बहस:
इस देश को मणिपुर हिंसा पर बहस की ज़रूरत नहीं है अब। इस देश को खुद पे बहस की ज़रूरत है। मणिपुर तो कब के हो चुके हैं हम सब। कौरवों ने भी उस हिंसा जो जस्टिफ़ायड नहीं किया था, उसमें धर्म नहीं ढूँढा था, उसमें कोई जाति नहीं ढूँढी थी, हम तो झटके में सब कुछ ढूँढ लेते हैं, गूगल कर लेते हैं, फिर फ़ेस्बुक पर उढेल भी देते हैं, और इसमें भी ज़्यादा मेहनत लगे तो वट्सऐप पर सिर्फ़ फ़ॉर्वर्ड कर बैठते हैं। हम बहस कर लेते हैं, जिसमें सिर्फ़ हम, हम और सिर्फ़ हम होते हैं। अपने लोगों से घिरे, अपने पूर्वाग्रहों से घिरे, उनके तलाश में जो हमारी भी पीठ थपथपा दे बस।
इस विषय पर हमारे विडीओ देखे:
१) मणिपुर और कृष्ण के महाभारत के बीच क्या है द्वंध? (https://www.youtube.com/watch?v=QnKAyA_b_9M)
२) What Did Loknayak Jayprakash Narayan Said About Manipur Issue? (https://www.youtube.com/watch?v=84vqOyQwzA0)
३) Possibility of Manipur Like Situation in Uttarakhand in Decades to Come. (https://www.youtube.com/watch?v=ysHfHBsQrmU)
हम संवेदनहीन हो चुके हैं, इस देश को मणिपुर हिंसा पर बहस की ज़रूरत नहीं है अब। इस देश को हमारी बढ़ती संवेदनहीनता पर बहस की ज़रूरत है। हिंसा तो फिर किसी नए नाम से, किसी नए पहचान से आ जाएगी, जैसे बादशाह और शहंशाह गद्दी के लिए भाइयों को मार देते थे, नेता सत्ता के लिए और सत्ता वोट के लिए और हम सिर्फ़ अपनी नाकामी को छुपाने के लिए।
देश का विभाजन भी तो हुआ था। लाशों से भरी हुई ट्रेनें भी तो आइ थी और गई भी थी? ये तो फिर भी सुदूर उत्तर पूर्व का एक छोटा सा राज्य है। इसी दिल्ली ने भी तो दिनदहाड़े सिखों का क़त्लेआम देखा था। शहंशाह खुद खड़ा होकर गुजरात में घर जलवाए थे। एक के साथ दर्जनों ने वो सब कुछ सरेआम किया था, जो करने के लिए हम रात में सबके सोने का इंतज़ार करते हैं। छुपकर धीरे से करते हैं ताकि बच्चे ना देख ले।
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मणिपुर में सबने खुलेआम सड़कों पर कर डाला? मणिपुर में बच्चे नहीं होते हैं क्या? मणिपुर में क्या हिंदुस्तान में ही बच्चे बचे हैं कहाँ अब? ज़रूरत भी क्या है, अभी जनसंख्या कंट्रोल भी तो करना है।
शहंशाहों और नेताओं के अपने फ़ायदे हैं, अपने तर्क हैं, हमारे बचपन को मारने के, हमें शिक्षित करने के, हमें संवेदनहिन बनाने के, हमें हिंसक बनाने के, लेकिन हमारे पास क्या तर्क है? खुद को इसका हिस्सा बनाने का, इस तरह से भिड़ का हिस्सा बनने के पीछे। मणिपुर और मणिपुरियों के इतिहास को निचोड़ा जा रहा है ताकि कहीं तो कुछ ख़ामी निकले और हम उन्हें नंगा करने को जस्टिफ़ायड करने के लिए इतिहास का हवाला दे सकें।
अख़लाक़ को पिट पिट कर मारने के लिए भी हमने उसी इतिहास, उसी हज़ार साल की ग़ुलामी और उसी धर्मांतरण के इतिहास का हवाला दिया था और अब मणिपुरियों के लिए। समय का इंतज़ार कीजिए आपका भी नम्बर आएगा, आपका भी आएगा, और भाई साहब आपका भी आएगा, क्यूँकि इतिहास तो आपका भी है और जो नहीं है तो लिख दिया जाएगा, आपका भी इतिहास लिखा जाएगा।
