HomeHimalayasकिस पट्टी में कौन सी पहाड़ी बोली/भाषा बोली जाती थी?

किस पट्टी में कौन सी पहाड़ी बोली/भाषा बोली जाती थी?

न पहाड़ उत्तराखंड तक सीमित है, न पहाड़ी संस्कृति और न ही पहाड़ी भाषा। पहाड़ तो हिंदुस्तान के मरुस्थल को छोड़कर लगभग सभी क्षेत्र में पाए जाते हैं पर पहाड़ीपन का तमग़ा कुछ क्षेत्रों तक सीमित है। पहाड़ी संस्कृति का विस्तार ग़ैर-परवर्तिय हिमालय के भद्रवाह (उत्तर पंजाब) से लेकर नेपाल के पूर्वी भूभाग तक सीमित है। इस सांस्कृतिक पहाड़ी क्षेत्र के उत्तर में तिब्बती बर्मन भाषा बोली जाती है जबकि पश्चिम और दक्षिण में हिंदी और उसकी अपभ्रंश भाषाएँ बोली जाती है। 

पहाड़ी जैसी कोई भाषा का अस्तित्व नहीं है पर पहाड़ी सांस्कृतिक क्षेत्र में बोली जाने वाली सभी भाषाएँ को समग्र रूप से पहाड़ी बोली जाती है। पहाड़ी भाषाओं को तीन वर्गों में बाट सकते हैं: पूर्व की ख़ास-कुरा (नेपाली); मध्य की कुमाऊँनी व गढ़वाली; और पश्चिम की जो पहाड़ के जौनसार-भाबर से लेकर कुल्लू, मनाली, मंडी, सुकेत, चंबा व पश्चमी कश्मीर तक के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। इस लेख को हम मध्य पहाड़ अर्थात् कुमाऊँ-गढ़वाल तक ही सीमित रखेंगे जिसमें जौनसार-भाबर क्षेत्र शामिल नहीं होगा। 

1901 की जनगणना के अनुसार पहाड़ी भाषा बोलने वाले कुल जनसंख्या में से आधे से अधिक मध्य पहाड़, अर्थात् कुमाऊँ-गढ़वाल क्षेत्र से सम्बंध रखते थे। कुमाऊँनी और गढ़वाली भाषा के भी कई अपभ्रंश हैं जो एक दूसरे से अलग हैं और सभी अपभ्रंशों का अपना एक क्षेत्र हैं जहाँ आपसी बोल-चाल में उसका इस्तेमाल होता है। 

इसे भी पढ़ें: पहाड़ का किताब ऋंखला: 2 (Proverbs & Folklore of Kumaun And Garhwal)

कुमाऊँनी भाषा की बोलियाँ:

कुमाऊँनी भाषा के कम से कम बारह अपभ्रंश हैं जो कुमाऊँ के विभिन्न हिस्सों में बोले जाते थे। ये अपभ्रंश और उनके क्षेत्र निम्नलिखित हैं: 

  1. खसपरजिया: इस बोली का इस्तेमाल अल्मोडा ज़िले के ब्रह्मंडल परगना और पड़ोसी दनपूर पट्टी के लोग करते थे। अल्मोडा शहर इसी क्षेत्र में बसा हुआ है इसलिए इस बोली को असली कुमाऊँनी भाषा समझा जाता है। 
  2. फलदकोटिया: ब्रह्मंडल परगना के दक्षिण पश्चिम में स्थित फलदकोट परगना में इस बोली का इस्तेमाल होता था। यह अल्मोडा ज़िले का दक्षिणतम क्षेत है और कोसी नदी के किनारे नैनीताल जिला के साथ सीमा साझा करता है। 
  3. पछाई: पछाई का शाब्दिक मतलब पश्चिम दिशा से होता है। यह बोली नैनीताल जिले के पाली परगना में बोली जाती है।  यह अल्मोडा ज़िले के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। 
  4. नैनीताल का कुमाऊँनी: अल्मोडा शहर के आस पास रहने वाले सभ्रांत वर्ग के द्वारा बोली जाने वाली बोली को असली कुमाऊँनी कहते हैं। नैनीताल जिले में पाँच अलग अलग तरह की कुमाऊँनी बोली जाती है को जिले की पाँच पट्टियों के नाम पर आधारित है। कोसी नदी के किनारे धनियाकोट और चौथन पट्टी में फलदकोटिया बोली जाती थी, छखाटा परगना में छाखटिया बोली, रामगढ़ परगना में रामगढ़िया बोली, नैनीताल जिले के पूर्वी क्षेत्र में रौ-चौभैसि बोली, 
  5. रामपुर का भाबर: रामपुर परगना के भाबर इलाक़े में बोली जाने वाली बोली भी अलग थी पर पहाड़ी भाषा से बहुत मिलती थी। 
  6. कूमैया: नैनीताल का रौ और चौभैंसी पट्टी का पड़ोसी कली कुमाऊँ परगना कूमैया बोली के लिए जाना जाता है। यह बोली चौभैसि बोली से काफ़ी मिलता-जुलता है। 
  7. चौगरखिया: काली कुमाऊँ परगना के उत्तर-पश्चिम में स्थित है चौगरखा परगना जहाँ के लोग इस बोली का इस्तेमाल करते हैं। यह कूमैया से भी अधिक कुमाऊँनी बोली है। 
  8. गंगोला: गंगोला परगना और दनपूर परगना के पड़ोसी क्षेत्रों में इस बोली का इस्तेमाल होता है। यह क्षेत्र चौगरखिया के पूर्व में स्थित है पर सांस्कृतिक रूप से चौगरखिया से बिल्कुल भिन्न है। 
  9. दनपुरिया: ये बोली दनपूर परगना और जोहार परगना के दक्षिणी हिस्से में बोली जाती थी। इस भाषा क्षेत्र के दक्षिण में गंगोला बोली का इस्तेमाल होता है। 
  10. सोरियल: अल्मोडा ज़िले के काली कुमाऊँ परगना के उत्तर में सोर परगना स्थित थी जिसके उत्तर में अस्कोट और सिरा परगना था। सोर परगना में सोरियल बोली का इस्तेमाल होता था। इतिहास में ये क्षेत्र नेपाल के डोटी प्रांत का हिस्सा था। 
  11. अस्कोटी: नेपाल सीमा से लगे सोर परगना के उत्तर में स्थित अस्कोट (आठ क़िला) अस्कोटी बोली का इस्तेमाल होता है जो सोरियाली बोली से काफ़ी मिलता जुलता है। 
  12. सिरली: अस्कोट राज के पश्चमी भूभाग और सोर के उत्तर में सिरा परगना हैं जहाँ सिरली बोली का इस्तेमाल होता रहा है। ये बिल्कुल सोरियाली बोली की तरह है। 
  13. जोहरि: सिरा परगना और अस्कोट के उत्तरी क्षेत्र जो तिब्बत की सीमा तक जाती उसे जोहार परगना बोलते हैं जहाँ इस पहाड़ी अपभ्रंश का इस्तेमाल होता था। इस क्षेत्र के लोग जोहरि के साथ साथ रंगकस भाषा का भी इस्तेमाल करते हैं। 

