कॉम्युनिस्ट और अपराध
एसोसिएशन फ़ोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) की माने तो वर्ष 2017 में हिमाचल प्रदेश में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPI-M) सर्वाधिक आगे थे। प्रदेश में सम्पन्न चुनाव में CPI-M के 71 प्रतिशत उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज थे जबकि 64 प्रतिशत कॉम्युनिस्ट उम्मीदवारों के ऊपर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज थे। (स्त्रोत)
आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में भाजपा भी कॉम्युनिस्टों से कहीं अधिक पीछे है। पिछले चुनाव में भाजपा के 34 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक छवि के थे जबकि 13 प्रतिशत भाजपा उम्मीदवारों के ऊपर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज थे। आपराधिक छवि के लोगों को टिकट देने के मामले में सर्वाधिक साफ़ सुथरा छवि कांग्रेस का था जिनके मात्र 9 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक छवि के थे जबकि मात्र 4 प्रतिशत कांग्रेस उम्मीदवारों के ऊपर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज थे।
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वर्ष 2017 का यह उपरोक्त आँकड़ा अपवाद नहीं है। वर्ष 2012 के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी CPI-M के 63 प्रतिशत उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज थे जबकि 31.25 प्रतिशत कॉम्युनिस्ट उम्मीदवारों के ऊपर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज थे। इसकी तुलना में कांग्रेस के 24 प्रतिशत उम्मीदवारों और भाजपा के 10 प्रतिशत उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज थे जबकि कांग्रेस और भाजपा के क्रमशः 7.35 प्रतिशत और 5.88 प्रतिशत उम्मीदवार के ऊपर गम्भीर आपराधिक धाराएँ लगी हुई थी। (स्त्रोत)
शिमला विधानसभा से CPI-M के उम्मीदवार टिकेंदर पंवार के ऊपर दो हत्या और जोगिन्दर नगर से CPI-M के उम्मीदवार कुशल भारद्वाज के ऊपर हत्या के एक चार्ज लगे हुए थे। दूसरी तरफ़ भाजपा के ज्वालामुखी विधानसभा से उम्मीदवार रमेश चंद के ऊपर भी एक अपहरण के आरोप लगे हुए थे। (स्त्रोत)

कॉम्युनिस्ट और धनबल
गरीब, मज़दूर और किसानों का प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले कॉम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के उम्मीदवारों का औसत चल-अचल सम्पत्ति 2.31 करोड़ थी जबकि बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की औसत सम्पत्ति मात्र 46.78 लाख थी। पूरे हिमाचल प्रदेश के 68 सीटों से लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों में से सर्वाधिक धनी उम्मीदवार शिमला ज़िले के देव राज भारद्वाज थे जो निर्दलीय उम्मीदवार थे।
प्रदेश के दूसरे सर्वाधिक धनी और सभी पार्टियों में से सर्वाधिक धनी उम्मीदवार कॉम्युनिस्ट (M) की टिकट पर शिमला के थेओग विधानसभा से चुनाव लड़ रहे राकेश सिंघा थे। इसके अलावा कॉम्युनिस्ट (M) के 71 प्रतिशत उम्मीदवार ऐसे थे जिन्होंने ITR फ़ाइल ही नहीं किया था। अपने आय के स्त्रोत के स्त्रोत का ब्योरा नहीं देने के मामले में भी कॉम्युनिस्ट (M) अव्वल स्थान पर था। CPI-M के 29 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपने आय का कोई ब्योरा नहीं दिया। (स्त्रोत)
दूसरी तरफ़ अपनी अमीरी के लिए प्रसिद्ध भाजपा उम्मीदवारों की औसत सम्पत्ति मात्र 5.31 करोड़ थी। भाजपा के उम्मीदवार अपने आय का ब्योरा सार्वजनिक करने में सर्वाधिक बेहतर प्रदर्शन किया था। भाजपा के मात्र 18 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपने आय का ब्योरा नहीं दिया था जबकि भाजपा के 94% उम्मीदवारों ने अपना ITR फ़ाइल किया था। अमीरी के मामले में भी CPI-M की अमीरी 2017 के चुनाव तक सीमित नहीं थी बल्कि 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी CPI-M के उम्मीदवारों का औसत सम्पत्ति 1.72 करोड़ थी जबकि भाजपा के उम्मीदवारों की औसत सम्पत्ति 1.55 करोड़ था। (स्त्रोत)

अपराध और चुनाव:
अगर हम हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2017 में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव की तुलना वर्ष 2012 के चुनाव से करें तो लोकतंत्र का एक अन्य चेहरा सामने आता है। 2012 के सम्पन्न चुनाव में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को सफलता मिली थी और 2017 के चुनाव में भाजपा को। वर्ष 2017 के चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवारों में अपराधी छवि के उम्मीदवारों का अनुपात कांग्रेस के उम्मीदवारों से अधिक था जबकि वर्ष 2012 के चुनाव के दौरान आपराधिक छवि के लोगों को टिकट देने के मामले में कांग्रेस भाजपा से आगे थी।
अर्थात् 2012 और 2017 के चुनाव में उस पार्टी को सफलता मिली जिस पार्टी ने सर्वाधिक आपराधिक छवि के लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया। हालाँकि CPI-M इस संदर्भ में एक अपवाद है जो वर्ष 2012 और 2017 दोनो चुनावों में कांग्रेस और भाजपा दोनो से अधिक अनुपात में आपराधिक छवि के लोगों को टिकट दिया लेकिन उसके बावजूद उन्हें कोई ख़ास सफलता नहीं मिली। वर्ष 2017 के चुनाव के दौरान सभी पार्टियों के सभी उम्मीदवारों में से सर्वाधिक आमिर उम्मीदवार कॉम्युनिस्ट (M) की टिकट पर शिमला के थेओग विधानसभा से चुनाव लड़ रहे राकेश सिंघा को सफलता मिली।
हालाँकि एक धारणा यह भी है कि चुकी CPI-M के नेता और कार्यकर्ता राज्य, शासन, प्रशासन और व्यवस्था के ख़िलाफ़ निरंतर धरना-प्रदर्शन में संलग्न रहते हैं इसलिए उनके ख़िलाफ़ राज्य और पुलिस झूठे और फ़र्ज़ी आधार पर मुक़दमे दर्ज करते रहती है इसलिए कॉम्युनिस्ट (M) उम्मीदवारों में आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों का अनुपात ज़्यादा होता है।
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