मणिपुर का कुकी समाज:
मारना ही चाहिए, कुकी को तो मारना ही चाहिए, ग़द्दार हैं सब के सब, लालच में अपने सनातन धर्म को छोड़कर ईसाई बन गए, अब जब मुसलमान पाकिस्तान जा रहे हैं तो वो भी चले जाएँ, ये गांधी-नेहरू जैसे ग़द्दारों वाला हिंदुस्तान नहीं है जो पाकिस्तान कि तरह इन्हें कोई कूकिस्तान दे देंगे। वैसे ही अम्बेडकर ने इन्हें ST का स्टैटुस देकर बहुत बड़ी गलती की थी,
लेकिन पाप कहाँ से धोएँगे ये लोग, सनातन धर्म के साथ धोखा देने का पाप। देश के ग़द्दारों ने इन ग़द्दारों को सब तरह का रेवड़ी दिया लेकिन अधर्म का तो सदा नशा होता ही है। इतना कुछ रेवड़ी मिलने के बाद भी सनातनी मैतई की मेहनत ने मैतई क्षेत्र में वो सारी सुविधाएँ उपलब्ध करवायी जो इन अधर्मियों को कभी नहीं मिल पाएगा। सारे यूनिवर्सिटी सारे हॉस्पिटल, सारी सड़के, सारे उद्धोग सबने धर्म और अधर्म की इस लड़ाई में धर्म का साथ दिया।
महाभारत और मणिपुर:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
सच कहा था कृष्ण ने महाभारत में, जब जब धर्म की हानि होगी उनका अवतार आएगा, कुछ लोगों के लिए तो ये अवतार आ भी चुका है। जो धर्म के लिए धर्म की लड़ाई लड़ रहा है, मंदिर बना रहा है, मस्जिद तोड़ रहा है, पूजा कर रहा है और अधर्मियों का नाश कर रहा है।
कृष्ण का ये अवतार थोड़ा ही तो अलग है, कृष्ण से, कृष्ण के सारे अवतार कौन से एक जैसे थे, इतिहास में। राम मर्यादा पुरशोत्तम थे, कृष्ण गोपियों के लिए कान्हा, कन्हैया, से लेकर छलिया, नटवर, मोहनी तक थे। तो क्या मज़ाक़ में गोपियों का वस्त्र चुराते-चुराते कृष्ण के नए अवतार अब इतने निर्लज हो जाएँगे कि खुद द्रोपड़ी का चिर-हरण करने लगेंगे।
द्वापर युग में तो दुशासन और दुर्योधन को छोड़ दे तो बाक़ी सब शर्मिंदा थे द्रोपति के चिरहरण पर, कौरव भी शर्मिंद थे, बंद महल में उस चिर-हरण पर। इस कलयूग की द्रोपड़ी को तो सरेआम नंगा किया गया, सबके सामने किया गया, सड़कों पर। समझ में नहीं आ रहा है कि कौरव कौन है, और पांडव कौन है, इस द्रोपदी का, शायद द्रोपदी खुद पाप बन गई है, अधर्मी हो गई है, कृष्ण के लिए, राम के लिए और इस राम राज्य के लिए।
मुबारक हो आपका ये राम राज्य, हमें दुर्योधन का वो हस्तिनापुर ही लौट दीजिए, दुर्योधन के हस्तिनापुर में कम से कम कृष्ण दर्शन तो देंगे, द्रोपड़ी को साड़ी देने के नाम पर ही सही, लेकिन आएँगे तो सही , और पितामह, पितामह शर्म से कम से कम आँख तो बंद कर लेंगे, हमारी तरह वट्सऐप फ़ॉर्वर्ड तो नहीं करेंगे न। हस्तिनापुर को अब द्रोपड़ी के ऊपर बहस करने की ज़रूरत नहीं है। इस देश को मणिपुर हिंसा पर बहस की ज़रूरत नहीं है।

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