‘मोतीबाग’ फ़िल्म को देखकर जितना खुश हुआ था मैं ‘यकुलांस’ देखकर उतना ही ग़ुस्सा हूँ। ‘मोती बाग’ हिंदी शब्द है पर पहाड़ी दर्द को बयान करता है। यकुलांस एक पहाड़ी शब्द है पर शहरी पीड़ा भी नहीं बल्कि उनके ग़ुस्से को दर्शाता प्रतीत होता है। मेरा ग़ुस्सा उनके (यकुलांस बनाने वालों) ग़ुस्से का जवाब है।
पूरी फ़िल्म (यकुलांस) में पहाड़ में रह रहे व्यक्ति को एक भी वाक्य बोलने का अधिकार नहीं देता है और फ़िल्म जब बोलता है तो रैप के माध्यम से शहरी ज्ञान को बखारता है। वहीं मोती बाग फ़िल्म शुरू भी होता है पहाड़ में रह रहे एक बुजुर्ग के शब्दों से और ख़त्म भी उन्हीं के शब्दों से होता है। ‘मोती बाग‘, पहाड़ियों की ज़ुबानी पहाड़ की कहानी बताती है और ‘यकुलांस’ पहाड़ी भाषा की ज़ुबानी शहर के ग़ुस्से को दिखाने का प्रयास करता है।

शायद यही कारण होगा कि ‘मोती बाग’ को ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामित किया गया था यकुलांस को देहरादून में रह रहे मध्य वर्गीय तथाकथित पहाड़ी लोगों के द्वारा पहाड़ी पुरस्कार के लिए नामित किया जाय। पर यक़ीन मानिए यह फ़िल्म पलायन कर चुके लोगों के बीच ‘मोती बाग’ फ़िल्म से सौ से भी अधिक गुना ख्याति हासिल करेगा। YouTube पर ‘मोती बाग’ को पिछले दो वर्षों में जितने लोगों ने देखा है उतने लोगों ने ‘यकुलांस’ को पिछले चौबीस घंटे में देख चुके हैं। वैसे भी हिंदुस्तान में सर्वोत्तम फ़िल्म का राष्ट्रीय फ़िल्म का पुरस्कार जितने वाली सभी फ़िल्में सलमान, शाहरुख़ जैसे महानायकों की मशालादार फ़िल्मों के सामने कब टिकी है।
यकुलांस की कहानी:
यकुलांस (उत्तराखंड में गढ़वाली भाषा में एक शब्द) जिसका मतलब है अकेलापन का अहसास। यकुलांस एक लघु फिल्म है जिसे Pandavaas द्वारा निर्मित किया गया है।
मुख्य रूप से यह फिल्म उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्र नीति घाटी के बंपा और गमशाली गांव में फिल्माया गया है। यह क्षेत्र उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में आता है जहां जीवन अत्यंत कठिन है। यहां मुख्यतः रोंगपा समुदाय के लोग रहते है। रोंगपा एक तिब्बती शब्द है जिसका अर्थ है कठोर घाटियों में रहने वाले लोग।
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कहानी की शुरुआत एक आम वृद्ध इंसान से होती है जो जीवन के सबसे कठिन समय (वृद्धावस्था) को अकेले ही दूरस्थ गांव में पत्थरों से बने एक छोटे से घर में व्यतीत कर रहे है। पत्नी का साथ छूट चुका है और एक बेटा और बहू है जो उनसे दूर शहर में रहते है। शायद नौकरी की वजह से। बचा रह गया उनके साथ उनका खेत, पेड़, दो बैल, कुछ भेड़-बकरी, एक कुत्ता, एक रेडीयो और एक फ़ोन जिसमें कभी नेटवर्क नहीं आता।
यह फ़िल्म पहाड़ ख़ाली कर चुके पहाड़ियों का पहाड़ के प्रति नस्टेलज्या (भूतकाल की किसी अवधि की याद) को दर्शाता है। हालाँकि Nostalgia शब्द का शाब्दिक अर्थ विषाद, खिन्नता, और उदासी भी है। यह खिन्नता फ़िल्म अपने दूसरे हाफ़ में शहर वालों (देहरादून) को चोर और लुटेरा साबित करने का प्रयास करता है।
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‘यकुलांस’ फ़िल्म का कम से कम एक पक्ष है जो ‘मोती बाग’ से इसे बेहतर बनाता है। ‘मोती बाग’ फ़िल्म पौड़ी गढ़वाल के एक गाँव में रह रहे एक असाधारण वृद्ध व्यक्ति की कहानी है जिन्होंने कृषि में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है। इसके विपरीत ‘यकुलांस’ एक ऐसे वृद्ध व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमता है जो बिलकुल साधारण है। हालाँकि ‘मोती बाग’ फ़िल्म में भी दूसरा महत्वपूर्ण किरदार उस दूटियाल/नेपाली/बहादुर का है जो उस वृद्ध व्यक्ति के खेतों में मज़दूरी करता है। इन दोनो किरेदारों के सहारे ‘मोती बाग’ पहाड़ के कई अनछुए पक्षों को उजागर करता है जिसमें पहाड़ों के प्रति भावुकता और आलोचना दोनो शामिल है।
कैमरा के इस्तेमाल के पक्ष में भी ‘यकुलांस’ एक अलग ही पद्धति के साथ प्रयोग करता दिखेगा। पांडवास समूह, जिन्होंने ये फ़िल्म बनाई है वो गीत-संगीत और संस्कृति के साथ आधुनिकता का मिश्रण करने की तकनीक के लिए जाने जाते हैं जिसे इस फ़िल्म में बखूबी देखा जा सकता है। पर बौद्धिकता के स्तर पर पांडवास समूह को और मेहनत करने की आवश्यकता है और विशेषज्ञों से राय लेने की ज़रूरत है।
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