भारत में बंदूक़ रखने और Honorary या Celebratory Firing का अधिकार का समर्थन करने वालों में महात्मा गांधी जैसे लोग भी शामिल है। हालाँकि सिर्फ़ बिहार ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान के लगभग सभी राज्यों के साथ साथ दुनियाँ के अलग अलग देशों में इस तरह की Honorary या Celebratory Firing से हर वर्ष सैकड़ों लोगों की जान जाती है और हज़ारों घायल होते हैं। हिंदुस्तान में इस तरह की फ़ाइअरिंग को क़ानूनी तौर पर पूरी तरह प्रतिबंधित कर कर दिया गया है लेकिन उसके बावजूद इस तरह की फ़ाइअरिंग के मामलों में कोई कमी नहीं होती नज़र आ रही है।
अगर मैं आपसे कहूँ कि महात्मा गांधी आपकी शादी के जश्न में बंदूक़बाज़ी यानी कि पटाखों के साथ बंदूक़ से फ़ाइअरिंग करने का रास्ता आसन करना चाहते थे, वो आपको क़ानूनी अधिकार देना चाहते थे कि आप भी बिना किसी रोक टोक के अपनी शादी में दनादन फ़ाइअरिंग करे तो अटपटा लगेगा ना? पर कुछ तो सच्चाई है इस बात में, आज आपको इसी आंशिक सच्चाई की यात्रा पर ले चलते हैं।
हिंदुस्तान में शादियाँ:
एक अनुमान के अनुसार हिंदुस्तान में औसतन रोज़ तीस हज़ार शादियाँ होती है। इस हिसाब से महीने में तीन लाख और पूरे साल में एक करोड़ शादियाँ होती है। यानी दो करोड़ लोगों का स्टैटुस सिंगल से मैरीड होते हैं। साल में भी कुछ महीने तो ऐसे होते हैं जब एक महीने में ही तीस तीस लाख शादियाँ हो जाती है।
उदाहरण के लिए 4 नवम्बर 2022 से 14 दिसम्बर 2022 के दौरान तक़रीबन 32 लाख शादियाँ हुई थी। हिंदुस्तान के अलग अलग हिस्सों में शादी का सीज़न अलग अलग होता है। उदाहरण के लिए बिहार, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाक़ों में सर्वाधिक शादियाँ मई और जून महीने में होती है जबकि, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान आदि में नवम्बर दिसम्बर में सबसे ज़्यादा शादी होती है।
शादियों में खर्च करने के मामले में हिंदुस्तान दुनियाँ का पाँचवाँ सबसे ज़्यादा खर्चीला देश है। एक देश जो भुखमरी के मामले में 121 देशों की सूची में 107वें स्थान पर है वो शादियों में फज़ूलखर्ची के मामले में पाँचवें स्थान पर है। हिंदुस्तान अपनी शादियों में सिर्फ़ दहेज में नहीं बल्कि नाच-गान से लेकर हवाई फ़ाइअरिंग पर भी करोड़ों रुपए खर्च करता है। शादियों के दौरान इन हवाई फ़ाइअरिंगों में प्रत्येक वर्ष हज़ारों लोगों की घायल होते हैं और सैकड़ों लोग स्वर्ग सिधार जाते हैं।
शादियों में Celebratory Firing:
मारे जाने वाले लोगों की लिस्ट में दूल्हे और दुल्हन के दोस्त से लेकर माँ, बाप, भाई, बहन और पड़ोसी से लेकर बजा बजाने वाला और फ़ोटो खिचने वाला तक तक शामिल होता हैं। कई बार तो दूल्हा और दुल्हन भी ऐसी गोलियों का शिकार हो जाते हैं। 9 जून 2023 को भोजपुर ज़िले के संदेश पुलिस स्टेशन में पड़ने वाले डिहरी गाँव में एक शादी में दूल्हे के हाथ से गोली चली और दूल्हे की माँ की ही जान चली गई। इस वर्ष जून के पहले हफ़्ते तक celebratory firing में लगभग 25 लोगों की जान जा चुकी है।
इसी तरह पिछले साल 22 मई 2022 को बेगुसराय की एक शादी में दूल्हे की गोली से उसके दोस्त की ही जान चली गई। अगले ही महीने जून 2022 में अररिया की एक अन्य शादी में न सिर्फ़ दूल्हे की भाभी को जान गवाना पड़ा बल्कि खुद दूल्हा के साथ बारात में आए छः और लोग भी घायल हो गए।
सात जुलाई 2019 की रात को शाहपुर पुलिस स्टेशन के विजापत क्षेत्र में शादी के दौरान दूल्हे के दोस्तों ने गोलियाँ चलाई जिसमें दूल्हे की ही जान चली गई और उसके साथ दूल्हे का भई भी घायल हो गया। साल 2019 दौरान इस तरह की फ़ाइअरिंग में लगभग पच्चीस लोगों की मौत हुई थी। हर साल आपको ऐसी कई घटनाएँ सुनने पढ़ने और देखने को मिल जाएगी।
इसे भी पढ़े: क्यूँ घट रहा है पटना में दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या ?
