वर्ष 1872 में जब हिंदुस्तान में पहली बार जनगणना हुई तो जोशीमठ शहर की आबादी मात्र 455 थी। चुकी उस दौर में यह शहर उत्तराखंडियों और तिब्बती व्यापारियों के लिए एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र हुआ करता था इसलिए जनसंख्या का लिंग-अनुपात काफ़ी कम था। आज भी इस शहर का लिंग-अनुपात मात्र 673 है। अर्थात् जोशीमठ में रहने वाले प्रत्येक 1000 मर्द पर मात्र 673 महिलाएँ निवास करती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जोशीमठ शहर की कुल आबादी 16,709 है।
जनगणना और जोशीमठ
जोशीमठ की आबादी का 455 से 16,709 तक का सफ़र अपने आप में इस शहर की एक बेहतरीन कहानी सुनाने के लिए काफ़ी है। 1828 के Asiatic Researcher के 16वें खंड में G W Trail लिखते हैं कि पूरे पहाड़ में मात्र चार ही शहर थे: अल्मोडा, चम्पावत, श्रीनगर और जोशीमठ, जिसे शहर कहा जा सकता था। जिस जोशीमठ की आबादी वर्ष 1872 में 455 से बढ़कर वर्ष 1881 में 572 हो चुकी थी उसी शहर की आबादी वर्ष 1900 में घटकर फिर से 468 रह जाती है।
जोशीमठ शहर की जनसंख्या का यह अविश्वसनीय उतार-चढ़ाव इसलिए देखा जाता रहा है क्यूँकि भारत में जनगणना सितम्बर और जनवरी महीने के बीच कभी भी हो सकता है जबकि अक्तूबर-नवम्बर में सर्दियाँ व हिमपात प्रारम्भ होने के बाद बद्रीनाथ में रहने वाली एक बड़ी आबादी जोशीमठ चली आती है और फिर एप्रिल-मई के दौरान वापस बद्रीनाथ चली जाती है। इसके अलावा जोशीमठ शहर की प्रवृति और पहचान भी समय समय पर बदलते रही है जिसके कारण वहाँ की जनसंख्या पर असर पड़ा है।
शहर की बदलती तासीर:
वर्ष 1828 में जोशीमठ शहर एक व्यापारिक केंद्र अधिक और धार्मिक स्थल कम था। इस शहर के ‘बोडिया बाज़ार’ की तुलना तिब्बत के प्रसिद्ध ‘गणनिम बाज़ार’ से किया जाता था। 19वीं सदी के ख़त्म होते होते इस शहर की तासीर व्यापारिक कम और धार्मिक अधिक होने लगी। 19वीं सदी के अंतिम वर्षों के दौरान व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग जोशीमठ से नंदप्रयाग पलायन कर गया।
वर्ष 1828 से लेकर अगले एक सौ से अधिक समय तक इस शहर में स्थानीय से अधिक बाहर से आए लोगों की आबादी होती थी जिसमें व्यापारी, भारवाहक (डोटियाल), साधु-संत के अलावा खोजी पर्यटक भी आने लगे थे। सम्भवतः यही कारण है कि वर्ष 1908 में जोशीमठ में मात्र 12 बच्चे विद्यालय जाते थे जबकि माणा गाँव में 28 बच्चे विद्यालय जाते थे। 20वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों से ही खोजी पर्वतारोहियों का जत्था बार-बार कुमाओं से ग्वालदम के रास्ते लॉर्ड कर्ज़न मार्ग व कुँवारी पास होते हुए जोशीमठ होते हुए नंदा देवी पर्वत शिखर, फूलवालों की घाटी आदि तक पहुँचने का प्रयास करने लगी थी।
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हिंदुस्तान की आज़ादी के कुछ दशक बाद जोशीमठ बहुत ही जल्दी बद्रीनाथ धाम व हेमकुंड की आख़री विरामस्थली के साथ-साथ फुलवालों की घाटी और औली जैसे पर्यटन स्थल की भी विरामस्थली के रूप में उभरी। 1961 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत-तिब्बत व्यापार सर्वाधिक प्रभावित हुआ और जिसके कारण इस शहर से व्यापारियों का पलायन होने लगा।
