24 जुलाई 2023 को आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह का अनुशासन तोड़ने के लिए संसद के पूरे मानसून सत्र से निलम्बन हो गया। ठीक एक साल पहले यानी कि 25 जुलाई 2022 को भी कांग्रेस के 4 सांसदों को निलम्बित किया गया था। 24 जुलाई 2023 भी सोमवार का दिन था, सावन के महादेव का दिन था और 25 जुलाई 2022 भी सावन के सोमवार का ही दिन था, सावन के महादेव का दिन।
वैसे सांसदों को तो सभी सरकारें निलम्बित करती है। फिर चाहे वो मोदी सरकार हो, मनमोहन सरकार या फिर नेहरू सरकार ही क्यूँ न हो। लेकिन संसद में निलम्बित होने वाले सांसदों की संख्या आज़ादी के बाद से ही लगातार बढ़ रही है। जुलाई 2006 से मार्च 2014 के बीच मनमोहन सरकार के 8 सालों के कार्यकाल के दौरान कुल 51 सांसदों का निलम्बन हुआ था जबकि अगस्त 2015 से जुलाई 2022 के बीच मोदी सरकार के सात सालों के कार्यकाल के दौरान 142 सांसदों को निलम्बित किया जा चुका है। मनमोहन सरकार के आठ सालों की तुलना में मोदी सरकार के सात साल के कार्यकाल के दौरान निलम्बित होने वाले सांसदों की संख्या में लगभग 175 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
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उधर नेहरू सरकार इस मामले में पीछे रह गई। नेहरू के पूरे 17 वर्षों के कार्यकाल के दौरान मात्र एक लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद का निलम्बन हुआ था। इन दो सांसदों की भी कहानी आपको कभी किसी और दिन तफ़सील से सुनाऊँगा। फ़िलहाल सिर्फ़ इतना जान लीजिए कि नेहरू के कार्यकाल के दौरान ही 18 फ़रवरी 1963 को जब विपक्ष के दो सांसदों ने संसद के भीतर हो-हल्ला मचाया, वो भी संसद के संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान, तब भी सरकार ने उन दो सांसदों को संसद से निलबित नहीं किया था बल्कि उस अप्रिय घटना पर सिर्फ़ खेद जताया था। अगले दिन विपक्ष ने भी उस घटना पर खेद जताया और माफ़ी भी माँगी। मामला वहीं ख़त्म हो गया। अब लौटते हैं पिछले कुछ वर्षों में हुए निलम्बन पर।
साल 2023 के मानसून सत्र के दौरान संजय सिंह का निलम्बन इस साल का पहला निलम्बन है। पिछले साल यानी कि 2022 में भी संजय सिंह निलम्बित हुए थे। 2022 के दौरान संसद के कुल 27 सांसदों को निलम्बित किया गया था जिसमें से 23 राज्य सभा सांसद थे और 4 लोकसभा सांसद थे। इसी तरह साल 2021 में 20 सांसदों का निलम्बन हुआ, 2020 में 15 का, 2019 में 49 का, 2017 में 6 का, 2015 में 25 का, और 2014 में 18 सांसदों का निलम्बन हुआ था। और ये सब मैं नहीं बोल रहा हूँ ये सब संसद की वार्षिक रिपोर्ट में आप भी पढ़ सकते हैं।
इतिहास में निलम्बन:
लेकिन क्या आपको पता है कि किस साल भारत में सर्वाधिक सांसदों का निलम्बन हुआ था? हिंदुस्तान में संसद से निलंबित होने वाले सबसे पहले सांसद का नाम क्या था ? सबसे पहले निलम्बित होने वाले बिहारी सांसद का नाम क्या था, उन्हें क्यूँ निलम्बित किया गया था उन्हें और कितने दिनों के लिए निलम्बित किया गया था?
