प्राचीन से मध्यकाल:
होली-पर्व हिंदुस्तान की कुछ प्राचीन त्योहारों में से एक है जिसे सभी धर्म के लोग हिंदुस्तान के प्रत्येक कोने में मनाते हैं। इतिहास में होली का चित्रांकन तीन तरीक़ों से हुआ है। प्राचीन काल में होली का चित्रांकन शिल्पकलाओं के द्वारा मंदिरों और महलों की दीवारों पर किया गया वहीं मध्यकाल के दौरान चित्रकारी के द्वारा होली के इतिहास को सहेजा गया। धर्म-निरपेक्ष मुग़ल बादशाह अकबर से लेकर कट्टर इस्लामिक मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब तक सभी होली-पर्व खेलते थे।

अंग्रेजों का दौर आते आते धार्मिक स्थलों पर खेली जाने वाली होलियों में महिलाएँ धीरे धीरे ग़ायब होने लगी। हालाँकि प्राचीन काल के मंदिरों व महलों की दीवारों पर होली-पर्व चित्रांकन में सर्वाधिक संख्या महिलाओं की ही हुआ करती थी। मुग़ल काल के दौरान खेली जाने वाली होली के चित्रांकन में भी सर्वाधिक संख्या महिलाओं की ही हुआ करती थी।

होली के बारे में मुग़ल राजकुमार और शाहजहाँ के पुत्र दारा शिकोह लिखते हैं, “होली हिंदू प्रथा में अंतिम संस्कार अग्नि के द्वारा किया जाता है इसलिए वर्ष का आख़री दिन होलिका दहन के साथ ख़त्म होता है और साल का पहला दिन रंग, गुलाब, फूल और धूल की होली के साथ शुरू होता है। लोग दिन भर होली खेलते हैं और शाम को नहाकर बाग-बगीचे में मिलकर नाचते-गाते हैं।”

होली-पर्व भारतीय परंपरा का कितना अभिन्न अंग था इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मराठा सेना जब किसी युद्ध पर अपने लस्कर के साथ किसी युद्ध के मैदान में रहती थी तब भी होली मनाती थी। ऐसा ही एक पेंटिंग है जिसमें मराठा युद्ध शिविर टेंट में होली माना रहे हैं।


ब्रिटिश दौर में होली-पर्व:
पेंटिंग के माध्यम से होली का चित्रांकन अंग्रेजों के दौर में भी जारी रहता है। मध्य काल की होली से सम्बंधित ज़्यादातर पेंटिंग में दरबारी होली का चित्रांकन किया गया है जबकि यूरोप से हिंदुस्तान आए चित्रकारों ने अपनी होली पेंटिंग में आम लोगों की होली का भी चित्रांकन किया है। आम जनता की होली का चित्रण करते हुए एक चित्र में कुछ बच्चे रंग और फूल की दुकान पर से रंग और फूल ख़रीद रहे हैं। उस दौर में आम लोगों की होली सिर्फ़ रंग नहीं बल्कि फूल का भी त्योहार हुआ करता था। आज भी झारखंड के संथाल आदिवसी अपनी होली-पर्व जिसे वो बहा पर्व कहते हैं उसमें पलाश के फूल से निकाले रंग का इस्तेमाल करते हैं।

होली हमेशा मज़ाक़, बकैती और पागलपन का दिन हुआ करता था। ऐसे दो चित्र मिलते हैं जिसमें होली के एक बिलकुल अलग रंग कर वर्णन किया गया है। एक चित्र लखनऊ का है और दूसरा मुर्शिदाबाद (कलकत्ता) का है। दोनो चित्रों का समय वर्ष 1795 से 1805 के बीच का है। दोनो चित्र में आम लोगों की होली का वर्णन है जिसमें पचास से सौ लोगों की भिड़ ढोलक, झाल, आदि वाद्ययंत्रों के साथ नाच-गा रहे हैं और भिड़ के बीच में उल्टी चारपाई पर एक व्यक्ति बैठा हुआ है।

चारपाई को लोग अपने कंधे पर टाँगे हुए हैं और चारपाई पर बैठे अर्ध-नग्न व्यक्ति के गले में जुटे-चप्पलों की माला के साथ साथ मोरपंख की जगह झाड़ू और झाड़-पत्तों का मुकुट लगा हुआ है। लोग सड़क पर पड़े धूल और कीचड़ को बार बार उठाकर उस उल्टी चारपाई पर बैठे व्यक्ति की तरफ़ फेंक रहे हैं।

