पटना का हथुआ बाज़ार, 1960 के दशक के दौरान यहाँ रोज़ शाम को महफ़िल जमती थी, बाज़ार के पीछे दो झरना हुआ करता था, झरने के आसपास रोशनदान लगे हुए थे और रसिया, विदेशिया और ठुमरी पर ठुमके लगते थे और साथ में मार्केटिंग भी होती थी। एक समय था जब इस संगीतमय बाज़ार में सितारा देवी और V G जोग जैसे कलाकार अपनी कला से माहौल को सराबोर करते थे।
एक वो समय था जब इस मार्केट में महिलाओं को आना अलाउड नहीं था और आज इस मार्केट में सबसे ज़्यादा समान महिलाओं का ही बिकता है। आज यह बाज़ार सस्ते चीजों के लिए भी प्रसिद्ध है और महँगे चीजों के लिए भी प्रसिद्ध है। ऐसा ही एक हथुआ बाज़ार वाराणसी में भी है और एक छपरा में भी है और तीनो प्रसिद्ध है। आज कहानी हथुआ बाज़ार की, इस बाज़ार को बनाने वाले जमींदार की, उनके इतिहास की और उनके वर्तमान की।
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1912 में राजधानी बनने के बाद हथुआ बाज़ार पटना का दूसरा बाज़ार था जिसे सुनियोजित तरीक़े से शुरू किया गया था। पटना का पहला सुनोयोजित बाज़ार अशोक राजपथ पर 1947 में शुरू हुआ था जिसे बिहार सरकार ने बनवाया था। लेकिन हथुआ बाज़ार को वहां के ज़मींदार ने बनवाया था। 11 सितम्बर 1959 को बिहार में मुख्यमंत्री श्री बाबू ने खुद इसका उद्घाटन किया था। यह बाज़ार आज भी पटना के गांधी मैदान के पास ही बकारगंज मोहल्ले में स्थित है।
हथुआ महराज का घराना हमेशा से बाज़ार, व्यापार के लिए जाना जाता था। आज भी हथुआ महराज के वंशजों के कलकत्ता से लेकर वाराणसी तक होटेल फैले हुए हैं। इस होटेल का नाम पल्लवी इंटर्नैशनल होटेल है। इसी तरह पटना में हथुआ बाज़ार के अलावा पटना में राज रसोई व फ़ेरो कोलेओस बैंक्वेट के मलिक भी हथुआ राज के वंशज ही है। जिस तरह का हथुआ बाज़ार पटना में स्थित है वैसा ही एक बाज़ार वाराणसी में है और एक कलकत्ता में भी है और एक छपरा में भी है।
बनारस का हथुआ बाज़ार:
आज भी जितना प्रसिद्धि पटना के हथुआ बाज़ार की है उससे कम प्रसिद्धि वाराणसी के हथुआ बाज़ार की नहीं है। आज भी वाराणसी के इस बाज़ार का दुर्गा पंडाल उत्तर प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध दुर्गा पंडालों में से एक जाना जाता है और वही हाल पटना वाले बाज़ार के दुर्गा पूजा पंडाल का है।
आज भी हथुआ राज का दुर्गा पूजा बिहार में विशेष पहचान रखता है, आज भी हथुआ राज के वंशज गोपालगंज में अपने पैत्रिक थावे मंदिर में पुरानी रीति रिवाजों के साथ दुर्गा पूजा करते है, पुरानी बग्गी में महल से मंदिर तक जाते हैं, दरबार लगता है जिसमें हाथी-घोड़े भी सजाए जाते हैं और सब पुराने ठाठ-बाट के साथ होता है। आज भी दुर्गा पूजा पर हथुआ राज के महल में बकरे और भैंसे की बलि दी जाती है और पारम्परिक तरीक़े से दुर्गा पूजा मनाया जाता हैं।
पटना का हथुआ बाज़ार:
पटना के जिस जगह पर आज हथुआ मार्केट है वो जगह देश की आज़ादी से पहले हथुआ छावनी के नाम से जाना जाता था लेकिन 1957 में हथुआ महराज ने यहाँ पर एक बाज़ार बसाने की योजना बनाई जिसमें आमिर लोग मार्केटिंग कर सके।
उस दौर में इस बाज़ार की अमीरी का आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस समय ही, इस बाज़ार में कार पार्किंग क्षेत्र भी बनवाया गया था, ये वो दौर था जब ज़मींदारों और बड़े बड़े नेताओं को छोड़कर किसी को भी कार रखने की हैसियत नहीं हुआ करती थी। हथुआ बाज़ार के निर्माण की पहली ईंट भी खुद हथुआ महराज ने ही सोने और चाँदी की बनी करनी से रखा था और दर्घाई मिस्त्री व मिशनेरीयों ने इसे मिलकर पूरा किया था।
उस समय इस बाज़ार में दो लाइट वाले झरने लगवाए गए, फ़ाउंटेन लगवाए गए। इस फ़ाउंटन के आगे रोज़ शाम को म्यूज़िकल प्रोग्राम हुआ करता था। फिर धीरे धीरे जैसे जैसे हथुआ राज की शानो-शौक़त घटी वैसे वैसे ये म्यूज़िकल प्रोग्राम कुछ ख़ास मौक़ों तक सीमित हो गया। दशहरा दे दौरान यह म्यूज़िकल प्रोग्राम अंत तक चलता रहा क्यूँकि हथुआ राज अपने दशहरा के लिए पूरे बंगाल प्रांत में प्रसिद्ध था।
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एक हथुआ बाज़ार छपरा में भी है जो पूरे सारण ज़िले का सबसे प्रसिद्ध बाज़ार है। दरअसल हथुआ राज के सभी राजाओं का बाज़ार में विशेष रुचि थी। भारतीय बाज़ार व्यवस्था पर आनंद यांग की लिखी किताब बाज़ार इंडिया में हथुआ राज की बाज़ारों में विशेष रुचि का विस्तृत विवरण दिया हुआ है, आप पढ़ सकते हैं।
19वीं सदी के दौरान हथुआ राज में सबसे बड़ा बाज़ार मिरगंज में था और उसके बाद दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार हथुआ में ही था, जहां से पूर्व में पटना और पश्चिम में वाराणसी तक समान निर्यात होता था। यहाँ पान से लेकर अफ़ीम तक और अनाज से लेकर जानवर तक सब चीज़ की बिक्री होती थी।
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लेकिन 1970 का दशक आते आते यह बाज़ार अपना रंग खो चुका था। अब पटना के दस प्रमुख बाज़ारों में इसका ज़िक्र भी नहीं हो रहा था। हालाँकि आज भी पटना और वाराणसी का हथुआ बाज़ार अपने ब्रांड से लेकर अपनी सस्ते सामानों के लिए प्रसिद्ध है। पटना में हैं या पटना आते हैं तो इस बाज़ार में एक बार ज़रूर जाइए, अपने बिहार के बपौती के लिए, बिहार के इतिहास को फ़ील करने के लिए, बिहार के गौरव को महसूस करने के लिए, अपनी बपौती से जुड़े रहने के लिए।

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