बिहार में हर साल ऐसे शादी-विवाह और दूसरे तरह के जश्न के दौरान लगभग दो लगभग दर्जन से अधिक लोग मारे जाते हैं। बिहार में इस तरह के आयोजनों में गोलियाँ चलाना ग़ैर-क़ानूनी है फिर चाहे गोली लाइसेन्स वाली बंदूक़ से ही क्यूँ नहीं चली हो।
शादियों में ऐसी हवाई फ़ाइअरिंगों दो तरह के बन्दूकों से होती है। एक होता है गैंग ओफ़ वासेपुर का फट के फ़्लावर होने वाला तमंचा और दूसरा होता है सरकार के द्वारा दिए गए लाइसेन्स वाले बंदूकधारी। एक आँकड़े के अनुसार हिंदुस्तान में कुल 35 लाख लाइसेन्सी बंदूकधारी है जो गाहें बगाहे शादी-विवाह, से लेकर गाँव के क्रिकेट टूर्नामेंट में भी अपनी बंदूक़ लहराने आ जाते हैं।
इस तरह की जश्न के कार्यक्रम के दौरान हवा में गोली चलाने की प्रथा हिंदुस्तान के लगभग सभी राज्यों में है। हरियाणा में तो हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष साध्वी देव ठाकुर और उनके छह सहयोगियों ने नवम्बर 2016 में एक एंगेज्मेंट (सगाई) कार्यक्रम के दौरान celebratory Firing की जिसमें दूल्हे की मामी की मृत्यु हो गई और साथ में चार लोग घायल भी हो गए।
बरेली के इज्जतनगर, 30 अकटुबेर 2019, व्यवसायी अजय मेहता और उनकी पत्नी ने शाम को खुलेआम फ़ाइअरिंग किया, उनके बच्चे भी वहीं खड़े थे, और पिता ‘तेरा क्या होगा कलिया’ का डाइयलोग मार रहे थे। जब पुलिस में मामला दर्ज हुआ तो महानुभाव ने अपनी पिस्टल को खिलौने की पिस्टल बता दिया। उत्तर प्रदेश ने हाल ही में celebratory Firing को बैन कर दिया है।
BHU से पाकिस्तान तक:
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की सृष्टि राय और मनोज कुमार पाठक द्वारा वर्ष जनवरी 2017 से जून 2021 के दौरान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हॉस्पिटल में celebratory Firing के आए 128 घटनाओं पर एक रीसर्च किया। इस रीसर्च में यह बात सामने आयी कि celebratory Firing के सबसे ज़्यादा मामले शादियों के दौरान होते हैं और उसके बाद राजनीतिक कार्यक्रमों ख़ासकर विजय उत्सव में। हालाँकि चौकाने वाली बात यह सामने आयी कि कोविड के दौरान भी ऐसे celebratory Firing के ऐसे मामलों में कमी नहीं आयी जब सरकार ने शादी, रैली आदि पर प्रतिबंध लगा रखा था।
इसी तरह पाकिस्तान में भी एक शोध हुआ था। सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में लिकायत यूनिवर्सिटी के हॉस्पिटल में जनवरी 2009 से दिसम्बर 2010 तक दो साल के दौरान 144 ऐसी घटनाओं को इकट्ठा किया गया। इस शोध के अनुसार पाकिस्तान में भी सबसे ज़्यादा celebratory Firing शादी यानी की निकाह में होती है और उसके बाद राजनीतिक जलसों और नव वर्ष में। क्रिकेट-हॉकी में जीत के साथ साथ ईद से लेकर पतंग पर्व के दौरान भी ऐसी बंदूक़बाज़ी होती है।
