पहाड़ में पाई जाने वाली महसीर मछली के प्रशंसकों और उसका सेवन और शिकार करने की सदैव इच्छा रखने वालों में ब्रिटेन के राजा से लेकर जिम कोर्बेट समेत कई ब्रिटिश अधिकारी शामिल हैं। इतिहास में कभी यह मछली 54 किलोग्राम तक वजन की हुआ करती थी। पर पिछले कुछ दशकों से इस मछली के बढ़ते दोहन, नदी तल के खनन आदि के कारण मछली की यह सुनहरी प्रजाति अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है।

महसीर मछली गढ़वाल आने वाले ख़ास मेहमानों को भेंट के रूप दिया जाता था।
वर्ष 1808 में जब ब्रिटिश अन्वेषक F.V. Raper गंगा नदी के उड्डगम स्थल की खोज में हरिद्वार से उत्तरकाशी शहर की तरफ़ बढ़ते हुए जब 13 मई को श्रीनगर (गढ़वाल) शहर पहुँचे तो वहाँ के कांगरा राज्य के स्थानीय गोरखा अधिकारी हस्ती थापा (पूर्व गवर्नर) और राजा (भतराओ थापा) के बेटे शिस्ता थापा ने F.V. Raper का स्वागत किया और भेंट के रूप में कई जीव दिया जिसमें एक मछली भी था। यह मछली महसीर था जिसे अलखनंदा नदी से आखेट करके लाया गया था। F.V. Raper ने इस मछली का पेंटिंग बनाया (चित्र 1) और मछली की सुंदरता का वर्णन करते हुए F.V. Raper लिखते हैं:
“अलखनंदा नदी में भारी मात्रा में पायी जाने वाली यह मछली छः से सात फ़ीट तक लम्बी और इनका स्केल (शरीर का बाहरी सतह) हरे, सुनहरे और गहरे कांसे के रंग का होता है। और इसका स्वाद भी इसकी सुंदरता की तरह बेहद सुंदर होता है।”
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1905 में लिखी अपनी पुस्तक Holy Himalaya में Sherman Oakley महसीर मछली के अस्तित्व पर उभरते ख़तरे पर चिंता जताते हैं। वे लिखते हैं कि बगेश्वर में धार्मिक यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्री यहाँ नदी में महसीर मछली के जीवन के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते थे और उन्हें खाने के लिए गोल लड्डू दिया करते थे।
महसीर मछली पहाड़ों में नरभक्षि तेंदुआ और बाघ के आतंक से लोगों को बचाने के लिए भेजे गए जिम कोर्बेट की पसंदीदा मछली थी। जिम कोर्बेट व्यक्तिगत रूप से महसीर मछली के आखेट से लेकर उसके स्वाद में विशेष रुचि लेते थे। (चित्र 2) जिम कोर्बेट ने अपनी जीवन का लम्बा समय पहाड़ों में बिताया।
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पहाड़ों के अलावा महसीर मछली दक्षिण भारत और उत्तर पूर्व समेत हिंदुस्तान के लगभग सभी हिस्सों में पाई जाती है। मैसूर शहर में पाए जाने वाले महसीर मछली का अपना ही रोमांचक इतिहास है। मैसूर में भी भारी संख्या में महसीर मछली पाया जाता था। 1921-22 में जब ब्रिटिश शासक (प्रिन्स ओफ़ वेल्स) हिंदुस्तान आए थे तो उन्होंने यहाँ क़रीब दस महसीर मछलियों का भी आखेट किया था।

इस मछली की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब ब्रिटिश राजकुमार हिंदुस्तान की यात्रा से वापस अपने देश जा रहे थे तो वो अपने साथ महसीर मछली का दांत भी ले गए। महसीर मछली के दांत को संजोकर रखने का भी अपनी ही रोचक कहानी है। मैसूर शहर कमिशनर और जीव-वैज्ञानिक P F Bowring के पास महसीर मछली के दाँतो का बहुत बड़ा संग्रह हुआ करता था। ऐसा ही महसीर मछलियों का संग्रह असाम के ब्रिटिश अधिकार Gyles Mackrell के पास हुआ करता था।
इतिहास में सर्वाधिक बड़ा महसीर मछली पकड़ने का रेकर्ड पहले C E Murray Aynsley के पास था जिन्होंने तक़रीबन 47 किलोग्राम की मछली पकड़ी थी। इस रेकर्ड को बाद में कर्नल रिवेट कर्णक ने तोड़ा था जिन्होंने तक़रीबन 54 किलोग्राम की महसीर मछली पकड़ी थी।
- स्त्रोत:
- F. V. Raper, “Narrative of a Suirvey for the Purpose of Discovering the Sources of the Ganges,”. Asiatic Researches 11 (1810): 446-563
- H.R.H The prince of Wales’s Sport in India by Bernar C. Ellison, Published in 1925
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Beautiful and inspiring history of the special fish named Mahasheer. ?
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