इसे भी पढ़ें: पहाड़ में जाति या जाति में पहाड़: पहाड़ी कहावतों की ज़ुबानी

Linguistic Survey of India द्वारा पहाड़ की भाषाओं पर तैयार किया गया रेपोर्ट का कवर पेज।

गढ़वाली भाषा की बोलियाँ:

इसी तरह से गढ़वाली भाषा के भी कई निम्नलिखित अपभ्रंश हैं जिन्हें गढ़वाल के अलग अलग क्षेत्रों में बोला जाता है। 

  1. श्रीनगरिया: ये गढ़वाल राज्य की राजकीय बोली हुआ करती थी जिसका इस्तेमाल राजधानी के आस-पास 
  2. राठी: गढ़वाल जिले के मध्य में स्थित ज़्यादातर हिस्सों में इस भाषा का इस्तेमाल होता था जिनमे चाँदपुर और देवलगढ़ परगना के ज़्यादातर हिस्सों के अलावा पड़ोसी अल्मोडा ज़िले के पाली परगना के मल्ला चनकोट पट्टी के तीस गाँव में भी इस भाषा का इस्तेमाल होता था।
  3. लोहब्या:  चाँदपुर परगना के लोभा पट्टी के साथ साथ पड़ोसी अल्मोडा ज़िले के पाली परगना के पल्ला गेंवर पट्टी के चौदह गाँव में भी इस अपभ्रंश का इस्तेमाल होता था। 
  4. भदानी: लोहब्या की तरह यह भी राठी अपभ्रंश से मिलता-जुलता है और गढ़वाल के बधान परगना में बोला जाता है। 
  5. दसौलया: दसौली परगना और पैनखंड़ा परगना के ज़्यादातर हिस्सों में इसका इस्तेमाल होता था जो आज चमोली जिला का हिस्सा है। ये अपभ्रंश राठी से बहुत हद तक मिलता है। 
  6. माझ कूमैया: ये कुमाऊँ और गढ़वाल के सीमा क्षेत्र में बोला जाता था। गढ़वाल के बधान परगना के अलवा पड़ोसी अल्मोडा ज़िले के कतवूर मल्ला पट्टी के कुछ गाँव व दानपुर परगना के तल्ला दानपुर के कुछ गाँव में बोला जाता था। ये अपभ्रंश भी राठी से बहुत हद तक मिलता है।
  7. नागपुरिया: नागपुर परगना के अलावा इस अपभ्रंश का इस्तेमाल पैनखंडा परगना के कुछ हिस्सों में भी इस्तेमाल होता रहा है। यह माझ कूमैया और दसौलया से काफ़ी मिलता-जुलता है। 
  8. सलनी: ये गढ़वाल जिले के निचले हिस्सों अर्थात् मैदानी या मैदानी हिस्सों के पड़ोसी भूभाग में बोला जाता हैं जिन्हें मल्ला सालन, तल्ला सालन, और गंगा सालन परगना कहा जाता है। इस अपभ्रंश का प्रभाव देहरादून, सहारनपुर, बिजनोर, और मोरादाबाद तक दिखता है। ये श्रीनगरिया अपभ्रंश का ही दूसरा रूप है। 
  9. गंगापरिया: इस अपभ्रंश का इस्तेमाल टेहरी क्षेत्र में होता था। गंगापरिया का शाब्दिक अर्थ भी गंगा के पार होता है। इसके पश्चिम में जौनसारी भाषा का क्षेत्र प्रारम्भ हो जाता है।

Hunt The Haunted के WhatsApp Group से  जुड़ने  के  लिए  यहाँ  क्लिक  करें (लिंक)

Hunt The Haunted के Facebook पेज  से  जुड़ने  के  लिए  यहाँ  क्लिक  करें (लिंक)

Hunt The Haunted Team
Hunt The Haunted Teamhttp://huntthehaunted.com
The Team of Hunt The Haunted consist of both native people from Himalayas as well as plains of north India. One this which is common in all of them and that is the intuition they feel in the hills of Himalayas.
RELATED ARTICLES

4 COMMENTS

Comments are closed.

Most Popular

Current Affairs