28 मई 2023 को हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन करने वाले हैं जबकि विपक्ष के 19 दलों ने इस कार्यक्रम का इस माँग के साथ विरोध किया है कि संसद के मुखिया होने के नाते नए संसद का उद्घाटन अगर राष्ट्रपति करेंगे तभी वो इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। इससे पहले 18 जनवरी 1927 में वर्तमान भारतीय संसद भवन का उद्घाटन देश के वायसराय लॉर्ड इर्विन ने किया था। उस समय इर्विन को उद्घाटन का आमंत्रण भी एक भारतीय भूपेन्द्र नाथ मित्र ने दिया था जो गवर्नर जेनरल इग्ज़ेक्युटिव काउन्सिल के सदस्य थे।

नए संसद भवन के विपरीत अंग्रेजों द्वारा बनाए गए वर्तमान संसद भवन के निर्माण की प्रक्रिया भिन्न थी लेकिन नए संसद भवन की तरह वर्तमान संसद भवन के निर्माण की प्रक्रिया भी कई तरह के विवादों से घिरा रहा था। वर्तमान संसद भवन के निर्माण से सम्बंधित सर्वाधिक विदित विवाद था उसकी वास्तुकला (आर्किटेक्चर) के सवाल पर दो मुख्य वास्तुकारों एड्विन्स लूट्यन्स और हर्बर्ट बेकर के बीच संसद की इमारत की वास्तुकला की संरचना के विषय पर थी।
संसद भवन और भारतीयता:
हर्बर्ट बेकर ने हिंदुस्तान के लिए त्रिकोणीय संसद भवन की संरचना तैयार किया जबकि लूट्यन्स ने वर्तमान वृताकार संरचना तैयार किया था। इन दोनो के अलावा एक वर्गाकार डिज़ाइन भी तैयार किया गया था। अंततः 10 जनवरी 1920 को न्यू कैपिटल कमिटी ने लूट्यन्स के वृत्ताकार डिज़ाइन पर सहमति दे दिया और वर्ष 2021 में कार्य प्रारम्भ हुआ। भवन के डिज़ाइन के मुद्दे पर लूट्यन्स और बेकर के बीच उत्पन्न विवाद के कारण दोनो की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई और अपने जीवन के अंतिम समय तक उनके बीच दोस्ती नहीं हो पायी थी।
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एक मान्यता के अनुसार लूट्यन्स द्वारा तैयार संसद की वास्तुकला बहुत हद तक मध्य प्रदेश के मोरेना ज़िले के मिटाओली में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर से प्रभावित है। हालाँकि किस भी ब्रिटिश वास्तुकार ने कभी इस बात की पुष्टि नहीं की थी लेकिन ब्रिटिश वास्तुकारों का एक बड़ा वर्ग हर संभव प्रयास किया कि भारतीय संसद निर्माण में भारतीय इतिहास, संस्कृति और भारतीय परिस्थिति का विशेष ध्यान रखा जाए ताकि संसद की इमारत भारतीयता और ब्रिटिश साम्राज्य का संगम को प्रदर्शित करे। बेकर की डिज़ाइन के ख़िलाफ़ कई ब्रिटिश वास्तुकारों ने भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रिन्सिपल सेक्रेटेरी ओफ़ स्टेट को पत्र लिखा और भारतीय वास्तुकारों को डिज़ाइन बनाने की प्रक्रिया में शामिल करने का आग्रह किया।
उस समय के वायसराय लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग ने भी सलाह दिया कि भारतीय संसद भवन पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता का संगम को प्रदर्शित करे। भवन पूरी तरह भारतीय सेंटिमेंट के अनुसार बनाया जाए।” यही कारण है कि ब्रिटिश द्वारा निर्मित भारतीय संसद के साथ साथ नयी राजधानी में अंग्रेजों द्वारा निर्मित अन्य इमारतों के कई हिस्सों में हिंदू मंदिर, बुद्ध स्तूप के साथ साथ मुग़ल वास्तुकला की भी झलक देखने को मिलती है।

