जयप्रकाश नारायण:
JP के जीवन के दस अफ़वाह वाले विडीओ में हमने आपको बताया था जयप्रकाश नारायण के उस वक्तव्य का सच जिसके बारे में भाजपा बोलती है कि JP ने बोला था कि ““If RSS is a Fascist, I too was a fascist” मतलब JP ने क्या कभी ऐसा कहा था कि “अगर RSS फ़सिवादी है तो मैं भी फ़सिवादी हूँ”। पिछले विडीओ में हमने ये भी दावा किया था कि भारत सरकार द्वारा संग्रहण करवाए गए लगभग सात हज़ार पेज वाले जयप्रकाश नारायण के दस्तावेज़ों के संग्रह में कम से कम सौ ऐसे उदाहरण है जब जयप्रकाश नारायणने RSS और हिंदू महासभा की आलोचना की थी।
इन उदाहरणों में जयप्रकाश नारायण यहाँ तक बोल दिया था कि उन्हें शक था कि महात्मा गांधी की हत्या करने के बाद RSS/ हिंदू महासभा नेहरू और उनकी यानी की JP की हत्या करने का प्लान बना रहे थे।आज न्यूज़ हंटर्स पर उन्हीं सौ से अधिक उदाहरणों में से हम आपके लिए छाँटकर लाए हैं दस उदाहरण जब JP ने RSS, हिंदू महासभा, जनसंघ और उनके विचारों की आलोचना किया था।
उदाहरण संख्या: 1
अटल बिहारी वाजपायी के बारे में ज़्यादातर कांग्रेसी भी यही कहते थे कि वाजपेयी जो तो अच्छा आदमी है लेकिन उसकी पार्टी भाजपा अच्छा नहीं है, भाजपा की विचारधारा ग़लत है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन JP का भी अटल बिहारी बाजपेयी के बारे में यही विचार था।
30 जुलाई 1966 को तमिलनाडु के Pungudi में एक सभा में बोलते हुए JP ने कहा कि “श्री अटल बिहारी बाजपेयी प्रग्रेसिव विचारधारा में विश्वास करते हैं, सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि उनकी पार्टी उनके इन विचारों पर उनका साथ देगी और ख़ासकर RSS जैसी संस्था तो बिलकुल नहीं देगी।” (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-9, पेज संख्या-424)
उदाहरण संख्या 2:
JP अटल बिहारी बाजपेयी के प्रति जितने संवेदनशील थे उतने ही गुरु गोलवलकर के प्रति संवेदनहिन थे। जिस तमिलनाडु वाले कार्यक्रम में JP ने अटल जी की तारीफ़ की थी उसी कार्यक्रम में JP ने गोलवलकर के बारे में कहा, “गोलवलकर ने एक बार बोला था कि इस देश में सभी चीजों को सेंट्रलायज़ कर देना चाहिए, केंद्रीकरण कर देना चाहिए, क्यूँकि उससे सरकारी खर्चे में कमी आएगी, आपसी झगड़े कम होंगे, और इन सब से देश को लाभ होगा। लेकिन मेरा सवाल है, मतलब JP का सवाल था, कि अगर देश में सब कुछ केंद्रिक्रित कर दिया जाएगा तो फिर लोकतंत्र का क्या होगा? लोकतंत्र तो दिस देश से ख़त्म हो जाएगा?” ये JP के वचन थे गोलवलकर के लिए।
उदाहरण संख्या 3 :
जनसंघ, RSS, ABVP और हिंदू महासभा हमेशा से सम्पूर्ण क्रांति का हिस्सा बनना चाहती थी। JP ने जनसंघ और ABVP को तो स्वीकार किया लेकिन RSS और हिंदू महासभा कों कभी स्वीकार नहीं किया। JP बार बार बोलते रहे कि उन्होंने कभी भी RSS या हिंदू महासभा को आंदोलन का हिस्सा नहीं बनाया, इन फ़ैक्ट जब उन्होंने जनसंघ और ABVP को आंदोलन का हिस्सा बनाया, आंदोलन के कोऑर्डिनेशन कमिटी का सदस्य बनाया तो इसी शर्त पर बनाया था कि उन्हें, यानी की जनसंघ और ABVP के सदस्यों RSS और हिंदू महासभा के साथ अपने सम्बन्धों को ख़त्म करने पड़ेंगे, RSS और हिंदू महासभा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा देना होगा।
