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डेटा सुरक्षा/Cyber-Crime में भारत का बिगड़ता सूचकांक : India’s Rank On Decline

Cyber-Crime (डेटा सुरक्षा) के मामले में हिंदुस्तान का सूचकांक पिछले कुछ वर्षों से लगातार नीचे गिर रहा है और दूसरी तरफ़ Cyber Crime की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 19 जुलाई 2022 को लोकसभा में दिए गए एक सवाल के जवाब में यह बताया गया कि वर्ष 2019 के दौरान देश में Cyber-Crime के कुल 3,94,499 मामले मिले थे जो कि वर्ष 2021 में बढ़कर 14,02,809 हो गया है। वर्ष 2015 में यह संख्या मात्र 49,455 थी। अर्थात् वर्ष 2015 से 2021 के छः वर्षों के दौरान हिंदुस्तान में Cyber-Crime की संख्या में 28 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।

बढ़ता Cyber-Crime :

देश में एक तरफ़ Cyber-Crime की संख्या बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ़ इन अपराधों के ख़िलाफ़ पुलिस में दर्ज हुए मामलों और उन मामलों में हुए गिरफ़्तारी का अनुपात लगातार कम हो रहा है। उपरोक्त तालिका से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 2017 के दौरान Cyber-Crime के कुल 53,117 मामलों में से 41.03 प्रतिशत (21796) मामलों में पुलिस केस दर्ज हुआ और 21.84 प्रतिशत (11601) मामलों में गिरफ़्तारी हुई। वहीं दूसरी तरफ़ वर्ष 2021 के दौरान Cyber-Crime के आए कुल 1,402,809 मामलों में से मात्र 3.78 प्रतिशत (52974) मामलों में पुलिस केस दर्ज हुआ जबकि मात्र 1.95 प्रतिशत (27374) मामलों में गिरफ़्तारी हुई।

23 नवंबर 2022 को एक खबर आई कि देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान एम्स में साइबर हमला कर 4 करोड़ से ज्यादा मरीजों एवं देश की सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरी चुरा ली गई और सरकार आज तक हाथ पे हाथ रख कर बैठी है। ऐसी घटनाएँ लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2018 के दौरान 200 सरकारी वेबसाइट से आधार डाटा लीक हो गया था। सरकारी वेबसाइट के अलावा IIMjobs, BharatMatrimony, Edureka and RailYatri जैसे निजी वेबसाइट से भी डेटा की चोरी बड़े स्तर पर होती है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री मोदी की वेब्सायट narendramodi.in से भी डेटा की चोरी हुई है।

सेंटर ऑफ़ इंटरनेट एंड सोसाइटी के मुताबिक 13 करोड़ लोगों का आधार नंबर और दूसरी गोपनीय डाटा भी इसी तरह लीक हो चुकी है। 2018 में यूआईडीआई के पूर्व चेयरमैन आरएस शर्मा ने ट्वीटर पर अपना आधार नंबर शेयर करते हुए डाटा चोरी की चुनौती दी थी, जिसके बाद हैकर्स ने उनकी सभी निजी जानकारियां उड़ा दी। इस घटना की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि यूआईडीआई को ट्वीट करते हुए आधार नंबर शेयर नहीं करने की सलाह देनी पड़ी।

डेटा चोरी के ख़तरे:

ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक उनके जर्नलिस्ट ने एक ऐसे WhatsApp ग्रुप की पहचान की थी, जहां महज 500 रुपए में आधार कार्ड का डिटेल बेचा जा रहा था। रिपोर्ट की माने तो करीब 10 लाख लोग गैर-कानूनी तरीके से आधार से संबंधित संवेदनशील जानकारियां हासिल करने में शामिल थे।

एक आंकड़े के अनुसार इस तरह की डेटा चोरी के कारण अकेले वर्ष 2019 में देश की अर्थव्यवस्था को 1.25 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। यह रक़म देश के सात छोटे राज्यो की अर्थव्यवस्था के बराबर है और टू जी, थ्री जी, कोल गेट जैसे घोटालों के बराबर है।

