मोदी सरकार आज़ाद हिंदुस्तान की पहली सरकार है जो किसी क़ानून पर बहस करने या नया क़ानून बनाने के लिए संसद का विशेष सत्र बुला रही है। मोदी सरकार से पहले साल 1935 में अंग्रेजों ने संसद का विशेष सत्र बुलाया था, उस समय के कर संग्रहण व्यवस्था से सम्बंधित क़ानून में बदलाव करने के लिए। उस समय भारत में क़ानून बनाने के लिए लोकसभा और राज्य सभा की जगह वायसराय काउन्सिल और प्रविंचल काउन्सिल हुआ करती थी। साल 1935 के बाद 82 सालों के बाद 30 जून 2017 को मोदी सरकार ने GST के ऊपर संसद का विशेष सत्र बुलाया था। लेकिन इस सत्र में कोई बहस नहीं हुआ था।
यह सत्र सिर्फ़ एक घंटा दस मिनट चला था, 30 जून की रात 11 बजे शुरू हुआ था और 1 जुलाई की ज़ीरो बजके दस मिनट पर ख़त्म हो गया था, जिसमें सिर्फ़ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधित किया था। इस सत्र में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति के साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और I K गुजरात को भी बिठाया गया था। इस सत्र के आधार पर एक जुलाई से देश में पुरानी GST व्यवस्था को ख़त्म कर दी दिया गया था।
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अगर 18 से 22 सितम्बर 2023 को संसद का सत्र लोक सभा और राज्य सभा में अलग अलग होता है और दोनो जगह “एक राष्ट्र, एक चुनाव”, “कॉमन सिवल कोड, महिला आरक्षण बिल या किसी भी बिल पर बहस होती है तो यह 1935 की याद दिलाएगी, यह अंग्रेज़ी शासन की याद दिलाएगी जब अंग्रेजों ने भी ऐसा ही किया था।
भारत के संविधान में यह कहीं नहीं लिखा हुआ है कि एक साल में देश के संसद का कितना सत्र चलना चाहिए या कितने दिनों के लिए संसद सत्र चलना चाहिए। संविधान की धारा 85 में सिर्फ़ इतना लिखा हुआ है कि कैबिनेट कि सलाह पर देश के राष्ट्रपति कभी भी संसद का सत्र शुरू कर सकते हैं। इतना ज़रूर लिखा हुआ है की संसद के दो सत्रों के बीच में छह महीने से अधिक का गैप नहीं होना चाहिए। यानी की एक साल में संसद में कम से कम दो सत्र तो होगा ही। बाद में 24 अप्रैल 1955 को लोक सभा की General Purposes Committee की सलाह पर यह तय कर दिया गया कि देश की संसद में तीन सत्र होंगे, हर साल: मानसून सत्र, शीतकालीन सत्र, और बजट सत्र।
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चुकी संविधान के अनुसार देश के राष्ट्रपति कभी भी संसद का सत्र बुला सकते हैं इसलिए आज़ादी के बाद कई ऐसे मौक़े आए जब देश की संसद का विशेष सत्र बुलाया गया। लेकिन ऐसे लगभग सभी विशेष सत्र ग़ैर-राजनीतिक विषयों पर बुलाए गए थे। कभी भी किसी क़ानून या अध्यादेश के ऊपर बहस के लिए देश में विशेष सत्र कभी नहीं बुलाया गया था। और सभी मौक़े पर संसद का विशेष सत्र संसद का joint सेशन हुआ करता था, यानी की लोक सभा और राज्य सभा का अलग अलग सत्र नहीं चलता था बल्कि एक साथ एक ही सेंट्रल हॉल में ऐसे सत्र चलते थे।
इतिहास में संसद के इन विशेष सत्रों में से लगभग सभी सत्र किसी विशेष दिन की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में बुलाया जाता था। जैसे कि आज़ादी का पच्चीसवाँ वर्षगाँठ, 50वाँ वर्षगाँठ, भारत छोड़ो आंदोलन का 50वाँ वर्षगाँठ, 75वाँ वर्षगाँठ आदि आदि। ऐसे विशेष सत्रों की सूची कुछ इस प्रकार है।
विशेष सत्र का इतिहास:
देश में पहली बार संसद का विशेष सत्र 14 और 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को बुलाया गया था जब भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर इस पहले विशेष सत्र में ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण किया था और संसद के इसी विशेष सत्र में जवाहरलाल नेहरू ने वो प्रसिद्ध Tryst With Destiny भाषण दिया था।
