चित्रों में कहानी-7: गोहना/दुर्मी/बिरही झील का अतीत और आस
गोहना झील चमोली जिले के निजमुल्ला घाटी (12 गाँव का समूह) में चारधाम यात्रा मुख्य मार्ग से मात्र 11 किमी की दूरी पर स्थित है। इन 20 ऐतिहासिक चित्रों के माध्यम से गोहना/दुर्मी झील की बनने से बिगड़ने की कहानी को समझने का प्रयास किया जाएगा।
चित्र 1: वर्ष 1868 में बिरही नदी में मामूली भूस्खलन आने से नदी का रास्ता बंद होने लगा और गोहना झील का निर्माण होने लगा था। अंततः 21 सितम्बर 1893 में हरियादीप पहाड़ के बड़े हिस्से और किचमोलि पहाड़ के एक छोटे हिस्से पर भूस्खलन आया और बिरही नदी का बहाव पुरी तरह बंद हो गया। चित्र 2: अंततः 21 सितम्बर 1893 में हरियादीप पहाड़ के बड़े हिस्से और किचमोलि पहाड़ के एक छोटे हिस्से पर भूस्खलन आया और बिरही नदी का बहाव पुरी तरह बंद हो गया। स्थानिये पटवारी ने ज़िला प्रशासन को भूस्खलन की सूचना दिया जिसके बाद पहले ब्रिटिश आर्मी के इंजीनियर Lt Col, Pulford व हरीकृष्ण पंत और उसके बाद में जीयलॉजिकल सर्वे ओफ़ इंडिया के खोजकर्ता T. H. Holland (2 मार्च 1894) को झील के फटने के सम्भावित समय का अनुमान लगाने के लिए सर्वे करने को भेजा गया। (स्त्रोत)चित्र 3: फटने से पहले गोहना झील, 25 अगस्त 1894 को Lieutenant Crookshank द्वारा चमोली प्रशासन को भेजा गया चित्र। चित्र 4: बिरही नदी पर गोहना/दुर्मी झील, 1894। चित्र में बसे हुए गाँव और झील के आसपास सामान्य जीवन देखा जा सकता है। (फ़ोटो साभार: Earth Science India)चित्र 5: बोट पर बैठे Lt. Crookshank जिन्हें अंग्रेज़ी सरकार ने गोहना झील भेजा था पल-पल की खबर टेलीग्राम से चमोली प्रशासन को भेजने के लिए। उनके साथ तीन स्थानिये लोग भी थे। यह चित्र 25 अगस्त 1894 के दिन की है। इसी दिन रात के तक़रीबन 11 बजकर 30 मिनट पर गोहना झील टूट गया था।
चित्र 6: फटने के दौरन गोहना झील, 26 अगस्त 1894 की सुबह को Lieutenant Crookshank द्वारा चमोली प्रशासन को भेजा गया चित्र। चित्र 7: फटने के बाद गोहना झील। ये तस्वीर 26 अगस्त 1894 की सुबह की है। अर्थात् झील के टूटने के तक़रीबन 12 घंटे के बाद। आपदा ख़त्म होने के बाद झील मात्र 3,900 यार्ड लम्बी, 400 यार्ड चौड़ी व 300 फ़िट गहरी रह गई।चित्र 8: किचमोली पहाड़ पर झील के टूटने के बाद जलस्तर में हुई गिरावट को इस तस्वीर में गौर से देख सकते हैं। हल्का रंग का भाग कभी पानी में डूबा हुआ करता था।
बिरही झील कहें या दुर्मी ताल, पहाड़ों में झील को ताल बोलते हैं। 1894 में झील के फटने से पहले इसे गोहना झील बोलते थे और फटने के बाद बचे झील के बिरही झील (वॉल्यूम 12, Gazateers)। 1970 में जब दुबारा झील फटा और पूरी तरह नष्ट हो गया तो उसके बाद से इस स्थान को दुर्मीताल बोलते हैं। यही कारण है कि नैनी झील को नैनीताल बोला जाता है। बिरही नदी पर बनने के कारण इसे बिरही झील बोला जाता है और दुर्मी गाँव का हिस्सा होने के कारण दुर्मी ताल। अंग्रेजों के दौर में यह बिरही झील (ताल) देश विदेश से आने वाले पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र हुआ करता था।
खुशहाल दुर्मिताल
