क्या आपको पता है कि आप रोज़ ग़ैर-मौसमी पहाड़ी सब्ज़ियाँ खा रहे हैं? दिल्ली की किसी भी सब्ज़ी मंडी में गर्मी के मौसम के दौरान सब्ज़ी वाले ‘पहाड़ी आलू, पहाड़ी आलू’ चिल्लाते अक्सर दिख जाते हैं। सब्ज़ी वाले इन पहाड़ी आलुओं को ‘मीठा नहीं होने के दावे के साथ बेचते हैं। ये पहाड़ी आलू ग़ैर-मौसमी आलू होते हैं जो गर्मी के मौसम में उगाए जाते हैं और बेचे जाते हैं। इनके अलावा कई अन्य ग़ैर-मौसमी सब्ज़ियाँ भी पहाड़ों में होती है और मैदानों में बिकती है लेकिन इसके बारे में बहुत कम लोगों को कोई जानकारी होती है।
एक शोध के अनुसार दिल्ली के आस पास सभी क्षेत्रों में 90 प्रतिशत से अधिक ग्राहकों का मानना है कि उनके यहाँ मिलने वाली ग़ैर-मौसमी हरी सब्ज़ियाँ कोल्ड-स्टोर में रखी बासी व पुरानी सब्ज़ियाँ होती है। यहाँ तक कि पहाड़ी आलू के बारे में भी आधे से अधिक ग्राहकों को यह जानकारी नहीं है कि उनकी सब्ज़ी मंडी में मिलने वाली पहाड़ी आलू कोल्ड स्टोर वाली नहीं बल्कि ताज़ी होती है। (Source)

पहाड़ी आलू:
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सब्ज़ी मंडियों में मई से लेकर अक्टूबर तक मिलने वाले ताज़ा आलू या तो उत्तराखंड से आयात होते हैं या फिर हिमाचल प्रदेश से। इस दौरान इन मंडियों में मिलने वाले ग़ैर-पहाड़ी आलू स्वाद में मीठे होते हैं। ये आलू मीठे इसलिए होते हैं क्यूँकि देश के अन्य भाग में पैदा होने वाले आलुओं में जून-जुलाई आते आते अंकुरण आने लगते हैं।
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जब आलू में अंकुरण निकलती हैं तब उन अंकुरण को बढने के लिए पोषण की जरूरत होती है। अंकुरण को यह पोषण आलू के स्टार्च से मिलती है। लेकिन चुकी अंकुरण स्टार्च का सेवन नहीं कर सकती है इसलिए अंकुरण आलू में मौजूद स्टार्च को ग्लूकोज में बदलते हैं फिर उसका इस्तेमाल करती है। चुकी ग्लूकोज़ स्वाद में मीठा होता है इसलिए आलू या अंकुरण वाला आलू स्वाद में मीठा होता है। लेकिन चुकी पहाड़ में आलू जून से सितम्बर के दौरान पैदा किया जाता है इसलिए इस दौरान बाज़ार में मिलने वाले पहाड़ी आलू मीठे नहीं होते हैं।

अन्य पहाड़ी सब्ज़ियाँ:
आलू पैदा करने के लिए 5-25 डिग्री तापमान की ज़रूरत होती है जो मैदानी भूभागों में दिसम्बर से फ़रवरी के दौरान होती है जबकि पहाड़ों में यह तापमान मई से लेकर सितम्बर के दौरान होती है। इसी तरह फूलगोभी, पत्तागोभी और मटर का उत्पादन भी मैदानों में सर्दी (नवम्बर से फ़रवरी) के मौसम के दौरान ही होती है मैदानों में जब इन सब्ज़ियों के उत्पादन के लिए अनुकूल सामान्यतः तापमान 5 से 25 डिग्री तक होती है। लगभग इतना ही तापमान पहाड़ों में मई से सितम्बर के दौरान होती है और इन सब्ज़ियों के उत्पादन के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है।

जिस तरह पहाड़ की ग़ैर-मौसमी आलू अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध है उसी तरह पहाड़ की अन्य सब्ज़ियाँ भी अपने स्वाद और ताज़ापन के लिए मशहूर होना चाहिए। लेकिन आलू को छोड़कर अन्य पहाड़ी ग़ैर-मौसमी सब्ज़ियों के बारे में मैदान में रहने वाले सब्ज़ी ग्राहकों की जागरूकता न के बराबर है। (Source)(Source) ज़रूरत इस बात का है कि इन प्रदेशों में पहाड़ में उगने वाले सब्ज़ियों की गुणवत्ता और उपलब्धता के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाया जाय।

जागरूकता:
एक शोध के अनुसार पिछले एक दशक के दौरान दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ और पंजाब शहरी आबादी क्रमशः 51.36, 50.86, 39.65 और 37.56 प्रतिशत बढ़ी है और शहरीकरण की यह गति आगे आने वाले वर्षों में और अधिक तेज़ी से बढ़ने वाली है। ऐसे में हिमाचल और उत्तराखंड में उगने वाले इन ग़ैर-मौसमी सब्ज़ियों का महत्व इन राज्यों की शहरी आबादी के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
हिमाचल के पहाड़ों में होने उत्कृष्ट क़िस्म की सब्ज़ी के प्रति ध्यान सर्वप्रथम 19वीं सदी में ब्रिटिश लेखक Edward John Buck ने वर्ष 1904 में प्रकाशित अपनी किताब ‘Simla, Past and Present’ में किया था। हिमाचल में वर्ष 1984-85 और 2014-15 के दौरान सब्ज़ी का उत्पादन 258 मेट्रिक टन से बढ़कर 1576.454 मेट्रिक टन पहुँच गया। हिमाचल में उगने वाली सभी सब्ज़ियों का लगभग 30.19 प्रतिशत हिस्सा टमाटर का है जबकि मटर, पत्ता गोभी, फूलगोभी, और शिमला मिर्च का अनुपात क्रमशः 17.61, 10.04, 7.44, और 3.50 प्रतिशत है। (Source)

ख़तरा:
ग़ैर-मौसमी सब्ज़ियाँ उत्पादकों को भी मौसमी सब्ज़ी के मुक़ाबले ग़ैर-मौसमी सब्ज़ियाँ उगाने से अधिक लाभ होता है। एक शोध के अनुसार एक हेक्टेयर पर मौसमी सब्ज़ी उगाने से पहाड़ के एक किसान को लगभग 8-10 हज़ार रुपए की आमदनी होती है जबकि इतनी ही ज़मीन पर ग़ैर-मौसमी सब्ज़ी उगाने पर 60 हज़ार तक की आमदनी होती है।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सरकार इन ग़ैर-मौसमी सब्ज़ियाँ उगाने वाले किसानों को दिए जाने वाले सब्सिडी और अन्य प्रकार की सुविधाएँ एक के बाद एक बंद करती जा रही है। इसके अलावा रिलायंस और आड़ानी जैसे बड़े फल-सब्ज़ी विक्रेताओं को प्रदेश में सब्ज़ियाँ व फलों के व्यापार की खुली छूट दे रही है जिससे किसानो का भविष्य ख़तरे में नज़र आ रहा है। (Source)(Source)
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