7 अप्रैल 1974 को ख़ुशवंत सिंह को लिखे एक पत्र में जयप्रकाश नारायण ने साफ साफ लिखा कि उन्होंने कभी भी RSS या हिंदू महासभा को आंदोलन के कोऑर्डिनेशन कमिटी का हिस्सा नहीं बनाया है। इस दौरान JP बार बार यह शंका भी ज़ाहिर करते रहे कि उन्हें शक है कि जनसंघ के लोग इस आंदोलन में लम्बे समय तक टिक पाएँगे। ऐसे ही 20 अप्रैल 1975 को पटना के एक सम्मेलन में यह बात जयप्रकाश नारायण ने सार्वजनिक तौर पर बोल दिया कि उन्हें शक है कि जनसंघ लम्बे समय तक आंदोलन में साथ देगी।
जिसपर जनसंघ के लोगों ने आपत्ति भी ज़ाहिर कि और भरोसा भी दिलाया की वो आंदोलन का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। JP ने उनसे कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्यूँकि 1967 में जब बिहार में जनसंघ और लोकदल की गठबंधन की सरकार बनी थी तो जनसंघ ने बिहार में भूमि सुधार का विरोध किया था जो ग़लत था और आंदोलन के मूल्यों के ख़िलाफ़ था। इसपर जनसंघ के नेताओं ने JP जो भरोसा दिलाया कि वो सात साल पहले की बात थी जनसंघ अब बदल चुका है और जनसंघ अब भूमिसुधार का समर्थक है। JP लिखते हैं कि मैंने उस समय जनसंघ पर भरोसा कर लिया लेकिन मैंने उन्हें कभी भी शक की निगाह से देखना बंद नहीं किया था।
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3 अगस्त 1974 को फिर से JP लिखते हैं कि उन्हें याद है जब बिहार के संयुक्त विधायक दल की सरकार को उन्होंने कुछ सुझाव दिए थे, लेकिन तब भी जनसंघ के मंत्रियों ने बिहार सरकार को धमकी दिया था कि अगर बिहार सरकार ऐसा करने का प्रयास करेगी तो बिहार में वो खून की नदियाँ बहा देंगे।
जयप्रकाश नारायण 1976 आते आते RSS के पक्ष में भी बोलने लगते हैं लेकिन जयप्रकाश नारायण कभी RSS के हिंदुत्ववादी विचारों का समर्थन नहीं करते हैं बल्कि 1976-77 के अपने लेखों और भाषणों में जयप्रकाश नारायण बार बार बोलते हैं कि चुकी RSS बदल रहा है, अब RSS अपने प्रभात फेरी, और शाखा में रोज़ महात्मा गांधी को याद करता है, किसी तरह का कोई हिंदुत्ववादी बात नहीं करता है इसलिए RSS को बदलने का मौक़ा मिलना चाहिए। (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-10, पेज संख्या- 326, 436, 442-43, 568, और 612-13)
उदाहरण संख्या 4:
जब साल 1977 में देश में आपातकाल ख़त्म होता है, देश में चुनाव की घोषणा होती है और जब जनता पार्टी का गठन होता है तो सभी को जनता पार्टी का सदस्य इस शर्त पर बनाया गया था कि वो RSS, हिंदू महासभा या किसी भी अन्य साम्प्रदायिक संस्था से पहले वो इस्तीफ़ा देंगे। JP के इस शर्त पर अटल बिहारी वाजपेयी, L K आडवाणी और RSS प्रमुख बाला साहेब देओरस ने उस समय हामी भी भरी थी।
ऐसे ही एक मौक़े पर संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन से ठीक पहले जयप्रकाश नारायण ने जनसंघ के सभी सदस्यों को भगवा टोपी उतारने को कहा और अपने पार्टी के झंडे की जगह सिर्फ़ तिरंगा रखने को बोला। और ये भी बोल दिया कि इस आंदोलन में कोई भी अपनी पार्टी का झंडा या भगवा टोपी नहीं पहनेगा। JP के इस शर्त को उस समय जनसंघ का नेतृत्व कर रहे लाल कृष्ण आडवाणी ने स्वीकारा भी था।
1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जनता पार्टी के सभी सदस्यों को एक फ़ॉर्म भरने को दिया गया जिसमें साफ साफ लिखा हुआ था कि “मैं महात्मा गांधी जी द्वारा दिए गए सभी मूल्यों एवं आदर्शों में विश्वास रखते हुए स्वयं को एक समाजवादी राज्य की स्थापना के लिए अर्पित करता हूं।” सरकार बनने के बाद जयप्रकाश नारायण ने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को जल्दी से जल्दी जनता पार्टी के सभी सदस्यों से RSS और हिंदू महासभा की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दिलवाने को कहा।