ऐसी बंदूक़बाज़ी सिर्फ़ भारत पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। अफ़ग़ानिस्तान से लेकर अरब और दक्षिण अमरीका से लेकर अफ़्रीका के देशों में ऐसी घटनाएँ आम है। हिंदुस्तान में तो फिर भी ऐसे मौक़ों पर बन्दूकों के इस्तेमाल करने या किसी भी तरह के बंदूक़ का लाइसेन्स पाने का क़ानून बहुत अन्य देशों की तुलना में कड़ा और जटिल है यानी की मुश्किल है।
Celebratory Firing और क़ानून:
हिंदुस्तान में वर्ष 1878 से पहले बंदूक़ रखने के लिए कोई लाइसेन्स रखने से सम्बंधित क़ानून नहीं था। यानी कि कोई भी बिना किसी से कोई लाइसेन्स लिए बंदूक़ रख सकता था। लेकिन साल 1878 के बाद अगर कोई भारतीय नागरिक बंदूक़ रखना चाहता था तो उसे ब्रिटिश सरकार के पर्मिशन यानी की लाइसेन्स लेना पड़ता था। लेकिन यह क़ानून हिंदुस्तान में रह रहे ब्रिटिश नागरिकों पर लागू नहीं था।
भारतीयों और ब्रिटिश नागरिकों के लिए इस अलग अलग क़ानून के ख़िलाफ़ भारतीय स्वतंत्रता संग्रमि आवाज़ उठाते रहते थे। आवाज़ उठाने की लिस्ट में अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का भी नाम शामिल है। साल 1931 में महात्मा गांधी ने कराची रेज़लूशन तैयार किया किया जिसमें ब्रिटिश सरकार से सभी भारतीयों के लिए सात मौलिक अधिकार की माँग की। महात्मा गांधी द्वारा तैयार किए गए इन सात मौलिक अधिकारों की सूची में सातवाँ मौलिक अधिकार भारतीयों को गन यानी बंदूक़ रखने का अधिकार की माँग कर रहे थी।
ज़ाहिर था ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को यह अधिकार नहीं दिया। लेकिन गांधी जी साल 1931 से पहले भी इस तरह के सवाल उठा चुके थे। उन्होंने वर्ष 1918 में भी ब्रिटिश सरकार के इस बंदूक़ नीति में भारतीयों के साथ होने वाली भेदभाव की नीति का विरोध किया। वर्ष 1947 में देश को आज़ादी मिली, आज़ाद हिंदुस्तान में जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था तब भी कई लोगों ने बंदूक़ रखने के क़ानून पर संविधान सभा में चर्चा की।
इस मुद्दे पर संविधान सभा की बहस में एक दिसम्बर 1948 को H V Kamath ने संविधान की धारा 13 में बंदूक़ रखने के अधिकार को शामिल करने की माँग की थी। संविधान की अनुछेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों की बात करता है। यानी कि kamath साहब बंदूक़ रखने के अधिकार को भारतीयों के मौलिक अधिकार में शामिल करना चाहते थे।
इस माँग के दौरान उन्होंने कराची रेज़लूशन की वो पंक्तियाँ पढ़ी थी जो महात्मा गांधी ने तैयार किया था जिसकी चर्च हमने इसके पहले किया था। यानी के संविधान सभा में भारतीयों को बंदूक़ रखने का अधिकार दिलवाने के लिए गांधी का इस्तेमाल किया जा रहा था।
