के इन बिहारी मुस्लिम रेफ़्यूजी में से कुछ नेपाल के रास्ते और कुछ पंजाब के रास्ते पाकिस्तान में ग़ैर-क़ानूनी ढंग से घुशपैठ करके पहुँचे। पंजाब में खलिस्तनी भिंडरवाला इन्हें पाकिस्तान घुशपैठ करने में इनकी मदद करता था। जब स्वर्ण मंदिर पर भारतीय सेना ही हमला किया था तब मंदिर परिसर के दर्जनों बिहारी मुस्लिम रेफ़्यूजी को पकड़ा गया था।
राहत:
दूसरी तरफ़ पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनो जगह ज़िल्लत की ज़िंदगी जी रहे ये बिहारी मुस्लिम पाकिस्तान और बांग्लादेश सरकार के ख़िलाफ़ आए दिन भूख हड़ताल, विरोध यात्रा, आदि का आयोजन करते रहते हैं ताकि उन्हें जल्दी से जल्दी पाकिस्तान में बसाने का इंतज़ाम किया जा सके लेकिन इसका पाकिस्तान सरकार पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।
अंततः वर्ष 2008 में बांग्लादेश की सर्वोच्च न्यायालय ने बांग्लादेश के रेफ़्यूजी कैम्प में रह रहे बिहारी मुस्लिम को बांग्लादेश की नागरिकता देने और उन्हें मताधिकार का अधिकार देने का आदेश दिया। पाकिस्तानी सरकार की इन बिहारी मुस्लिम के प्रति उदासीन रवैए के कारण अब इन बिहारी मुस्लिम का भी पाकिस्तान मोह भंग हुआ है और बांग्लादेशी समाज का हिस्सा बनने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। हालाँकि बांग्लादेश सरकार ने इन बिहारी मुस्लिम को बांग्लादेश की पूर्ण नागरिकता दे दी है लेकिन आज भी बंगाली समाज इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती है।
विभाजन:
वर्ष 1947-48 के भारत बँटवारे के दौरान लगभग तीन लाख मुसलमान बिहार से बांग्लादेश जाकर बस गए थे। इनमे से ज़्यादातर बिहारी मुस्लिम मज़दूर वर्ग से थे। बांग्लादेश में बिहारी शब्द एक गाली की तरह इस्तेमाल होता था जो सिर्फ़ बिहार से पलायन कर आए बिहारियों के लिए नहीं बल्कि उन सभी लोगों के लिए इस्तेमाल होता था जो हिंदुस्तान के किसी भी क्षेत्र से पलायन कर आते थे।
शुरुआती दौर में जब बिहारी मुस्लिम बांग्लादेश में जाकर बसे तो स्थानीय लोगों ने उनका विरोध नहीं किया लेकिन जब मार्च 1948 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अली जिन्ना ने ढाका में यह घोषणा किया कि उर्दू ही पाकिस्तान के सभी हिस्सों की भाषा होगी तो बांग्लादेश में इसका विरोध होने लगा और उर्दू या हिंदी बोलने वाले लोगों के ख़िलाफ़ स्थानीय लोग हिंसक होते चले गए थे जो अंततः बिहारी मुसलमानों को रेफ़्यूजी बना दिया।

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