भवन निर्माण:
ब्रिटिश हिंदुस्तान में संसद भवन निर्माण की प्रक्रिया वर्ष 1911 में ही प्रारम्भ हो गई थी जब दिल्ली दरबार के दौरान ब्रिटेन के राजा ने यह घोषणा किया कि हिंदुस्तान की राजधानी को कलकत्ता से स्थान्तरित कर दिल्ली किया जाएगा। इस घोषणा के बाद तीन सदस्य वाले दिल्ली टाउन प्लानिंग कमिशन का गठन हुआ। कमिशन ने दो वास्तुकारों का नाम फ़ाइनल किया : Henry Vaughan Lanchester और Edwin Landseer Lutyens. अंततः Lord Crewe का नाम फ़ाइनल हुआ। ब्रिटेन के राजा ने कमिशन के सामने सिर्फ़ एक शर्त रखी कि राजधानी की कोई भी इमारत उस क्षेत्र में नहीं बने जहाँ 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश सेनाओं और नागरिकों की मौत हुई थी।

जब वर्ष 1921 में संसद भवन की इमारत का निर्माण प्रारम्भ किया तो इसके लिए लगभग 2500 पत्थर काटने वाली मशीन लगाई गई। लुटियन ने इन इमारतों में चित्रकारी और नक्कासी करने के लिए भारतीय कलाकारों को रखा और भारतीय लकड़ियों व पत्थरों का इस्तेमाल किया। यहाँ तक क़ालीन, चादर आदि भी भारतीय लगाए गए।

जब दिल्ली को राजधानी बनाने का फ़ैसला लिया गया तब संसद भवन की इमारत का नाम काउन्सिल हाउस था जो राष्ट्रपति भवन का ही हिस्सा था। लेकिन 1919 के संवैधानिक सुधार अधिनियम में संसद के लिए पृथक भवन का निर्माण करने की अनुसंसा की गई थी क्यूँकि भारतीय अधिनियम 1919 के अनुसार अब हिंदुस्तान में प्रांतीय चुनाव होने थे जिससे संसद में प्रतिनिधियों की संख्या में बढ़ोतरी होने वाली थी। वर्ष 1921 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संसद भवन की नींव रखी और निर्माण प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। वर्ष 1927 में हिंदुस्तान के वायसराय लॉर्ड इर्विन द्वारा इस भवन का उद्घाटन किया गया।

नया संसद भवन:
28 मई को बिमल पटेल द्वारा नवनिर्मित संसद की संरचना काफ़ी हद तक हर्बर्ट बेकर की संरचना से मिलती है। दोनो की संरचना त्रिकोणीय है। ये वही बेकर थे जिन्होंने 3 अक्टूबर 1912 को द टाइम्स को लिखे अपने पत्र में लिखा, “भारत में ब्रिटिश शासन सिर्फ़ सरकार और संस्कृति की निशानी नहीं है। भारत में ब्रिटिश शासन एक नयी सभ्यता का प्रतीक है। दिल्ली की वास्तुकला का डिज़ाइन बनाते समय ब्रिटिश शासन के इस पक्ष को ज़रूर शामिल करना चाहिए।”
बेकर और लूट्यन्स द्वारा निर्मित संसद भवन की वास्तुकला के विपरीत बिमल पटेल द्वारा निर्मित नए संसद में तीन की जगह दो हॉल ही होंगे। दरअसल नए संसद में संसद के दोनो सदनों के संयुक्त अधिवेशन के लिए पृथक हॉल नहीं बनाया जा रहा है बल्कि लोकसभा के हॉल को ही संयुक्त सदन के लिए इस्तेमाल होगा। जबकि पुराने संसद में लोक सभा और राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन के लिए पृथक हॉल निर्मित था जिसे सेंट्रल हॉल भी बोला जाता है। भारतीय संविधान पर चर्चा और उसका निर्माण भी इसी हॉल में हुआ था जिसमें लगभग आठ सौ लोगों के बैठने की क्षमता है।

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