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अंग्रेजों के दौर में पहाड़ों की जनसंख्या वृद्धि दर क्यूँ सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक थी?

जनसंख्या वृद्धि:

हिंदुस्तान में पहली जनगणना वर्ष 1881 में हुई और तब से लेकर वर्ष 1931 तक की सभी जनगणनाओं में उत्तराखंड के पहाड़ों में जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर प्रदेश के किसी भी क्षेत्र से ज़्यादा थी। इस दौरान सर्वाधिक वृद्धि टेहरी गढ़वाल (74.9%), अल्मोडा (66%) और पौड़ी गढ़वाल (54.6%) ज़िले में देखने को मिला जबकि इसी दौरान नैनीताल ज़िले के जनसंख्या वृद्धि में 14.4 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली थी। 

जनसंख्या वृद्धि

वर्ष 1881 से 1931 के 50 वर्षों के अंतराल के दौरान जनसंख्या में सर्वाधिक गिरावट हल्द्वानी तहसील में हुई थी। जनसंख्या वृद्धि और जनसंख्या घनत्व के इस पहली पहलू को तहसील स्तर तक अध्ययन करने पर कुछ और रोचक पहलू सामने आते हैं। इस दौरान चम्पावत के जनसंख्या कम हुई जबकि चकराता, काशीपूर और किच्छा क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि पाँच प्रतिशत से भी कम थी। 

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उस दौर के जनगणना विशेषज्ञों का मानना था कि चुकी हल्द्वानी, काशीपूर आदि भावर और तराई के क्षेत्र स्वास्थ्य के नज़रिए से बहुत प्रतिकूल क्षेत्र थे जिसके कारण इन क्षेत्रों में मृत्यु दर भी सर्वाधिक था इसलिए इस क्षेत्र में लोग रहना नहीं चाहते थे। वर्ष 1921 और 1931 के दौरान नैनीताल ज़िले में 80,234 लोगों का जन्म हुआ और उसी दौरान 92,993 लोगों की मृत्यु हुई। इसके अलावा इस क्षेत्र में बिना कृत्रिम सिंचाई की सुविधा के कृषि करना सम्भव नहीं था इसलिए यहाँ बहुत कम लोग रहना चाहते थे। इस क्षेत्र में जो लोग रहते थे उनमें से ज़्यादातर मौसमी व्यापारी और चरवाहा समाज हुआ करता था। 

प्रशासनिक विभाजन

प्रशासन की भाषा में आज के पहाड़ को उस समय पश्चिमी हिमालय कहा जाता था जिसे 2 मंडलों (गढ़वाल व कुमाऊँ), चार ज़िलों (टेहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, नैनीताल, देहरादून, और अल्मोडा) और 14 तहसीलों में विभाजित किया गया था जो निम्न है: 

UK 1931

पौड़ी गढ़वाल, गढ़वाल क्षेत्र का प्रशासनिक केंद्र था जबकि अलमोडा कुमाऊँ क्षेत्र का प्रशासनिक केंद्र था।इसी तरह टेहरी गढ़वाल भी एक स्वायत्त राज्य था जिसका शासन-प्रशासन स्थानीय गढ़वाल के राजा के हाथों में होता था। हालाँकि गढ़वाल और कुमाऊँ ब्रिटिश राज का हिस्सा था लेकिन इन दोनो क्षेत्रों को हिंदुस्तान के अन्य ब्रिटिश क्षेत्रों की तुलना में अधिक प्रशासनिक स्वायत्ता हासिल थी। इन तीनो स्थानो पर शासन-प्रशासन को चलाने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता था जिससे पहाड़ के लोगों पलायन नहीं करना पड़ता था। इस तरह इन क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि बहुत ही स्वाभाविक रही।

पलायन:

इतना ही नहीं बल्कि वर्ष 1881 से 1931 के दौरान पहाड़ से तराई और भावर की तरफ़ होने वाले परंपरागत मौसमी पलायन भी कम हुए थे। लेकिन दूसरी तरफ़ देहरादून और नैनीताल के मैदानी क्षेत्रों में पहाड़ के बाहर से आकर बसने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही थी। 1931 में देहरादून ज़िले में पहाड़ के बाहर से आकर रहने वाले लोगों का अनुपात 21.4 प्रतिशत था जबकि नैनीताल ज़िले में यह 38.9 प्रतिशत था। अर्थात् इन मैदान बहुल इन दो ज़िलों में जो कुछ भी जनसंख्या वृद्धि हुई उसका एक प्रमुख कारण पहाड़ के बाहर से आकर बसने वाले लोग थे।

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इसी दौरान पहाड़ में प्रति परिवार सदस्यों की संख्या भी घटी थी। उदाहरण के लिए चारों ज़िला मिलाकर वर्ष 1881 में पहाड़ के एक परिवार में औसतन 6.4 सदस्य हुआ करते थे जो वर्ष 1931 में घटकर 4.6 रह गया। यह गिरावट सर्वाधिक गढ़वाल क्षेत्र में देखने को मिला था जहां प्रति परिवार सदस्यों की संख्या 7.3 से घटकर 4.6 रह गई जबकि देहरादून ज़िले में यह 4.4 से बढ़कर 4.7 हो गई।अर्थात् पहाड़ में यह उच्च जनसंख्या वृद्धि दर निम्न प्रजनन दर के साथ हो रहा था जिसका यह मतलब निकाला जा सकता है कि पहाड़ में पहाड़ के बाहर से आकर लोग बस रहे थे।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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