1930 का दशक आते-आते हिट्लर एशिया की तरफ़ अपना रुख़ कर चुका था। 1938 में Ernst Schäfer के नेतृत्व में हिट्लर ने कलकत्ता होते हुए हिमालय की तरफ़ एक खोजी अभियान भेजा। Ernst Schäfer एक युवा ज़ोआलॉजिस्ट था जो लोगों के नाक, कान, मुँह, होंठ, बाल का अध्ययन के आधार पर उनके नस्ल का निर्धारण करने पर शोध कर रहा था। अपना शोधपत्र लिखने के लिए वह पहले भी तिब्बत आ चुका था और अपने शोधपत्र में तिब्बत के लोगों का आर्य होने का दावा कर चुका था।
इस अभियान का भी मक़सद हिमालय जाकर यह खोजना था कि हिमालय में रहने वाले लोगों के पूर्वज आर्य थे ताकि हिट्लर हिमालय के पहाड़ों पर आर्य (नस्ल-रेस) के आधार पर अपना क़ब्ज़ा जमा सके। यह दौर नस्लीय भेदभाव और ‘सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट ’ का दौर था जिसे चार्ल्स डार्विन (1809-1882) ने बोया, हर्बर्ट स्पेन्सर (1820-1903) ने प्रतिपादित किया और थेओड़ोसिस दोबझंस्क्य (1900-1975) मज़बूत कर चुके थे।
हिट्लर के नेतृत्व में नाज़ी जर्मनी आर्य नस्ल को दुनियाँ का सर्वाधिक सक्षम, और सभ्य, नस्ल मानती थी और इस आधार पर दुनियाँ पर आर्य नस्ल का राज स्थापित करने का सपना देखता था। हिट्लर यह भी मानता था कि हिंदुस्तान के हिंदू आर्य हैं जिनका एक वर्ग प्राचीन काल मध्य एशिया (हिंदकुश पर्वत) से हिंदुस्तान आए थे और दूसरा वर्ग जर्मनी में जाकर बस गया था। हिट्लर और सुभाष चंद्र बोस के नज़दीकी का भी यही कारण माना जाता था।

Ernst Schäfer के खोजी टीम में सभी सदस्य हिट्लर और नाज़ी पार्टी की सेना SS के सदस्य थे। चूँकि हिट्लर ने हाल में ही जापान के साथ एक संधि किया था जिसके अनुसार हिट्लर चीन में हस्तक्षेप नहीं करेगा, इसलिए टीम चीन के रास्ते हिमालय (तिब्बत) नहीं घुस सकती थी। खोजी अभियान के पास हिमालय या तिब्बत घुसने का एक ही रास्ता था: हिंदुस्तान। पर हिंदुस्तान में अंग्रेजों का राज था जो हिट्लर और जर्मनी का कट्टर दुश्मन था। तिब्बत के लामा ने भी इस अभियान की स्वीकृति देने से मना कर दिया। ऐसे में Ernst Schäfer इंगलैंड में रहने वाले कुछ हिट्लर समर्थकों का साथ लिया और गुप्त रूप से हिमालय घुसने का प्रयास किया। (स्त्रोत)
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Ernst Schäfer 19 अप्रिल 1938 को बर्लिन से निकला और ग़ुएना होते हुए हिंदुस्तान पहुँचा। जब कलकत्ता में बैठी अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें तिब्बत जाने की अनुमति नहीं दे रही थी तो वो लोग गुप्त रूप से गढ़वाल होते हिमालय और तिब्बत में में भी घुसने का फ़ैसला ले चुका था। लेकिन अंततः सिक्किम राजघराना ने उन्हें सिक्किम आने की अनुमति दे दी और सिक्किम के रास्ते वो हिमालय में अपना खोजी अभियान चलाया। इस अभियान के दौरान दल ने स्थानीय लोगों की नस्लीय जाँच के लिए उनके चेहरे और शरीर के विभिन्न अंगों की सूक्ष्मता से नाप-जोख किया। अंततः वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हिमालय के आस पास रहने वाले लोग आर्य नस्ल से गहरा सम्बंध रखते थे।
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इस अभियान का विस्तृत अध्ययन करने के लिए आप क्रिस्टफ़र हाले की किताब ‘Himmler’s Crusade: The Nazi Expedition to Find the Origins of the Aryan Race’ पढ़ सकते हैं जिसे यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं या आप ऑनलाइन भी माँगा सकते हैं जिसकी क़ीमत दो हज़ार से अधिक है। कुछ अन्य किताबें भी है जिसमें इस अभियान का ज़िक्र है जैसे ‘Fallen Saints: A History of Himalayan Mountaineering from he Age of Empire to the Age of Extremes’ और Scott Ellsworth की ‘The World Beneath Their Feet: Mountaineering, Madness and the Deadly Race to Summit the Himalayas’