इसके बाद Janata Parliamentary Board ने एक रेज़लूशन भी पास किया जिसमें जनता पार्टी के सभी सदस्यों को RSS या हिंदू महासभा के किसी भी ऐक्टिविटी में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालाँकि जयप्रकाश नारायण के बार बार बोलने के बावजूद जनता पार्टी ने अपने सदस्यों को RSS या हिंदू महसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर नहीं किया। और इन्हीं मुद्दों पर अंततः 1979 में जनता पार्टी के दो टुकड़े हो गए और चौधरी चरण सिंह ने अलग सेक्युलर जनता दल बना लिया।
उदाहरण संख्या 5:
ऐसा नहीं है कि जयप्रकाश नारायण सिर्फ़ अपने जीवन के बाद के दिनों में RSS या हिंदू महासभा के ख़िलाफ़ बोल रहे थे। JP अपने राजनीतिक जीवन के प्रारम्भिक वर्षों से ही RSS और हिंदू महासभा के ख़िलाफ़ थे। 19 नवम्बर, 1948 को ही बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में छात्रों के एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए JP ने कहा था कि RSS, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग जैसे सभी साम्प्रदायिक संस्थाओं को ख़त्म करना पड़ेगा। (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-5, पेज संख्या-88)
जयप्रकाश नारायण ने 1948 में जब भारतीय सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया तो उन्होंने 24 अक्तूबर 1950 को मद्रास में एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स के दौरान साफ साफ शब्दों में कहा कि सोशलिस्ट पार्टी किसी भी क़ीमत पर हिंदू महासभा के साथ किसी तरह का कोई गठबंधन नहीं करेगी। (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-6, पेज संख्या-50) इस प्रेस कॉन्फ़्रेन्स का ज़िक्र जयप्रकाश नारायण के दस्तावेज़ों के संग्रहण के छठे खंड के पेज संख्या 50 पर है। 18 अगस्त 1951 को जयप्रकाश नारायण ने आरोप लगाया कि राम राज्य परिषद, भारतीय जनसंघ, हिंदू महासभा, All India Jagirdar and Landlords Association, और UP की Praja party अपने रूढ़िवादी विचारों से देश को पीछे धकेलने का काम कर रही है।
उदाहरण संख्या 6:
JP पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद, 72 घंटे के भीतर, 2 फ़रवरी को RSS पर प्रतिबंध लगाने की माँग की थी और 4 फ़रवरी को RSS पर भारत सरकार ने प्रतिबंध भी लगा दिया था। JP ने यह माँग सार्वजनिक तौर पर एक पब्लिक मीटिंग में की थी. (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-4, पेज संख्या-210)
15 फ़रवरी को फिर से JP पटना में एक सम्मेलन के दौरान बोलते हैं कि अगर कांग्रेस के लोग RSS की रैलियों में नहीं जाते, RSS को पनाह नहीं देते और देश के यूवाओं को RSS के ख़तरे से आगाह करते तो महात्मा गांधी हमसे इस तरह नहीं छीनते। उसके बाद 21 फ़रवरी को JP नेहरू सरकार पर आक्रामक होते हुए लिखते हैं कि सरकार को महात्मा गांधी की हत्या की ज़िम्मेदारी लेनी पड़ेगी और देश में साम्प्रदायिक राज का प्रयास देश को सिर्फ़ फ़सिवाद की तरफ़ धकेल रहा है फिर चाहे वो सरकार किसी की भी हो। लेकिन ऐसा नहीं है की JP हिंदू विरोधी थी। JP अपने स्मरण में लिखते हैं कि हिंदू राज की इस भूख ने हिंदू समाज को जातियों में बाँट दिया, और हमारी एकता को ख़त्म कर दिया।