आज़ाद हिंदुस्तान का दूसरा और गणतंत्र हिंदुस्तान का पहला संसद का विशेष सत्र 14 नवंबर 1962 को तब हुआ था जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत सरकार ने तत्कालीन जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर विशेष सत्र बुलाया था। एजेंडा, भारत-चीन युद्ध की स्थिति पर चर्चा करना था।
इसके बाद 14-15 अगस्त, 1972 की रात को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था, 14-15 अगस्त 1947 की उस रात की यादों को ताज़ा करने के लिए जब इसी संसद में भारत की आज़ादी की घोषणा हुई थी।इस दिन भारत की स्वतंत्रता के 25 वर्षों के जश्न को आयोजित किया गया था।
28 फ़रवरी और 1 मार्च 1977 कोतमिलनाडु और नागालैंड में राष्ट्रपति शासन के अवधि को बढ़ाने के लिए दो दिन का विशेष सत्र संसद में आयोजित किया गया था। यह सत्र सिर्फ़ राज्य सभा में हुआ था क्यूँकि उस समय देश में आपातकाल लगा हुआ था और लोकसभा उस समय भांग थी।
3 से 4 जून 1991 कोहरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए फिर से देश की संसद का विशेष सत्र बुलाया गया। यह सत्र भी सिर्फ़ राज्य सभा में हुआ था क्यूँकि उस समय लोकसभा भंग थी क्यूँकि देश में उस समय लोकसभा चुनाव हो रहा था और पूरे देश में अचार संहिता लगा हुआ था और उसी दौरान 21 मई को राजीव गांधी की हत्या भी हो गई थी।
देश की संसद का अगला विशेष सत्र 9 अगस्त, 1992 को बुलाया गया। यह संसद का एक मिडनाइट स्पेशल सत्र था। यह सत्र भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त, 1942 को अपने ‘करो या मरो’ भाषण के साथ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था।
इसी तरह 14-15 अगस्त, 1997 की रात को देश की स्वतंत्रता के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद का मध्यरात्रि सत्र आयोजित किया गया था। ठीक वैसे ही जैसे 14-15 अगस्त 1972 की मध्यरात्रि को आज़ादी के पच्चीस साल को याद करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था।
26-27 नवंबर, 2015 कोडॉ. बी.आर. अंबेडकर की 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो दिवसीय विशेष सत्र आयोजित किया गया।
और इसके बाद होता है भारत के संसदीय इतिहास में वो पहला विशेष सत्र जो पूरी तरह राजनीतिक था। 30 जून 2017 को पुराने GST व्यवस्था को हटाने और नई GST व्यवस्था को शुरू करने के लिए संसद के विशेष सत्र का आयोजन किया गया। उस समय भी विपक्ष ने इस विशेष सत्र को मोदी सरकार का पब्लिसिटी स्टंट बताया था। हालाँकि इस मौक़े पर भी किसी क़ानून या बिल पर कोई बहस नहीं किया गया था।
26 नवम्बर 2017 को बुलाए गए संसद का विशेष सत्र पहली नज़र में राजनीति से प्रभावित तो नहीं दिखता है लेकिन गहराई से देखने पर इसमें भी राजनीति की बू आती है। 26 नवम्बर 2017 भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पूरा होने पर संसद का विशेष सत्र बुलाया गया जैसे कि 9 अगस्त, 1992 को भारत छोड़ो आंदोलन के पचास वर्ष पूरा होने पर संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था। लेकिन सवाल उठता है कि इस उपलक्ष्य को मानने का दिन क्यूँ बदल दिया गया? भारत छोड़ो आंदोलन तो 8-9 अगस्त से शुरू हुआ था फिर 26 नवम्बर 1942 को ऐसा क्या हुआ था जो भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए मोदी सरकार ने 26 नवम्बर का दिन चुना?