चित्र 9: झील टूटने के एक महीने के भीतर ही झील में स्थिति सामान्य होने लगी। यह तस्वीर सितम्बर 1894 की है, अर्थात् आपदा के एक महीने के बाद की। इस तस्वीर में एक विदेशी औरत को बोटिंग का आनंद लेते देख सकते हैं।चित्र 10: वर्ष 1930 में गोहना झील के किनारे अनन्द लेते दो पर्यटक। (चित्रा साभार: स्त्रोत लिंक)चित्र 11: गोहना झील पर लकड़ी का एकमात्रा पुल जो ज़रूरी था दुर्मी गाँव और वन विभाग के डाक बंगले तक जाने के लिए। इस लकड़ी के पुल का निर्माण अंग्रेज़ी सरकार ने करवाया था। 1971 के आपदा के दौरान ये पुल टूट गया था जिसका निर्माण आज तक दुबारा नहीं किया गया है। (स्त्रोत)चित्र 12: चित्र 14: गोहना झील (ताल) (वर्ष 1968, फ़ोटो साभार: H C Shah)
चित्र 13: गोहना झील से त्रिशूल शिखर और कुआरी पास का विहंगम दृश्य। (वर्ष 1968, फ़ोटो साभार: H C Shah)चित्र 14: गोहना झील (ताल) (वर्ष 1968, फ़ोटो साभार: H C Shah)
फिर से तबाही
चित्र 15: बिरही नदी की तलहटी में वीरान पड़ा दुर्मी/गोहना झील। ये झील 1894 के बाद से लगातार संकुचित हो रहा था। एक रिपोर्ट के अनुसार 1936 में यह झील मात्र 2 वर्ग मील, 1959 में एक वर्ग मील, 1967 में आधा वर्ग मील और 1973 की आपदा के बाद यह झील लगभग विलुप्त हो चुकी थी। 1973 की आपदा में पूरा चमोली शहर तबाह हो गया था जिसके बाद चमोली ज़िले का प्रशासनिक हेड्क्वॉर्टर गोपेश्वर शहर में स्थान्तरित किया गया। 1971 के इस आपदा में श्रीनगर स्थित ITI और पोलेटिकनिक भी डूब गया था। (चित्र साभार: PAHAR)चित्र 16: चित्र में sc भाग झील का वो क्षेत्र है जिस पहाड़ में भुस्खलन आने से गोहना झील का निर्माण हुआ, rd वो हिस्सा है जिस ऊँचाई तक गोहना झील में वर्ष 1894 तक पानी भरा होता था और tce वो हिस्सा है जहाँ तक वर्ष 1971 तक पानी भरा होता था। BG वो हिस्सा है जो आज के गोहना या बिरही या दुर्मी ताल को दर्शता है। (चित्र साभार: स्त्रोत लिंक)चित्र 17: पिछले कई वर्षों से दुर्मी, ईरानी आदि गाँव के ग्रामीण इस लुप्त हो चुके झील के स्थान पर कृत्रिम डैम और झील बनाने की माँग कर रहे हैं ताकि क्षेत्र में पर्यटन का विकास हो सके और साथ में बिजली का उत्पादन। आजकल स्थानिय स्तर पर इस झील के बारे में यह मान्यता भी प्रचलित होने लगी है कि प्राचीन काल में शिव और पार्वती जब इस क्षेत्र से गुजर रहे थे तो पार्वती को प्यास लगने पर महादेव ने इस स्थान पर अपनी जटा से इस ताल का निर्माण किया था। (चित्र साभार: जेम्स चैम्पीयन, 2006)
एक नई आस
चित्र 18: गोहना/दुर्मीताल झील पुनः निर्माण की रूपरेखा जिसके तहत झील पर तीन डैम के साथ नहर निर्माण का भी प्रयास है। इस रूपरेखा को तैयार करने में कई संस्थाएँ सामने आइ है लेकिन सरकार की तरफ़ से अभी तक कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। (स्त्रोत: ईरानी ग्राम प्रधान मोहन नेगी के Facebook से)चित्र 19: कुछ ऐसा दिखने की आस है नवनिर्मित गोहना झील को। (चित्र साभार: ईरानी ग्राम प्रधान मोहन नेगी के Facebook से)चित्र 20: जो काम देश के पुरातत्व विभाग को करना चाहिए था वो काम निजमुल्ला घाटी के स्थानिय ग्रामीण कर रहे हैं। कुछ ही वर्ष पूर्व ग्रामीण ने व्यक्तिगत प्रयास से गोहना झील के मलबे में दबे उस नाव (बोट) को खुदाई करके निकाला जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों के दौर में यहाँ आने वाले पर्यटक किया करते थे। (चित्र साभार: durmital.com)
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