देश का पहला सांसद जिन्हें संसद से निलम्बित किया गया था उनका नाम था Gorey Murahari जिन्हें 3 सितम्बर 1962 को राज्य सभा से निलम्बित किया गया था। इसी तरह हुकम चंद चकवाई को 13 अप्रैल 1963 को सदन के सभापति महोदय के साथ बत्तमीजी करने के कारण निलम्बित कर दिया गया था। ये लोकसभा के सांसद थे, मध्य प्रदेश से। ये दोनो सांसद जिनका नेहरू कार्यकाल के दौरान निलम्बन हुआ था वो दोनो आदतन सदन से निलम्बित होने वाले सांसद थे, इसीलिए इन्हें आगे भी इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान कई बार सांसद से निलम्बित किया जाएगा। इन दोनो के ऊपर हम अलग से एक विडीओ बनाएँगे क्यूँकि इन दोनो का व्यक्तित्व बहुत रोचक है।
सांसदों के निलम्बन के प्रश्न पर संविधान में कोई स्पष्टता नहीं है। संविधान सभा में इस बात पर चर्चा या बहस कभी हुआ ही नहीं कि किन परिस्थितियों में किसी सांसद को सदन से बाहर किया जा सकता था, निलम्बित किया जा सकता था। संविधान लागू होने के दो साल से भी अधिक समय के बाद 13 मई 1952 को पार्लमेंटरी बुलेटिन जो संसद की अधिकारिक पत्रिका है उसमें Parliamentary Etiquette शीर्षक से एक पैरग्रैफ़ छापा। इस पैरग्रैफ़ में 27 बिंदुओं को दर्शाया गया जो सभी सांसदों को फ़ॉलो करने के लिए आग्रह किया गया था, सदन की कार्यवाही के दौरान, सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए।
16 मई को सांसदों ने इन 27 बिंदुओं का विरोध किया जिसपर सभापति महोदय ने सबको शांत कराते हुए सिर्फ़ इतना ही कहा कि “ये 27 बिंदु कोई क़ानून नहीं है, इसे नहीं मानने के लिए आपको कोई सजा नहीं दी जाएगी, लेकिन सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए सभी सांसदों से ये आशा किया जाता है कि वो इन निर्देशों का पालन करें। और इस तरह के दिशानिर्देश दुनियाँ के लगभग सभी संसदों में होते हैं।” आज भी ये दिशानिर्देश हमारे संसद की पार्लमेंट बुलेटिन पत्रिका में छपता है।
इसे भी पढ़े: 1952 के चुनाव में इस एक ही लोकसभा सीट पर एक साथ तीन सांसद निर्वाचित हुए थे।
आज के इस दौर में शायद ही कोई ऐसा सांसद होगा जो उन 27 बिंदुओं का पालन करता हो, और एक वो दौर था जब इन 27 बिंदुओं का शायद ही कभी कोई सांसद उलंघन करता था। वो दौर अलग था, ये दौर अलग है। संसद के दोनो सदनों के संचालन के लिए जो 27 दिशानिर्देश बनाए गए थे उसमें सुधार व बदलाव करने के लिए साल 1976 में एक समिति का गठन भी गठन किया गया। इस समिति के सुझाव के अनुसार अब संसद अपने सांसदों के न सिर्फ़ सदन के भीतर के बल्कि सदन के बाहर भी किए गए दुर्व्यवहार पर नज़र रखने लगी थी और उसपर सजा भी देने लगी थी।
अगर आप सांसदों के निलम्बन का वर्षवार अध्ययन करेंगे तो उसमें आपको एक पैटर्न दिखेगा। जब जब सरकार व सत्ता निरंकुश हुई है, विपक्ष मज़बूत हुआ है, सत्ता पक्ष सवालों के घेरे में आइ है तब-तब निलम्बित सांसदों की संख्या बढ़ी है। उदाहरण के लिए नेहरू के 17 वर्षों के कार्यकाल के दौरान मात्र दो सांसदों का निलम्बन हुआ था और वो भी माफ़ी माँगने के बाद रद्द कर दिया गया था। और ये दो सांसद तब निलम्बित हुए थे जब 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की हार हुई थी और सभी इसके लिए नेहरू को कटघरे में खड़ा कर रहे थे।
लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में एक भी सांसद को निलम्बित नहीं किया गया था। 1966-67 में जब लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर कांग्रेस में फूँट पड़ी, कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आपसी विवाद हुआ, कांग्रेस पार्टी दो हिस्सों में बट गई, तो संसद के भीतर सांसदों के निलम्बन की संख्या भी बढ़ गई थी। सिर्फ़ 1966 में ही पाँच सांसदों का निलम्बन हुआ था। लेकिन 1967 के चुनाव के बाद जब इंदिरा गांधी कांग्रेस के उस आपसी झगड़े में विजयी हुई उसके बाद साल 1971 तक एक भी सांसद का निलम्बन नहीं हुआ। लेकिन जैसे जैसे इंदिरा गांधी निरंकुश होने लगी और उनके ख़िलाफ़ JP आंदोलन सड़क से लेकर सांसद तक तेज होने लगा वैसे वैसे सांसदों के निलम्बन की संख्या भी बढ़ने लगी।
इसी तरह जब 1977 और फिर 1989 में जब देश में ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी, सत्ता पक्ष कमजोर हुआ, विपक्ष मज़बूत हुआ, तो सांसदों के निलम्बन की संख्या तेज़ी से बढ़ी। 15 मार्च 1989 को 63 लोकसभा सांसदों का एक बार में ही, एक साथ, एक हफ़्ते के लिए निलम्बित कर दिया गया था जब संसद इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर समिति की रिपोर्ट के उपर बहस कर रही थी। यह भारतीय संसद के आज तक के इतिहास में सांसदों का सबसे बड़ा निलम्बन था। और अब क्या हो रहा है वो तो आप खुद भी देख ही रहे हैं। एक समय था नेहरू का, जब दस-दस सालों में भी एक भी सांसद निलम्बित नहीं होते थे और एक समय है अब का जब हर साल दर्जनों संसद निलम्बित हो जाते हैं।