इसके अलवा H V Kamath ने 1923-24 के दौरान नागपुर में ब्रिटिश आर्म्स ऐक्ट के ख़िलाफ़ चले सत्याग्रह का भी चर्चा किया जो छह महीने चला था और उसमें देश के सभी हिस्सों के लोगों ने भाग लिया था। उन्होंने कांग्रेस के ऊपर आरोप भी लगाया कि अगर कराची रेज़लूशन का यह माँग संविधान में शामिल नहीं होता है तो कांग्रेस अपने ही वादों से मुकर रही है, अपने इतिहास से मुकर रही है। तमाम तर्कों के बावजूद संविधान सभा ने H V Kamath के सुझाव को रेजेक्ट कर दिया और भारतीय संविधान में बंदूक़ रखने सम्बंधित कोई अधिकार नहीं दिया।
अंततः संविधान लागू होने के नौ साल बाद आज़ाद हिंदुस्तान का पहला आर्म्स क़ानून वर्ष 1959 में बना जब आर्म्स ऐक्ट लोकसभा और राज्य सभा में पास किया गया। अब तक देश में ज़मींदारी प्रथा भी ख़त्म हो चुकी थी। इस नए हथियार क़ानून के अनुसार बिना लाइसेन्स के किसी भी भरतिए को बंदूक़ रखने या इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं था। लेकिन एयरगन के इस्तेमाल पर पाबंदी नहीं लगी थी।
इसके अलावा लाइसेन्स होने के बाद भी आम जनता को औटोमेटिक और सेमी-औटोमेटिक गन रखने का अधिकार नहीं था। क़ानून की बात करें तो हिंदुस्तान में बिना लाइसेन्स के तो तीर, धनुष, भाला, कृपाल, तलवार आदि भी रखना ग़ैर-क़ानूनी है लेकिन हक़ीक़त क्या है यह आप राजनीतिक रैलियों से लेकर धार्मिक रैलियों में देख सकते हैं जब भगवान के नाम पर और धर्म की रक्षा के नाम पर खुलेआम नंगे तलवार, कृपाल, भाला, आदि की नुमाइश होती है।
कुछ विवाद:
एक तरफ़ तो हिंदुस्तान में यूनिवर्सल सिवल कोड की बात होती है दूसरी तरफ़ हिंदुस्तान में आज भी यूनिवर्सल क्रिमिनल कोड नहीं है। उदाहरण के लिए गोरखा को खुख़री (एक तरह का चाकू) रखने के लिए या निहंग सिख को तलवार-कृपाल जैसे हथियार रखने के लिए किसी तरह की कोई लाइसेन्स लेने की ज़रूरत नहीं है। इसी तरह ओड़िसा के कोडवा समाज के लोगों को भी तलवार से लेकर बंदूक़ तक रखने का अधिकार है।
इसी तरह साल 2004 में आनंद मार्ग समाज के लोगों को त्रिशूल रखने का अधिकार दे दिया गया, मुस्लिम में शिया सम्प्रदाय के लोगों को मुहर्रम के दौरान चाकू तलवार की नुमाइश करने का क़ानूनी अधिकार है। यूनिवर्सल सिवल कोड की माँग करने वाले और यूनिवर्सल क्रिमिनल कोड का दावा करने वाले देश में अगर इस तरह से कुछ ख़ास समुदायों को विशेष अधिकार रहेगा तो उसके ग़लत इस्तेमाल की भी सम्भावना बनी रहेगी।
शादियों से लेकर राजनीतिक रैलियों में लहराने वाले तमंचे पर डिस्को होते रहेंगे, दूल्हे के शादी में कभी दुल्हन तो कभी दूल्हे का भई, तो कभी उसका दोस्त, पड़ोसी या कोई आम बाराती इन बंदूक़बाज़ी का शिकार होता रहेगा। हालाँकि वर्ष 2019 में भारत सरकार ने क़ानून में बदलाव करके celebratory Firing को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है लेकिन ऐसे celebratory Firing के आँकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं।

Facebook Page: https://www.facebook.com/newshunterss/
Tweeter: https://twitter.com/NewsHunterssss
Website: https://huntthehaunted.com