19वीं सदी के उत्तरार्ध में रामणी गाँव ब्रिटिश अधिकारी और पर्यटकों से लेकर ईसाई मिशनेरीयों के लिए विशेष रुचि का केंद्र था। यहाँ कुमाऊँ के कमिशनर हेनरी रेम्जे का बंगला भी था और अमेरिकन मिशनेरी का चर्च भी। 19वीं के पूर्वार्ध और 20वीं के उत्तरार्ध में नंदा देवी से लेकर कामेट पर्वत शिखर तक की चढ़ाई करने के सभी प्रयासों के दौरान पर्वतारोहियों को इस रामणी गाँव से गुजरते हुए जाना पड़ता था। पहली बार कुवारी पास की यात्रा करने वाले हिंदुस्तान के वायसराय लॉर्ड कर्ज़न के नाम पर कुआरी पास मार्ग या लॉर्ड कर्ज़न मार्ग इसी गाँव से गुजरता है।
पर आज रामणी गाँव में बना हेनरी रेम्जे का बंगला का अस्तित्व तक नहीं दिखता है। उपनिवेशी सरकार की एकमात्रा निशानी अमेरिकन मेथोडिस्ट चर्च (चित्र 1) के कुछ खम्भे इतिहास को ढ़ोने का असफल प्रयास कर रहे हैं जबकि लॉर्ड कर्ज़न मार्ग का वैकल्पिक सड़क अंग्रेज़ी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही रामणी गाँव पहुँच चुका था (चित्र 4-5)। क्षेत्र के घोड़े, खच्चर और भेड़ बकरियाँ आज भी पक्के मोटर मार्ग पर दनदनाती टैक्सी, ट्रेकेर, बोलेरो और चमचमाती अन्य वाहनो के नीचे लॉर्ड कर्ज़न मार्ग को ज़िंदा रखने का प्रयास में लगे हैं।
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रमणी क्यूँ ?
गोहना और नंदाकिनी घाटी सीमा पर बसा रामणी गाँव चमोली ज़िले के घाट ब्लॉक में है। घाट से रामणी की दूरी 32 किमी है जो नए सड़क के निर्माण से बहुत जल्दी घटकर लगभग 18 किलो मीटर होने वाली है। इस गाँव में आपकी दिनचर्या की ज़रूरत का लगभग सभी सामान मिल जाएगा।
LPG गैस गोदाम से लेकर पनचक्की से चलने वाला आटा चक्की तक मौजूद है इस गाँव में। अंग्रेज़ी और आयुर्वेदिक दोनो तरह का स्वास्थ्य केंद्र, कृषि उद्धयान, से लेकर देशी शराब और काला चरस (सूल्पा या काला सोना) आदि उपलब्ध है इस गाँव में। पर इस गाँव में न कोई पर्यटक गाइड उपलब्ध नहीं है और न ही पर्यटकों के रुकने के लिए कोई होटेल, लॉज या होम स्टे।

रामणी गाँव से पाँच किलो मीटर की चढ़ाई पर बालपाटा में नंदा देवी का मंदिर है। यहाँ से सप्तकुंड, कुआरी पास, आदि का ट्रेक भी शुरू होता है जबकि सिंबे, बगुवा बासा, भेंटी, घोड़ा पहाड़, कलियुगाड, निलाड़ी, के अलावा पुनार, आली व बेदनी बुग्याल भी ज़ाया जा सकता है। बेदनी बुग्याल और रूपकुंड का क्षेत्र भी इस गाँव से देखा जा सकता है।
लगभग 3-4 किमी की चढ़ाई करने पर शिखर से नंदा देवी, नंदा घूँटी, त्रिशूल, कामेट, चौखम्भा, हाथी पर्वत की सफ़ेद चोटीयों के साथ समेत आधा गढ़वाल दिख जाता है। सर्दी के मौसम में जब यहाँ बर्फ़ गिरती है तो इस गाँव का क्षेत्र जोशिमठ के पास स्थित ‘औली’ जैसे प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र से कहीं अधिक खूबसूरत दिखती है।

रमणी और हेनरी रेम्जे:
इस गाँव को बसाने और समृद्ध बनाने का श्रेय कुमाऊँ के कमिशनर और स्थानिये लोगों में कुमाऊँ के राजा के नाम से प्रसिद्ध हेनरी रेम्जे को जाता है। उन्होंने 19वीं सदी में ही इस गाँव में न सिर्फ़ अपना बंगला बनाया बल्कि यहाँ फ़ौजी और दिवानी अदालत के साथ-साथ मिशनेरी स्कूल, चर्च और स्वास्थ्य केंद्र का भी निर्माण करवाया। पर 1920 का दशक आते आते इस गाँव की हालत ख़राब होने लगी।

रमणी का पतन:
वर्ष 1931 में कामेट पर्वत शिखर की चढ़ाई करने आए फ़्रेंक स्मिथ और एरिक शिप्टन ने अपने यात्रा वृतांत (Kamet Conquered) में रमणी गाँव में स्थित बंगले की जर्जर हालत का वर्णन किया है और साथ में बढ़ते जानवरों (भेड़-बकरी, घोड़े-खच्चर आदि) की संख्या के कारण यहाँ की बढ़ती गंदगी का भी ज़िक्र किया है। यात्रा के दौरान स्मिथ के सहयोगी शिप्टन इसी गाँव में बीमार पड़े थे।
वर्ष 1934 और 1936 में जब नंदा देवी पर्वत शिखर पर चढ़ाई के लिए एरिक शिप्टन अपने सहयोगी बिल टिल्मन के साथ इस गाँव से गुजरते हैं तो रामणी गाँव में फैली गंदगी के कारण इस गाँव में न रुककर पड़ोसी कनोल गाँव में रुकते हैं। दरअसल रमणी गाँव का पतन वर्ष 1893 से ही प्रारम्भ हो गया था जब बिरही नदी में बाढ़ आने से बिरही झील तबाह हुई थी। इस झील के तबाह होने से भारी संख्या में झील के आस पास के गाँव के पशुपालक अपने पशुओं को लेकर रमणी गाँव की तरफ़ आने लगे।
वहीं दूसरी तरफ़ हेनरी रेम्जे द्वारा विकसित की गई स्वायत्त शासन व्यवस्था को 1920 के दशक के दौरान धीरे-धीरे ख़त्म कर दिया गया और आस पास के क्षेत्रों पर वन विभाग का अधिकार व स्थानिय लोगों के अधिकारों पर प्रतिबंध बढ़ने लगा। वर्ष 1884 में हेनरी रेम्जे सेवानिर्वृत हो चुके थे और 1893 में इस संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह चुके थे।

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