अब निलम्बन सिर्फ़ अनुशासन तोड़ने के लिए नहीं बल्कि आपराधिक मामलों में भी निलम्बन बढ़ रहा है। इसी साल मानहानि के एक केस में अपराधी साबित होने के बाद राहुल गांधी को अगले आठ सालों के लिए सांसद के दोनो सदनों से निलम्बित कर दिया गया। आपराधिक मामलों में निलम्बित होने वाले सांसदों की कहानी भी बिल्कुल अग़ल है जिसकी शुरुआत लालू यादव के चारा घोटाले के साथ शुरू हुई थी। और उसपर चर्चा हम यहाँ नहीं करेंगे। यहाँ सिर्फ़ ग़ैर-आपराधिक मामलों में हुए निलम्बन की ही चर्चा करेंगे।
भारतीय संसद में किसी भी सांसद का निलम्बन मुख्यतः दो तरह कारणों से होता है। एक सदन के अंदर अनुशासन हीनता दिखाने के लिए और दूसरा सदन के बाहर किसी अपराध में सजा पाने के बाद। राहुल गांधी का निलम्बन अपराध में सजा मिलने के बाद हुआ और संजय सिंह को सदन के भीतर अनुशासन हीनता दिखने के लिए निलम्बित किया गया। ज़्यादातर निलम्बन अनुशासनहीनता के कारण ही होता है और संसद ऐसे अनुशासनहिन सांसदों को माफ़ी माँगने के बाद अक्सर माफ़ भी कर देती है लेकिन अपराधी सांसदों को कभी माफ़ नहीं करती है। वैसे इस बार तो अमित शाह जी और गुजरात उच्च न्यायालय बोलते रही कि राहुल गांधी अपने अपराध के लिए माफ़ी माँग ले तो उनका निलम्बन रद्द कर दिया जाएगा लेकिन राहुल गांधी तपाक से बोलते रहे, “मेरा नाम गांधी है, सावरकर नहीं।” अब सावरकर और माफ़ी का क्या रिश्ता उसे फ़िलहाल राहुल गांधी जी पर छोड़ देते हैं।
इससे पहले संसद के भीतर सांसदों को और अधिक अनुशासित करने के लिए नवम्बर 2001 में एक 60 बिंदुओं वाला नया दिशानिर्देशों की सूची जारी की गई थी जिसके उलंघन पर सांसदों का निलम्बन किया जा सकता था। याद रहे जैसा हमने पहले इस विडीओ में बताया था कि इस तरह का पहला दिशानिर्देश मई 1952 में जारी किया गया था जिसमें मात्र 27 बिंदु थे और जिसे 1976 में अप्डेट भी किया गया था। अब इस नए दिशानिर्देश में दिशानिर्देशों की संख्या बढ़ाकर 60 कर दी गई थी। इस नए सुझाव के तहत अब किसी भी सांसद को संसद के अधिकतम पाँच सत्र तक के लिए संसद से निलम्बित किया जा सकता है जबकि पिछले दिशानिर्देश के तहत किस भी सांसद को सिर्फ़ उसी सत्र के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता था जिस सत्र के दौरान सांसद ने अनुशासन तोड़ा है।
राहुल गांधी जैसे आपराधिक मामलों में तो संसद से निलम्बन के ख़िलाफ़ कोई भी सांसद कोर्ट में जा सकता है। लेकिन अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत संसद से निलम्बन के मामले में कोर्ट जाने का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन कई बार ऐसे अनुशासनात्मक कार्यवाही वाले मामले भी कुछ सांसद अपने निलम्बन के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गए है। मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने सदन के निलम्बन के अधिकार को सही माना तो पंजाब और हरियाणा के कोर्ट ने इसे सही नहीं माना। सर्वोच्च न्यायालय ने “संसद में वोट के बदले नोट मामले” में सांसदों के निलम्बन को सही माना तो था लेकिन अन्य मामलों में संसद के कार्यवाही के मामले में हस्तक्षेप करने से साफ इंकार कर दिया क्यूँकि संविधान की धारा 122 में ये प्रावधान है कि संसद कि प्रोसीडिंग में न्यायालय किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
नैतिकता के सवाल पर न्यायालय को हस्तक्षेप करना भी नहीं चाहिए। लेकिन सांसदों का निलम्बन का सवाल क्या अब सिर्फ़ नैतिकता तक सीमित रह गई है? ख़ासकर ऐसे समय में जब सदन के भीतर चप्पल, जुते, गाली गलौज से लेकर कुर्सियाँ और माइक तक एक दूसरे के ऊपर फेंकी जाती है। ये सवाल आपके लिए भी है। नेताओं का मार-पीट गाली-गलौज नैतिकता। और आम जनता का मार-पीट गाली-गलौज अपराध? ये कैसे? अगर संसद में कुर्सी चलाना और गाली गलौज करना नैतिकता का उलंघन है तो राहुल गांधी द्वारा ये कहना कि “भारत सरकार का पैसा लूटने वाले सारे चोर का नाम मोदी ही क्यूँ है?” ये अपराध कैसे हो सकता है?
मंथन कीजिए, सिर्फ़ सुनिए नहीं, खबर सिर्फ़ सुनने के लिए नहीं होता है, ख़ासकर के उस दौर में जब कुछ खबर सत्ता के गोद में बैठी हो और कुछ विपक्ष की गोद में।

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