आशीर्वाद,
आज कल मैं (राजेंद्र प्रसाद) अच्छा हूँ। वहाँ का ख़ैरियत चाहता हूँ कि सब सुखी हो। वहाँ का समाचार नहीं मिला है इसीलिए वहाँ का फ़िक्र है। आगे पहले मैं कुछ मन की बात खुलकर लिखना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम इसे ध्यान से पढ़ो और इसपर तुम खूब विचार करना और इसपर अपना विचार लिखकर मुझे बताना।
सब कोई जानता है कि मैंने बहुत पढ़ाई की, बहुत नाम हुआ, और इससे मैं बहुत रुपया कमाऊँगा। सबको यही उम्मीद है कि मेरी पढ़ाई-लिखाई सब रुपया कमाने के लिए है। तुम्हारा मन क्या है, लिखना। तुम मुझे सिर्फ़ रुपया कमाने के लिए चाहती हो या किसी और भी काम के लिए?
लड़कपन से ही मेरा मन रुपया कमाने से हट गया है। और जब मेरा पढ़ने में नाम हुआ तब कभी यह उम्मीद नहीं की कि ये सब रुपया कमाने के वास्ते हो रहा है। इसीलिए, अब मैं ऐसी बात तुमसे पूछ रहा हूँ कि अगर मैं रुपया ना कमाऊँ तो क्या तुम ग़रीबी से मेरे साथ में गुजर कर लोगी ना? मेरा और तुम्हारा सम्बंध जनम भर के लिए है। क्या मैं जब रुपया कमाऊँगा तभी तुम मेरे साथ रहोगी? नहीं कमाऊँगा तब भी मेरे साथ रहोगी?
लेकिन मुझे ये पूछना है कि अगर मैं रुपया नहीं कमाऊँ तो तुमको कोई तकलीफ़ होगी या नहीं? मेरा जो मन है वो रुपया कमाने से फिर गया है। मैं रुपया नहीं कमना चाहता हूँ। तुमसे एक बात पूछ रहा हूँ, कि ये बात तुमको कैसी लगेगी? अगर मैं नहीं कमाऊँगा तो तुमको मेरे साथ ग़रीबों के जैसा रहना होगा। ग़रीबों जैसा खाना, ग़रीबों जैसा पहनना, गरीब मन करके रहना होगा।
मैंने मेरे मन में सोचा है कि मुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी। लेकिन तुम्हारे मन की जान लेना चाहता हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी पत्नी सीता के जैसी, जैसे मैं रहूँगा वैसी ही रहेगी। दुःख में, सुख में मेरे साथ रहने को अपना धर्म, अपना सुख, अपना ख़ुशी जानेगी।