दरअसल 26 नवम्बर 1942 को कुछ भी नहीं हुआ था। फिर ये तिथि क्यूँ चुना गया? कहीं ऐसा तो नहीं है कि 26 नवम्बर का दिन इसलिए चुना गया ताकि भारत छोड़ो आंदोलन की विरासत से महात्मा गांधी के नाम को हटाया जाय या कम किया जा सके? क्यूँकि अगर विशेष सत्र 8 या 9 अगस्त को बुलाया जाता तो महात्मा गांधी का भी नाम लेना पड़ता क्यूँकि 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने ही करो या मारो नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन का आग़ाज़ किया था।
जिस तरह से मोदी सरकार अपने कार्यकाल के दौरान संसद के विशेष सत्र के प्रावधानों को अपनी पार्टी की विचारधारा के प्रचार और पब्लिसिटी स्टंट के लिए इस्तेमाल कर रही है इतिहास में इससे पहले कभी भी नहीं हुआ था। इतिहास में संसद के विशेष सत्र का इस्तेमाल राजनीतिक कारणों के लिए कभी नहीं किया गया था। 18 मई 1949 को संविधान सभा में बाबा साहेब अम्बेडकर ने इस बात पर शंका भी ज़ाहिर किया था कि चुकी संविधान में इस बात का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है कि देश की संसद में विशेष सत्र कब कब बुलाया जा सकता है तो आगे आने वाले दिनों में हो सकता है पूरे साल नेता संसद में सिर्फ़ बहस ही करते रहे। और उसका राजनीतिक इस्तेमाल होता रहे।
इस देश के संसद और संसदीय परम्परा के प्रति मोदी सरकार कितना संजीदा है इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि देश के इतिहास में मोदी सरकार के दौरान ऐसा पहली बार हुआ था कि जब संसद में पूर्व-निर्धारित मानसून, शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन तीन सत्रों में से कोई भी एक सत्र रद्द हुआ हो। साल 2020 में शीतकालीन सत्र को मोदी सरकार ने कोविड का बहाना लगाकर रद्द कर दिया गया था। हालाँकि उसी 2020 की शर्दी के दौरान नवम्बर में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ, रैलियाँ की गई, और राजनीतिक जलसे लगे। साल
2017 में तो गुजरात चुनाव के कारण संसद के शीतकालीन सत्र के दिनों को ही कम कर दिया गया था। इसी तरह से 2016 में सिर्फ़ एक ऑर्डिनेन्स पास करने के लिए सरकार ने बजट सेशन को दो भागों में विभाजित कर दिया था। इस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान इतने सारे ऑर्डिनेन्स लाए हैं लेकिन एक भी ऑर्डिनेन्स को क़ानून में बदलने के लिए संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाया गया जबकि संविधान सभा में यह सुझाव बार बार दिया गया था कि संविधान में ऑर्डिनेन्स को क़ानून में परिवर्तित करने के लिए संसद का विशेष सत्र आयोजित किया जाना चाहिए।
संसद का विशेष सत्र बुलाने का फ़ैसला सरकार के पास होता है। फ़ैसला संसदीय मामले के कैबिनेट कमिटी तय करती है जिसमें रक्षा, गृह, वित्त, क़ानून समेत नौ मंत्रालय के मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इस कैबिनेट कमिटी द्वारा लिया गया फ़ैसला राष्ट्रपति के पास जाता है जिसे अंततः राष्ट्रपति मंज़ूरी ही देते हैं। सवाल ये भी उठता है कि क्या 18-22 सितम्बर को संसद के विशेष सत्र की घोषणा करने से पहले इस प्रक्रिया को पूरा किया गया था? अभी तक जब भी संसद का विशेष सत्र घोषित हुआ है तो सरकार ने इसका भी खुलासा उसी घोषण के साथ किया है कि सरकार ये विशेष सत्र क्यूँ कर रही है। लेकिन इस बार सरकार ने अभी तक अधिकारिक तौर पर यह खुलासा नहीं किया है कि वो संसद का यह विशेष सत्र क्यूँ कर रही है।
मीडिया में इस विशेष सत्र के दौरान “एक राष्ट्र एक चुनाव” “कॉमन सिवल कोड” या फिर महिला आरक्षण या फिर देश के नामकरण को लेकर बिल पेश होने की जो खबरें चल रही है वो सिर्फ़ सम्भावना है, सरकार ने अधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट नहीं किया है कि इस विशेष सत्र के दौरान क्या होगा। क्या अजेंडा होगा इस सत्र का? इस स्पष्टता के अभाव में मीडिया में दर्जनों अफ़वाह चलाए जा रहे हैं जिसमें चांद्रायण तीन की सफलता से लेकर, G-20 सम्मेलन तक अफ़वाहों के तार जोड़े जा रहे हैं और बाक़ी एक राष्ट्र एक चुनाव, कॉमन सिवल कोड, महिला आरक्षण बिल जैसे मुद्दे तो है ही।
नीतीश कुमार तो इस विशेष सत्र को देश में जल्दी लोकसभा चुनाव होने की सम्भावना के साथ जोड़कर देख रहे है। तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस इस घोषणा को मोदी सरकार का पब्लिसिटी स्टंट बता रही है। कांग्रेस के अनुसार मोदी सरकार ऐसा इसलिए कर रही है ताकि मीडिया का विपक्षी एकता मीटिंग, और अड़ानी के नए भ्रष्टाचार से मीडिया का ध्यान भटकाया जा सके।

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