भूस्खलन:
जर्मनी के पोस्टडैम विश्वविद्यालय और हिंदुस्तान की प्रतिष्ठित IIT रूरकी द्वारा साझा रूप से किए गए एक शोध के अनुसार पिछले वर्ष सिर्फ़ ऋषिकेश से जोशीमठ के बीच सितम्बर और अक्तूबर माह के दौरान तक़रीबन 300 भूस्खलन हुए थे। ऋषिकेश से जोशीमठ की दूरी तक़रीबन 250 किमी है। अर्थात् अर्थात् इस राष्ट्रीय मार्ग-58 के ऊपर प्रत्येक एक किमी पर एक से अधिक भूस्खलन आते हैं। यह वही वही चारधाम मार्ग है जिसकी 27 दिसम्बर 2016 को देहरादून की एक चुनावी रैली में घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इस सड़क से क्षेत्र में भूस्खलन कम होगा।
चारधाम यात्रा:
यह भूस्खलन सर्वाधिक सितम्बर और अक्तूबर के महीने में होता है जब इस क्षेत्र में भारी मात्रा में बारिश होने के साथ साथ भारी संख्या में चारधाम तीर्थयात्री पर्यटन के लिए आते हैं। वर्ष 2022 के दौरान अकेले बद्रीनाथ में 15,25,183 यात्री आए जो वर्ष 1999 तक मात्र 3,40,100 था। वर्ष 1996 में अमरनाथ आपदा के बाद जाँच कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिदिन अधिकतम 43,00 यात्री को यात्रा करने की इजाज़त दी गई लेकिन उत्तराखंड में वर्ष 2013 में आयी केदारनाथ आपदा के बाद इस तरह का कोई सुझाव या नियम सरकार की तरफ़ से नहीं लागू किया गया।
सड़क-रेल का जाल:
इस शोध में हाल ही में चारधाम यात्रा राष्ट्रीयमार्ग के चौड़ीकरण के फ़ैसले को भी क्षेत्र में बढ़ते भूस्खलन के लिए ज़िम्मेदार बताया है। शोध में यह भी दावा किया गया है कि आगे आने वाले वर्षों में यह भूस्खलन की संख्या और भी अधिक बढ़ेगी। पहाड़ में सड़क निर्माण की प्रक्रिया में सड़क से लगे पहाड़ के ढलान को दीवार और लोहे के तार से नियंत्रित करने की विधि को भी शोध की रिपोर्ट में असफल बताया है। इस हिमालयी राज्य में पहाड़ को उधेड़ते हुए अब तक लगभग 11 हज़ार किमी सड़क बन चुकी है। और अब तो प्रदेश में विध्युत संयंत्र और रेल पहुँचाने के बहाने पहाड़ों को छेद कर सुरंगों का जाल बिछाया जा रहा है।
इस 125 किमी लम्बी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल योजना में 70 किमी सिर्फ़ सुरंग है जिसमें से सर्वाधिक लम्बा सुरंग देवप्रयाग और जनासु के बीच है जो 14 किमी लम्बी है। 30 किमी लम्बी विश्व की सबसे बड़ी सुरंग भी इसी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून और टेहरी के बीच निर्मित हो रही है।
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वर्ष 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट ने भी इन सड़क और रेलमार्गों के निर्माण को क्षेत्र में सूखते प्राकृतिक जल धाराओं को सूखने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था। सड़कें और सुरंग इन प्राकृतिक जल-धाराओं के प्रवाह को न सिर्फ़ रोकती है बल्कि उन्हें उन क्षेत्रों की ओर मोड़ती है जहां भूस्खलन की सम्भावना बढ़ जाती है।
अब जब जोशीमठ शहर के एक हिस्से का विलुप्त होना तय है तो मीडिया अपनी टी॰आर॰पी॰ की खोज में पहाड़ चढ़ गई है और सरकार जाँच समिति के नाम पर अपने कुछ और गोदी नेताओं व गोदी ज्ञानियों को रिपोर्ट बनाने की ज़िम्मेदारी दे रही है लेकिन उसी जोशीमठ से मात्र 150 किमी की दूरी पर स्थित गुप्तक़ाशी भी विलुप्त होने के कगार पर है लेकिन न किसी मीडिया का उसपर ध्यान है और न ही सरकार का। उत्तराखंड के पहाड़ों में जोशीमठ और गुप्तकाशी जैसे कई स्थान मिल जाएँगे जो अपनी विलुप्ती की राह देख रही है।
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