इस दौरान इस शहर में आस-पास के गाँव में रहने वाले स्थानीय लोगों की आबादी बढ़ी जबकि बाहरी व्यापारियों की आबादी कम हुई। जिस जोशीमठ में वर्ष 1901 में मात्र 12 बच्चे प्राथमिक विद्यालय जाते थे वहाँ वर्ष 1951 में 104 बच्चे विद्यालय जा रहे थे जो इस शहर में स्थानीय और स्थाई रूप से रहने वाले लोगों के अनुपात में वृद्धि का नतीजा था।

जनसंख्या विस्फोट: एक मिथक
वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जोशीमठ के आसपास के लोगों ने भारतीय सेना का भरपूर साथ दिया। इस युद्ध में चीन के हाथों करारी हार के बाद जोशीमठ को बद्रीनाथ, हेमकुंड आदि आस पास के प्रमुख स्थलों को पक्की सड़क से जोड़ा गया और इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा दिया जाने लगे। इसी के बाद औली शहर को आर्मी बेस कैम्प के रूप में विकसित किया गया। माना जाता है कि इन सब के कारण इस शहर की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ी।
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आज़ाद हिंदुस्तान के पहले दो जनगणना (वर्ष 1951 और 1961) में जोशीमठ की जनगणना शहर/नगर के रूप में नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्र के रूप किया गया क्यूँकि यहाँ की आबादी पाँच हज़ार से कम थी। वर्ष 1971 की जनगणना में इस शहर की आबादी 5852 हो गई। वर्ष 1961 तक यह शहर चमोली ज़िले का सर्वाधिक आबादी वाला शहर था। अगली जनगणना (1971) में गोपेश्वर (चमोली) की जनसंख्या (6354) जोशीमठ (5852) से मात्र 502 अधिक थी। वर्ष 1971 तक इस शहर की आबादी टेहरी और बगेश्वर जैसे शहरों से भी अधिक थी लेकिन आज इन सभी शहरों से जोशीमठ की आबादी कम है।
2011 की जनगणना के अनुसार इस शहर की आबादी 16709 है और आज भी यह ज़िले का दूसरा सर्वाधिक बड़ा शहर है लेकिन 1971 से 2011 के दौरान श्रीनगर, पौड़ी, कोटद्वार, पिथौरागढ, टेहरी, धरचूला, नरेंद्रनगर, उत्तरकाशी जैसे कई शहर की आबादी जोशीमठ से कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ी है। अर्थात् इस शहर की आबादी सर्वाधिक तेज़ी से वर्ष 1971 से ही पहले बढ़ चुकी थी। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इस शहर में आबदी नहीं बाधी। वर्ष 1971 में इस शहर का कुल जनसंख्या इस ब्लॉक के कुल जनसंख्या का मात्र 26 प्रतिशत था जो वर्ष 2011 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया।
फिर जोशीमठ क्यूँ:
इस खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर का एक हिस्सा विलीन होने के कगार पर है जिसके कई कारण गिनाए जा सकते हैं जो लोग अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल कर रहे हैं। इस क्षेत्र के पहाड़ की विशेष मिट्टी, हिमालय का निरंतर बढ़ना, आदि आदि सभी कारक प्राकृतिक है लेकिन इस क्षेत्र में शहरीकरण बढ़ना ग़ैर-प्राकृतिक था जिसे रोका जा सकता था। हालाँकि बढ़ता शहरीकरण भी बदलते आर्थिक व्यवस्था के लिए स्वाभाविक है लेकिन सरकार इस शहरीकरण को नियोजित कर सकती थी और इस आपदा से बचा जा सकता था।
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