इस दुनियाँ में रुपए के लालच से लोग मरे जा रहे हैं। जो गरीब है वो भी मर रहा है। जो धनी है वो भी मर रहा है। फिर क्यूँ तकलीफ़ उठाए? जिसको सब्र है, वही सुख से दिन काट रहा है। सुख-दुःख किसी के रुपया कमाने या न कमाने से नहीं होता है। कर्म में जो लिखा होता है वही सब होता है।
अब मैं लिखना चाहता हूँ कि अगर मैं रुपया नहीं कमाता हूँ तो क्या करूँगा? पहले तो मैं वकालत करने का ख़्याल छोड़ दूँगा, इम्तहान नहीं दूँगा, वकालत नहीं करूँगा। मैं अपना पूरा समय देश का काम करने में लगाऊँगा। देश के लिए रहना, देश के वास्ते सोचना, देश के लिए काम करना, यही मेरा काम रहेगा।
खुद के लिए न कुछ सोचूँगा और न ही खुद के लिए कोई काम करूँगा, पूरा साधु जैसे रहना। तुमसे, या माता जी से, या किसी और से, मैं कोई अंतर नहीं करूँगा। घर ही रहूँगा, पर रुपया नहीं कमाऊँगा। सन्यासी नहीं बनूँगा। बाक़ी घर रहकर जिस तरह हो सके देश की सेवा करूँगा।
मैं थोड़े दिन में घर आऊँगा, तब सब बात कहूँगा। ये चिट्ठी किसी और को मत दिखाना। बाक़ी सोचकर जवाब जहां तक हो सके जवाब जल्दी लिखना। मैं जवाब के लिए चिंतित रहूँगा। इससे अधिक और इस समय नहीं लिखूँगा।
राजेंद्र
आगे यह चिट्ठी दस बारह दिन से लिखी हुई थी, लेकिन भेज नहीं रहा था। आज भेज दे रहा हूँ। मैं जल्दी ही घर आऊँगा। हो सके तो जवाब लिखना। नहीं तो आने पर बात होगी। चिट्ठी किसी को दिखाना मत।
राजेंद्र प्रसाद
18 मिरजापुर स्ट्रीट
कलकता
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राजेंद्र प्रसाद द्वारा भोजपुरी भाषा में लिखा पत्र:
आशीरबाद
आज कल हमनी (राजेंद्र प्रसाद) का अच्छी तरह से बानीं. उहां के खैर सलाह चाहीं, जे खुसी रहे. आगे एह तरह के हाल ना मिलल, एह से तबिअत अंदेसा में बाटे. आगे पहिले-पहिल कुछ अपना मन के हाल खुल कर के लिखे के चाहत बानी. चाहीं की तु मन दे के पढि के एह पर खूब विचार करिह अउर हमरा पास जवाब लिखिह.
सब केहु जानेला कि हम बहुत पढनी, बहुत नाम भइल, एह से हम बहुत रोपेया कमाईब, से केहु के इहे उम्मेद रहेला कि हमार पढल-लिखल, सब रोपेया कमावे वास्ते बाटे. तोहार का मन हवे से लिखिह. तू हमरा के सिरिफ रोपेया कमावे वास्ते चाहेलू कि कउनो काम वास्ते?
लडकपन से हमार मन रोपेया कमाये से फिर गइल बाटे अउर जब हमार पढे में नाम भइल त कबहीं इ उमेद ना कइलीं कि इ सब रोपेया कमावे वास्ते होत बाटे.एही से हम अब अइसन बात तोहरा से पूछत बानी कि जे हम रोपेया ना कमाईं त तूं गरीबी से हमरा साथ गुजर कर लेबू कि ना? हमार तोहार संबंध जनम भर के खातिर बाटे. जे हम रोपेया कमाईं तबो तू हमरे साथ रहबू? ना कमाई तब्बो हमरे साथे रहबू.
बाकि हमरा इ पूछे के हवे कि जो ना हम रोपेया कमाईं त तोहरा कवनो तरह के तकलीफ होई कि नाही. हमार तबियत रोपेया कमाये से फिर गइल बाटे. हम रोपेया कमाये के नइखी चाहत. तोहरा से एह बात के पूछत बानीं कि इ बात तोहरा कईसन लागी. जो हम ना कमाइब त हमरा साथ गरीब लेखा रहेके होई. गरीबी खाना, गरीबी पहिनना, गरीब मन कर के रहे के होई. हम अपना मन में सोचले बानीं कि हमरा कउनो तकलीफ ना होई बाकि तोहरा मन के हाल जान लेबे के चाहीं.

हमरा पूरा बिषवास बाटे कि हमरा स्त्री सीता जी लेखा जइसे हम रहब ओइसहीं रहिहें. दूख में, सुख में हमरा साथे रहला के आपन धरम आपन सुख आपन खुसी जनिह. एह दुनिया में रोपेया के लालच से लोग मरल जात बाटै, जे गरीब बाटे सेहू मरत बाटे. जे धनी बाटै सेहू मरत बाटै. फिर काहे के तकलीफ उठावे.जेकरा सबुर बाटे, सेही सुख से दिन काटत बाटे. सुख—दुख केहू के रोपेया कमइले आ ना कमइले ना होला. करम में जे लिखल होला सेही सब होला.
अब हम लिखे के चाहत बानी कि हम जे रोपेया ना कमाईब त का करब. पहिले त हम वकालत करेके खेयाल छोड देब. इम्तेहान ना देब. वकालत ना करब. हम देस के काम करे में कुल समय लगाइब. देस वास्ते रहना, देस वास्ते सोचना, देस वास्ते काम करना, इहे हमार काम रहि.
अपना वास्ते ना सोचना, ना काम करना, पूरा साधू अइसन रहेके. तोहरा से चाहे महतारी से चाहे अउर केहू से हम फरक ना रहब. घरहीं रहब बाकिर रोपेया ना कमाईब. संन्यासी ना होखब. बाकि घरे रहि के जे तरह से हो सकी, देस के सेवा करब. हम थोडे दिन में घरे आइब त सब बात कहब. इ चिठी अउर केहू से मत देखइह. बाकि बिचार के जवाब जहां तक जलदी हो सके, लिखिह.हम जवाब वास्ते बहुत फिकिर में रहब.
अधिक एह समय ना लिखब.
राजेंद्र
आगे इ चीठी दस बारह दिन से लिखले रहली हवें. बाकि भेजत ना रहली हवें. आज भेज देत बानी. हम जलदिये घरे आइब. हो सके तो जवाब लिखिह. नाही त अइले पर बात होई. चिठी केहू से देखइह मत.
राजेंद्र
राजेंद्र प्रसाद
18 मिरजापुर स्ट्रीट
कलकता

नोट: निहारिका दुबे जी को राजेंद्र प्रसाद द्वारा भोजपुरी में लिखे इस पत्र को हिन्दी में अनुवाद के दौरान मदद करने के लिए धन्यवाद।
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