हरमणी गाँव:
चमोली जिले के नारायणबगड तहसील में स्थित है मल्ला हरमणी गाँव। हरमणी गाँव के ठीक नीचे से गुजरने वाली कर्णप्रयाग-ग्वाल्दम मार्ग लगभग प्रत्येक वर्ष भुस्खलन आता है। उसे हटाने के लिए बड़ी-बड़ी डंपर और मशीनें पूरे साल लगी रहती है और इन सब के बिच यातायात हमेशा बुरी तरह प्रभावित रहती है। इतिहास में पहली बार हरमणी में भुस्खलन वर्ष 1986 के बाढ़ के दौरन आइ थी।
पहाड़ों में भुस्खलन आम बात है पर जब एक ही जगह पर बार-बार लगभग प्रत्येक वर्ष भुस्खलन हो तो फिर सवाल उठने लगते हैं। कोई मुद्दे को भूत-पिशाच से जोड़ता है, कोई पर्यावरण की बर्बादी और कोई विकास को कोसता हुआ अपनी सुविधा के अनुसार जवाब ढूँढता है। ऐसे ही कुछ भुस्खलन की जगहें उत्तराखंड के पहाड़ों में भी है जिनमे कर्णप्रयाग—ग्वाल्दम—अल्मोडा मार्ग पर मल्ला हरमणी गाँव के ठीक नीचे स्थित लगभग आधा किलोमीटर सड़क का हिस्सा है।

कर्णप्रयाग—ग्वाल्दम—हल्द्वानी मार्ग:
कर्णप्रयाग—ग्वाल्दम—हल्द्वानी मार्ग, उत्तराखंड के उन चुनिंदा और महत्वपूर्ण मर्गों में से एक है जो कुमाऊँ को गढ़वाल को एक दूसरे से जोड़ती है। यह क्षेत्र कुमाऊँनी और गढ़वाली सभ्यता-संस्कृति की संगम स्थली है। कुमाऊँ से होते हुए बद्रीनाथ के दर्शन करने वाले तीर्थयात्री भी इसी मार्ग से यात्रा करते थे। हरिद्वार—ऋषिकेश—देवप्रयाग—श्रीनगर होते हुए केदारनाथ—बद्रीनाथ जाने वाली मार्ग की तुलना में इस मार्ग को अधिक सुगम समझा जाता था। अर्थात् हरमणी एक एतिहासिक स्थान भी है।
यह मार्ग अंग्रेजों के दौर में भी उत्तराखंड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सड़क मार्ग हुआ करता था। प्रशासनिक अधिकारी से लेकर पर्यटक व खोजी पर्वतारोही इसी मार्ग से होते हुए लोहाजंग, वाण, रमणी, आली बुग्याल, बेदनी बुग्याल, लोर्ड कर्ज़न ट्रेक, कुआरी पास ट्रेक, रूपकुंड ट्रेक, के साथ साथ तपोवन होते हुए नंदा देवी, कामेट त्रिशूल, चौखम्भा आदि प्रसिद्ध पर्वत शिखरों की को छूने को ललायित पर्वतारोहियों का समूह आया करते थे।
पर आज ये मार्ग उपेक्षित है। उपेक्षित ग्वाल्दम भी है और ग्वाल्दम से प्रारम्भ होकर होने वाले सभी पर्यटन स्थल और यात्री भी। हालाँकि, कुमाऊँ से चलकर नारायणबगड तक का वस्तु और व्यापार आज भी इसी मार्ग से होता है। स्थानिये समाज और संस्कृति के सर्वाधिक पूज्यनिय माँ नंदा देवी की यात्रा भी इसी मार्ग से होती है। पर चारधाम यात्रा के इस एतिहासिक मार्ग को आधुनिक व्यापार और नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था का प्रतीक चारधाम यात्रा के नाम पर बन रही आल वेदर रोड ने इस मार्ग को भी खा गई है और इस मार्ग के इतिहास को भी।
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आल वेदर सड़क
भुस्खलन तो चारधाम यात्रा के नाम पर बन रही आल वेदर सड़क पर भी सर्वाधिक होती है। पर आधुनिकता और उसके प्रतीक की नुमाइश करती ऋषिकेश—बद्रीनाथ—केदारनाथ मार्ग के विनाश को छुपाने के लिए आधुनिक मशीने दिन रात हमेशा तत्पर खड़ी तैयार रहती है जबकि ग्वाल्दम—कर्णप्रयाग मार्ग के ऊपर ग़ैर-आधुनिकता और इतिहास के स्वर्णता की चादर तले छुपाने का हर रोज़ प्रयास जारी है।
पिंडर नदी के एक किनारे बनी इस सड़क को आइना दिखाती नदी की दूसरी तरफ़ इतिहास की वो दूसरी सड़क आज भी अपने अवशेष समेटे आधुनिकता को चुनौती दे रही है कि ‘हो सके तो इस आधुनिकता का चश्मा उतारकर कभी इतिहास की क्षमता और सक्षमता की ओर भी निहारे।’ हरमणी गाँव के पास नदी के दूसरी तरफ़ की सड़क वो सड़क है जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था और आज भी जर्जर हालत में ही सही पर खड़ा है।
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