इंडिया पेले एले बीयर :
इंडिया पेले एले बीयर एक ख़ास तरह की बीयर (शराब) थी जिसे 19वीं के ब्रिटेन में बनायी जाती थी और हिंदुस्तान में शासन कर रहे ब्रिटिश अधिकारियों के लिए निर्यात की जाती थी। धीरे-धीरे यह इंडिया पेले एले बीयर बीयर दुनियाँ के लगभग सभी उपनिवेशों में फैल गई लेकिन बार-बार प्रयासों के बाद भी इस ‘पेले एले बीयर’ का नाम ‘इंडिया पेले एले बीयर’ ही रहा।

ब्रिटिश के द्वारा इस ख़ास तरह की बीयर इजात करने की ज़रूरत इसलिए पड़ी क्यूँकि बीयर ब्रिटेन में आम लोगों के दैनिक दिनचर्या का हिस्सा था और ब्रिटेन में तैयार होने वाले पारम्परिक बीयर अधिक तापमान पर ख़राब हो जाते थे। दूसरी तरफ़ हिंदुस्तान में तापमान ब्रिटेन की तुलना में बहुत अधिक था। इसके अलावा ब्रिटेन से हिंदुस्तान तक बीयर के निर्यात में महीनों का समय लगता था और जहाज़ को भूमध्य रेखा से होकर गुजरना पड़ता था जहां का तापमान पूरी दुनियाँ में सर्वाधिक हुआ करता था और इतना अधिक तापमान ब्रिटिश पारम्परिक बीयर सहन नहीं कर सकता था।
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इस समस्या के हल के लिए कुछ बीयर निर्माताओं ने एक नायाब तरीक़ा निकाला जिसमें एक ख़ास तरह के बीयर का निर्माण किया गया जिसे भुने हुए अनाज से बनाया जाता था, जिसका रंग अधिक गहरा होता था और जिसमें अधिक नशा होता था। इस ख़ास तरह के बीयर को अधिक तापमान सहने की क्षमता थी और लम्बे समय तक ख़राब नहीं होता था। इन विशेषताओं ने इस बीयर को ब्रिटेन से हिंदुस्तान को निर्यात करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त बना दिया। इस बीयर का नाम रखा गया ‘इंडिया पेले एले बीयर’।

ब्रिटिश और बीयर:
17वीं सदी तक वाइन यूरोप के अभिजात वर्ग का मुख्य पेय पदार्थ था। लेकिन 18वीं सदी के दौरान जैसे-जैसे शहरीकरण और उद्योगीकरण बढ़ा वैसे-वैसे ग़ैर-अभिजात वर्ग के बीच भी वाइन की माँग बढ़ने लगी। सस्ता होने के कारण मज़दूरों के लिए वाइन की जगह बीयर का का विकल्प बहुत जल्दी प्रचलित होने लगा। लेकिन 19वीं सदी के दौरान यूरोप में कृषि का उद्योगीकरण हुआ जिसके कारण खेतों में गेहूं की जगह कपास और गन्ने की खेती अधिक होने लगी। अनाज की कमी के कारण बीयर का उत्पादन अधिक महँगा हो गया। मज़दूर वर्ग के बीच चाय, कॉफ़ी और गन्ने के रस से बनी सस्ती शराब (रम) प्रचलित होने लगी।
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यूरोप में बीयर की घटती माँग को देखते हुए बीयर निर्माताओं ने यूरोप से बाहर रह रहे आमिर यूरोपीयों के बीच बीयर का बाज़ार बढ़ाने के प्रयास किया। 19वीं सदी में हिंदुस्तान ब्रिटिश सरकार का सर्वाधिक बड़ा उपनिवेश था जहां बड़ी संख्या में ब्रिटिश नागरिक यहाँ की सेना, शासन-प्रशासन का हिस्सा थे। भारत में अपनी सेवा दे रहे इन ब्रिटिश मूल के अधिकारियों और कर्मचारियों की आय भी सर्वाधिक थी इसलिए ये वर्ग ब्रिटिश से आयातित महँगी बीयर ख़रीदने में सक्षम भी थे।

इंडिया के बाहर ‘इंडिया पेले एले’:
बहुत जल्दी इंडिया पेले एले बीयर का निर्यात अमेरिका, कनाडा समेत विश्व के अन्य उपनिवेशों में फैल गया। 19वीं सदी के अंत तक अकेले उत्तर अमेरिका में हिंदुस्तान से छह गुना अधिक इंडिया पेले एले बीयर का उपभोग होने लगा लेकिन इस बीयर का नाम ‘इंडिया पेले एले बीयर’ ही रहा। हालाँकि पेले एले बीयर निर्माण करने वाली कई नयी कम्पनीयों ने इसका नाम बदलने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। इस बीयर का प्रभाव अमेरिका में इतना अधिक बढ़ गया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस बीयर के ख़िलाफ़ अमेरिका में प्रचार किया गया।
इंडिया पेले एले बीयर दिवस:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन के पतन के बाद इंडिया पेले एले बीयर का भी पतन हो गया। लेकिन 1990 के दशक के दौरान फिर से इस बीयर की माँग बढ़ने लगी। स्वाद में थोड़ी कड़वी, अधिक गहरे रंग और अधिक मोटे झाग देने वाले इस बीयर की माँग हिंदुस्तान में भी बढ़ने लगी है। वर्ष 2011 में “द बीयर वेन्च गाइड टू बीयर: एन अनप्रेन्टियस गाइड टू क्राफ्ट बीयर” किताब के लेखक एशले रूस्टेन ने हिंदुस्तान में हर साल अगस्त महीने के पहले गुरुवार को ‘इंडिया पेले एले डे’ मनाने की परम्परा शुरू किया है।
पिछले वर्ष 4 अगस्त 2022 को यह आयोजित किया गया था और इस वर्ष 3 अगस्त 2023 को आयोजित किया जाना है। हालाँकि ‘इंडिया पेले एले डे’ का आयोजन मुख्यतः बड़े शहरों ख़ासकर गोवा के बीयर बार और पब तक ही सीमित है लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में इसका आयोजन विस्तृत होने की पूरी सम्भावना है।
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