होली का त्योहार सिर्फ़ हिंदुस्तान तक सीमित नहीं था। भारत से वेस्ट इंडीज़ और अन्य देशों में कुली मज़दूरों के रूप में कार्य करने वाले लोग भी वहाँ होली-पर्व मनाते थे और होली-फगुआ गाते थे। इस विषय पर बिहार के छपरा ज़िले के एक कुली मज़दूर लाल बिहारी शर्मा ने ‘डमरा फाग बहार’ शीर्षक से होली गीतों का एक संग्रह भी लिखा और प्रकाशित किया था।

फोटोग्राफी का दौर:
जब फोटोग्राफी की खोज हुई तो हिंदुस्तान में भी होली को फ़ोटो में क़ैद किया जाने लगा लेकिन तब तक अंग्रेजों का भारतीय परम्परा और संस्कृति को चित्रांकन करने में रुचि काम हो चुकी थी इसलिय ब्रिटिश दौरम में होली से संबंधित विरले ही कोई फ़ोटो मिलती है। लेकिन आज़ाद हिंदुस्तान में होली से सम्बंधित बहुत फ़ोटो मिलते हैं। इन फोटोग्राफ में ज़्यादातर फ़ोटो होली खेलते रजनेताओं और अभिनेताओं की है लेकिन कुछ फ़ोटो आम लोगों की भी है।

हिंदुस्तान के राजा रजवाड़े द्वारा होली-पर्व के लिए गए फोटोग्राफ दर्शाते हैं कि वो इस त्योहार को जनता के साथ संवाद स्थापित करने के लिए इस्तेमाल करते थे और मुग़ल दौर के विपरीत इनकी होली आम लोगों के साथ अधिक होती थी।

पंडित नेहरू अक्सर बच्चों और अन्य रजनेताओं के साथ होली मनाते थे। नेहरू की गोविंद बल्लभ पंत, राजेंद्र प्रसाद आदि के साथ होली खेलने की कई तस्वीरें है।

वर्ष 1956 में जब अमरीका के राष्ट्रपती केनेडि भारत दौरे पर आए थे तो नेहरू उनके और उनकी पत्नी के साथ भी होली खेले थे। इसी तरह जब वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी के कार्यकाल में अमरीका के राष्ट्रपती बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए थे तब उनकी बेटी चेल्सी क्लिंटन और बिल क्लिंटन भी होली खेले थे।

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इंदिरा गांधी अपने सहयोगी नेताओं के साथ कम और अपने परिवार के साथ होली ज़्यादा खेलती थी। एक पत्र में इंदिरा गांधी ने ज़िक्र किया था कि कैसे जब वो स्कूल में पढ़ती थी तो होली के बाद हाथ का रंग नहीं छूटने के कारण उन्हें स्कूल द्वारा सजा दी गई थी।

एक अन्य घटना का ज़िक्र करते हुए इंदिरा गांधी लिखती हैं कि एक वर्ष होली-पर्व के पहले जब उनके पिता जवाहरलाल नेहरू उनसे मिलने विद्यालय आए और निर्देशित समय से अधिक समय तक दोनो मिलते रहे तो स्कूल द्वारा सजा के तौर पर अगले दिन होली में इंदिरा गांधी को अपने दोस्तों के साथ होली खेलने के लिए बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी गई थी।

फ़िल्म जगत का आर॰ के॰ फ़िल्म स्टूडेओ की होली हमेशा से प्रसिद्ध रही है। हर वर्ष यहाँ फ़िल्म जगत के तमाम छोटे बड़े फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता अभिनेत्रियाँ और गायक-गायिका होली-पर्व मनाने जुटते थे। आर॰ के॰ फ़िल्म कपूर ख़ानदान द्वारा राज कपूर के नाम पर स्थापित किया गया था।



अनूठी होली:
हिंदुस्तान के सिख सम्प्रदाय के लोगों की होली-पर्व मनाने की परम्परा है जिसे वो होले मोहल्ला बोला जाता है। खालसा पंत की परम्परा के अंतर्गत मनाया जाने वाला यह होली-पर्व होली के अगले दिन मनाया जाता था। हिंदुस्तान में अनूठी होली-पर्व की परम्परा के साथ-साथ होली से सम्बंधित अनूठे साहित्य का पूरा अम्बर लगा हुआ है। ऐसी ही दो किताबें है जिसका शीर्षक क्रमशः आफ़त की होली या राष्ट्रीय फाग और ग़ज़ब की होली या राष्ट्रीय फाग है जो वर्ष 1922 में प्रकाशित हुई थी।
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