गांधी की हत्या ने जयप्रकाश नारायण को चरमपंथियों के प्रति इतना क्रिटिकल बना दिया था कि वो जुलाई 1948 आते आते चरमपंथियों की लिस्ट में अकाली दल और कॉम्युनिस्टों को भी शामिल कर चुके थे। ये सब जयप्रकाश नारायण के वचन थे और आप भी ये सब खुद देख सकते हैं. (जयप्रकाश नारायण के दस्तावेज़ों के संग्रहण के पाँचवें खंड में)
उदाहरण संख्या 7:
गांधी की हत्या के पहले भी जयप्रकाश नारायण RSS जैसी संस्थाओं के प्रति क्रिटिकल थे। 4 नवम्बर 1947 को छपरा में Socialist Autumn School of Politics में भाषण देते हुए JP ने कहा कि “आजकल कुछ भटके हुए यूवा हिंदू राज स्थापित करने का सपना देख रहे हैं। में उन्हें चेतावनी देना चाहता हूँ कि हिंदू राज कभी भी लोगों का राज नहीं बल्कि उग्रपंथियों का राज होगा, चरमपंथियों का राज होगा।
RSS ऐसे यूवाओं को भड़का रही है जो कभी इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे लगाया करते थे और तिरंगे का सम्मान करते थे और वही लोग अब हिंदू राज के नारे लगा रहे हैं। में इन यूवाओं से कहना चाहता हूँ कि वो RSS और अपने उग्रपंथी संस्थाओं से पूछे की जब पूरा देश आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था तब ये लोग क्या कर रहे थे? ये लोग ब्रिटिश का साथ दे रहे थे। मुझे शक है कि इन लोगों के बीच कुछ कांग्रेसी भी बैठे हुए हैं।” इसी तरह 17 नवम्बर 1947 को जामा मस्जिद में एक भाषण के दौरन फिर से जयप्रकाश नारायण RSS, हिंदू महासभा और अकाली दल जैसे सभी चरमपंथी संथाओं से पूछते हैं कि “वो आज तो तिरंगे का अपमान कर रहे हैं लेकिन कल तक कहाँ थे जब देश आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था।”
उदाहरण संख्या 8:
RSS पर बैन के बाद, जब RSS के लोग कांग्रेस की सदस्यता लेने लगे थे तो JP ने उसका भी विरोध किया और कांग्रेस के इस कदम को अवसरवादी बताया और बोला कि कांग्रेस किसी भी क़ीमत पर सिर्फ़ सत्ता में बने रहना चाहती है फिर चाहे देश में फ़सिवाद ही क्यूँ न आ जाए। JP ने कांग्रेस के ऊपर यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी के भीतर रहकर भी कई कांग्रेसी हिंदुत्ववादी विचारों को छोड़ नहीं रहे थे और कांग्रेस उनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। JP ने इसका पुरज़ोर विरोध किया और इन्हीं मुद्दों पर अंततः उन्होंने 1948 में ही कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था।
उदाहरण संख्या 9:
JP ने अलग अलग मंचों पर संघ के विचारों को खूब ललकारा लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि JP ने RSS के मंच पर भी जाकर RSS के ख़िलाफ़ बोला था। 15 अप्रैल 1960 को पटना में RSS के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए JP कहते हैं, “ में संघ के विचारों और मक़सद से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ लेकिन मैं इतना ज़रूर स्वीकार करता हूँ कि RSS ने देश के यूवाओं को अनुशासन में रहना ज़रूर सिखाया है।
आपके साथ मेरी जो भी differences हैं वो मैं यहाँ अधिक नहीं बोलना चाहता हूँ लेकिन एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि ये देश हमारा है का मतला हमारा है और इस हमारा में सभी लोग शामिल है, किसी एक धर्म के लोग सिर्फ़ इसमें शामिल नहीं है। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि कौन इस देश में पहले आया और कौन बाद में, जो भी इस देश में रह रहा है वो सब भारतीय है। (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-8, पेज संख्या-01) JP का RSS की शाखा में दिया गया ये भाषण आप जयप्रकाश नारायण के दस्तावेज़ों के संग्रहण के आठवें खंड के पेज संख्या एक पर ही हैं।