लोकसभा के एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि वर्ष 2016 के दौरान देश में साइबर आतंकवाद के 12 मामले दर्ज हुए थे जो वर्ष 2020 में बढ़कर 26 तक पहुँच गया है। इसके अलावा देश की सुरक्षा में संलग्न लोगों के आधार कार्ड पर उपलब्ध आँकड़ों से आतंकवादी बड़े स्तर पर देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर सकते हैं।  

डेटा सुरक्षा रैंकिंग:

अंतर्रष्ट्रिय स्तर पर भारत की डेटा सिक्योरिटी रैंकिंग लगातार नीचे गिर रही है। वर्ष 2021 में अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सी FBI द्वारा जारी विश्व साइबर क्राइम रैंकिंग (2020) में भारत का स्थान चौथा था। वर्ष 2023 में जारी एक अन्य रैंकिंग में भारत फिसलकर दूसरे स्थान पर चला गया है। अर्थात् अब पूरे विश्व में दूसरा सर्वाधिक Cyber-Crime भारत में होता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 के दौरान पूरे विश्व में हुए कुल साइबर क्राइम का 20 प्रतिशत हिस्सा अकेले हिंदुस्तान में हुआ है।

हिंदुस्तान जैसा देश जहाँ अभी भी इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों का अनुपात विश्व के अन्य देशों के अनुपात में कम है उसके बावजूद साइबर क्राइम की बढ़ती घटनाएँ एक बड़े ख़तरे की ओर इशारा कर रही है। लेकिन दूसरी तरफ़ सरकार इस मामले में कोई विशेष कदम नहीं उठा रही है। संवैधानिक रूप से साइबर क्राइम पर लगाम लगाना पूर्णतः केंद्र सरकार सरकार की ज़िम्मेदारी और अधिकार क्षेत्र में है।

डेटा प्रटेक्शन बिल:

देश में बढ़ते Cyber-Crime के मामलों को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2019 में ‘डेटा प्रटेक्शन बिल’ संसद के सामने प्रस्तुत किया। तीन वर्षों से अधिक इंतज़ार के बाद अंततः अगस्त 2022 में भारत सरकार ने स्वयं उक्त ‘डेटा प्रटेक्शन बिल 2019‘ को वापस ले लिए यह कहते हुए कि बिल में कुछ सुधार करने की आवश्यकता है। हालाँकि इस दौरान देश में डेटा चोरी के कई संगीन मामले आए जिसमें देश की सुरक्षा पर भी ख़तरा आ सकता था।

अगर बिल में सुधार करने की ज़रूरत थी तो क्या बिल पास होने के बाद भी उसमें सुधार किया जा सकता था। इतना गम्भीर मामला होने के बावजूद सरकार इस मुद्दे पर क्यूँ सीरीयस नहीं है इसका जवाब सरकार ही दे सकती है। इसके अलावा चीन जैसे तमाम देशों की सेना में साइबर सिक्योरिटी से सम्बंधित सुरक्षा दस्ता है, लेकिन हिंदुस्तान में नहीं है।

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हिंदुस्तान में Cyber-Crime के लिए बनाई गई साइबर अपील अधिकरण (Cyber Appellate Tribunal) के जज का पद वर्ष 2012 से ख़ाली है। इतना ही नहीं Cyber Appellate Tribunal के वेबसाइट (catindia.gov.in) को भी बंद कर दिया गया है। 2018 में दिल्ली में पहला Cyber-Crime कोर्ट स्थापित तो किया गया लेकिन इसकी सुनवाई सामान्य कोर्ट में ही हो रही है।

भारत में डेटा चोरी के अधिकतर मामलों में आधार कार्ड अहम कारण बन रही है। हालाँकि यह ज्ञात हो कि 23 सितंबर 2013 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में आधार को स्वैच्छिक करार देते हुए कहा था कि सरकार किसी योजना अथवा सेवा लाभ के लिए नागरिकों पर आधार दिखाने के लिए दबाव नहीं डाल सकती है, ना ही उन्हें किसी भी तरह का लाभ देने से मना कर सकती है। लेकिन इसके बावजूद सभी सरकारी और ग़ैर-सरकारी कार्यों में आधार कार्ड देने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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