HomeHimalayasपहाड़ी फ़ेमिनिज़म: मलु शाही और रजुलि की कुमाऊँनी प्रेम कहानी

पहाड़ी फ़ेमिनिज़म: मलु शाही और रजुलि की कुमाऊँनी प्रेम कहानी

मलु शाही और रजुलि की प्रेम कहानी पर फ़िल्म और नाटक भी बन चुके हैं जिसका मंचन पहाड़ों से बाहर दिल्ली में भी हो चुका है।

मलु शाही 14वीं सदी के दौरान कुमाऊँ के बैरत राज्य के राजकुमार थे जिनकी प्रेम कहानी आज भी प्रसिद्ध है। रजुलि, भोट देश (भूटिया) के एक व्यापारी की बेटी थी। रौजलि के जन्म से पहले ही उसके पिता ने उसकी शादी तिब्बत के राजकुमार से तय कर चुके थे। एक बार रजुलि अपने पिता के साथ तिब्बती नमक बेचने और कुमाऊँनी चावल ख़रीदने बैरत राज्य आए। बैरत के राजकुमार और रजुलि ने एक दूसरे को देखा और एक ही नज़र में मोहब्बत हो गई।

“मलु शाही और रजुलि की प्रेम कहानी कुमाऊँ से लेकर गढ़वाल तक प्रचलित है”

दोनो की प्रेम कहानी आगे बढ़ी और दोनो छुप छुप कर मिलने लगे। जब रजुलि के पिता को इसकी खबर हुई तो वो वापस भोट देश पहुँचकर सबसे पहले रजुलि की शादी तिब्बत के राजकुमार से कर दिए। रजुलि अपने ससुराल तिब्बत चली तो गई पर अपनी प्रेम कहानी का अंत नहीं सहन कर पाई और मोहब्बत की याद में एक दिन मौक़ा मिलते ही रजुलि वहाँ से भाग गई। सात हिमालय पार करके अंततः वो मलु शाही के पास पहुँच गई।

अब समय आया मोहब्बत में परीक्षा लेने की घड़ी। एक दिन रजुलि बिना किसी को कुछ बताए बैरत राज्य छोड़कर अपने पिता के पास भोट देश चली गई। वहाँ पहुँचकर उसने अपने प्रेमी मलु शाही को पत्र लिखा, “जब मुझे व्याह कर तिब्बत देश भेज दिया गया था तो मैं रोज़ आपको दुबारा देखने की तमन्ना में तड़पती रही, और एक दिन आपके प्रेम में सबकूछ छोड़कर आपके पास आ गई। अब आपको वो प्रेम की तमन्ना दिखाने की बारी है। क्या आप अपनी मोहब्बत को पाने के लिए मुझ तक पहुँच सकते हैं?”

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मलु शाही ने अपनी सेना और जादूगरों के साथ योगी का भेष बदलकर भोट देश की तरफ़ चल दिया। उधर तिब्बत का राजा और रजुलि का पति भी अपनी सेना और जादूगर लेकर भोट देश पहुँच गया। दोनो तरफ़ के जादूगरों के बीच युद्ध हुआ और अंततः प्रेम कहानी की जीत हुई। रजुलि को डोली में बिठाकर बैरत लाया गया और मोहब्बत एक हुआ। ये कहानी आज भी कुमाऊँ में हरकिया समाज के लोग नाटकमयी और संगीतमय रूप में सुनाते हैं। एक नज़रिए से देखे तो इस कहानी में नारीवाद/फ़ेमिनिज़म के वो सारे लक्षण दिखते हैं जो महिला-पुरुष के बीच प्रेम कहानी को बराबरी की नज़र से देखता है।

रजुलि
रजुलि और मालु शाही कहानी पर बना म्यूज़िक अल्बम का छायाचित्र।

कुमाऊँ में दो देश था: ‘भुट देश’ और ‘पहाड़ देश’। ’भुट देश’, भूटिया जनजाति का देश था और बैरत राज्य ‘पहाड़ देश’ का हिस्सा था! तिब्बत और दक्षिणी कुमाऊँ के बीच बसा क्षेत्र जिनकी चोटियाँ कुमाऊँ की चोटियों से कहीं अधिक ऊँची और खूबसूरत थी और है। 1960 तक तिब्बत और कुमाऊँ के बीच व्यापार भूटिया ही किया करते थे। ‘पहाड़ देश’ में तीन तरह के लोग भी रहते थे: ब्रह्म, ख़सिया और डोम।

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ब्राह्मण चौदहवीं सदी में मैदानो से आकर पहाड़ों बस गए जबकि अपने आप को आर्य कहने वाले ख़सिया ब्रह्म के आने से पहले से ही क्षेत्र में जमे हुए थे। इन्होंने वेद ग्रंथों का पालन नहीं किया इसलिए इन्हें नीच करार दे दिया गया। मनोरंजन के साथ धर्म-पाठ व जागर के साथ देवी-देवता, भूत-प्रेत करने के लिए डोम समाज से हरकिया और खिस्सा-कहानी और संगीत सुनने के लिए ढोली नामक लोगों को अलग कर दिया। ढोली समाज के लोग ही डोली ढोने का काम किया करते थे। माना जाता है कि ढोली गंदर्भ विध्या के जानकर हुआ करते थे। डोम, बाक़ी हिंदुस्तान की तरह यहाँ भी आर्यों के बंदी-ग़ुलाम थे।

उत्तराखंड के कलाकार मोहन उप्रेती ने दिल्ली में सफ़दर हाशमी जैसे महान नाटककारों के साथ सत्तर से लेकर नब्बे के दशक के दौरान रजुलि और मलु शाह की प्रेम कहानी कहानी के दर्जनो दफ़ा नाट्य रूपांतरण किया था। इस कहानी पर आधारित कई लोकगीत आपको आज भी यूटूब पर मिल जाएँगे। एक खबर के अनुसार इस प्रेम कहानी पर बहुत जल्दी एक फ़िल्म भी बनने वाली है।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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