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JP RSS के विचारों का विरोध 1960 के दशक तक खुले आम करते रहे। 28 दिसम्बर 1968 को अपनी डायरी में JP लिखते हैं कि जो भी भारत को हिंदू राष्ट्र के साथ जोड़ता है वो देश को तोड़ने की बात कर रहा है। जब गांधी जी की हत्या हुई थी तो सब बोलने लगे थे कि RSS सिर्फ़ एक सांस्कृतिक संस्था है, और उसी आधार पर RSS के ऊपर से प्रतिबंध हटा दिया गया, लेकिन अब जब भारतीय जनसंघ के रूप में RSS का असली चेहरा सामने आ रहा है तो सबको पता चल रहा है असल में RSS का असली चेहरा क्या है।
RSS एक आइसबर्ग की तरह है जिसका सिर्फ़ छोटा सा हिस्सा दिखता है लेकिन आइसबर्ग का असली चेहरा पानी के अंदर छिपा होता है। 15 अक्तूबर 1969 को हिंदुस्तान टाइम्ज़ अख़बार के एडिटर को लिखे एक पत्र में जयप्रकाश नारायण ने साफ साफ गुजरात दंगों के लिए मुस्लिम उग्रपंथियों के साथ साथ RSS और जनसंघ को दोषी ठहराया था।
जयप्रकाश नारायण ने गुजरात चुनाव से पहले भी भारत सरकार को आगाह किया था कि जैसे जैसे गुजरात चुनाव नज़दीक आएगा वैसे वैसे गुजरात में दंगे होने की सम्भावना बढ़ेगी और वैसा ही हुआ, JP की भविष्यवाणी सही हुई थी। माना जाता है कि गुजरात का वो चुनाव इतिहास का सबसे हिंसक चुनाव था। (जयप्रकाश नारारायण दस्तावेज़ संकलन, खंड-9, पेज संख्या-469)
उदाहरण संख्या 10:
जयप्रकाश नारायण RSS और हिंदू महासभा के सिर्फ़ विचारधारा के प्रति क्रिटिकल नहीं थे बल्कि RSS और हिंदू महासभा के ऊपर उनकी हत्या की साज़िश रचने तक का आरोप लगा दिया था। 13 अक्तूबर 1973 को जयप्रकाश नारायण जी लिखते हैं, “मैं वो दिन बिलकुल नहीं भूल सकता हूँ जब मैं और मेरी पत्नी पूर्वी पाकिस्तान जा रहे थे तो RSS के कार्यकर्ताओं ने मुझे, मेरी पत्नी और मेरे सहयोगियों को घेरकर दो घंटे तक हमें गंदी गंदी गालियाँ दी।
वो नारे लगा रहे थे “ग़द्दारों को नहीं सुनेंगे, ग़द्दारों को फाँसी दो, हम उनके लिए देश के गाद्दर बन चुके थे। मुझे अभी भी याद है, उनमें से एक RSS का यूवा कार्यकर्ता ने चिल्लाते हुए हमें पाकिस्तान का पिट्ठू बोला था। वो लोग इस बात से नफ़रत करते थे कि मैं और शेख़ अब्दुल्ला दोस्त थे, वो लोग कश्मीर पर मेरे विचारों का विरोध करते थे।
जयप्रकाश नारायण के लाख कोशिश के बावजूद RSS, हिंदू महासभा या जनसंघ के विचारों को वो बदल नहीं पाए। जयप्रकाश नारायण ने अपने कई पात्रों और लेखों में लिखा है कि उन्होंने जनसंघ और ABVP को आंदोलन और जनता पार्टी का हिस्सा बनाया था इस उम्मीद के साथ कि समय के साथ उनमें बदलाव होगा, उनके विचार बदलेंगे लेकिन अफ़सोस की वो ग़लत थे और जनसंघ ने उनके साथ धोखा किया।
आज भले ही RSS से लेकर भाजपा के सभी लोग जयप्रकाश नारायण की वर्षगाँठ पर उन्हें फूलमाला चढ़ाते होगे उन्हें याद करते होंगे लेकिन भाजपा या RSS लिए यह बहुत मुश्किल है कि वो जयप्रकाश नारायणके उन बातों को भी याद कर पाएँ जो JP ने उनके लिए लिखा या बोला था। पर आप याद रखिए बिहार को, बिहार की विरासत को, बिहार के ऐसे महनायकों को ताकि हम एक बेहतर बिहार बना सके।

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