HomeCurrent Affairsटट्टी-पट्टी पर टिकी पहाड़ की स्वास्थ्य व्यवस्था

टट्टी-पट्टी पर टिकी पहाड़ की स्वास्थ्य व्यवस्था

पहाड़ों में जर्जर स्वास्थ व्यवस्था ख़ाली होते पहाड़ों के मुख्य कारनो में से महत्वपूर्ण कारण है। पहाड़ की समस्या स्वास्थ्य संसाधनो की कमी नहीं बल्कि उन संसाधनो का व्यवस्थित तरीक़े से उपयोग नहीं कर पाना है। उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तुलना में प्रत्येक वर्ष कहीं अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जाता है लेकिन उन प्रशिक्षित कर्मियों को पहाड़ में सेवा के लिए प्रेरित नहीं कर पाना उत्तराखंड की स्वास्थ्य समस्या का मूल जड़ है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य से सम्बंधित निम्नलिखित तुलनात्मक आँकडें उत्तराखंड सरकार के दोषपूर्ण नीतियों की ओर इशारा करती है।

स्वास्थ्यकर्मी:

1) उत्तराखंड में प्रत्येक सरकारी डॉक्टर पर 7505 लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्भर हैं जो हिमांचल में मात्र 4525 है। 

2) उत्तराखंड में प्रत्येक सरकारी आयुष डॉक्टर पर 2476 लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्भर हैं जो हिमांचल में मात्र 592 है।

3) उत्तराखंड में प्रत्येक सरकारी नर्स पर 2006 लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्भर हैं जो हिमांचल में मात्र 207 है।

उपरोक्त आँकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उत्तराखंड में डाक्टरों की भारी कमी हो। लेकिन उत्तराखंड के सभी सरकारी डाक्टरों की संख्या में प्राइवेट डाक्टरों की संख्या को जोड़ दिया जाय तो हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड में प्रति डाक्टर पर निर्भर लोगों की संख्या बहुत कम है। अर्थात् हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड में अधिक डाक्टर हैं। उत्तराखंड में एक डाक्टर (सरकारी और निजी दोनो) के ऊपर मात्र 1214 उत्तराखंडी निर्भर है जबकि हिमाचल में उपलब्ध एक डाक्टर पर हिमाचल में निवास करने वाले 2248 लोग निर्भर हैं। अर्थात् उत्तराखंड में हिमाचल की तुलना में डाक्टरों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता दुगुनी है पर सरकार उन डाक्टरों को सरकारी स्वस्थ्य सेवाओं में इस्तेमाल नहीं कर पा रही है।

फ़ार्मासिस्ट ही एक मात्र क्षेत्र है जहां उत्तराखंड हिमांचल प्रदेश से आगे है। प्रदेश में प्रत्येक फ़ार्मासिस्ट पर 624 लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्भर हैं जो हिमांचल में 733 है। कहने का मतलब ये है कि प्रदेश कि ज़्यादातर स्वास्थ्य सेवा इन्हीं फ़ार्मासिस्ट वर्ग पर निर्भर है। ये फ़ार्मासिस्ट इसलिए भी उत्तराखंड में फल-फ़ुल रहे हैं क्यूँकि सरकार का इनके प्रति न तो कोई ज़िम्मेदारी होती है और न ही कोई उपलब्धि। उत्तराखंड सरकार तो एक के बाद एक सरकारी अस्पतालों को PPP के तहत निजी हथों में बेचती जा रही है।

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इंफ़्रास्ट्रक्चर:

उत्तराखंड में एक आम धारणा बना दी गई है कि कोई भी स्वास्थ्यकर्मी पहाड़ों में नौकरी नहीं करना चाहता है। तथ्य आंशिक रूप से सत्य हो सकता है पर इस विषय के अन्य पहलू भी हैं। क्या उत्तराखंड की सरकार पहाड़ में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में उचित सुविधा उप्लब्ध करा रही है जिससे वहाँ स्वास्थ्यकर्मी अपनी सेवा देना चाहे? आँकड़े तो कम से कम कुछ और ही कह रही है।

1) उत्तराखंड में प्रत्येक एक हज़ार लोगों पर मात्र 0.84 हॉस्पिटल बेड हैं जो हिमांचल में हज़ार लोगों पर 1.84 डाक्टर हैं। अर्थात् उत्तराखंड की तुलना में हिमाचल प्रदेश में प्रतिव्यक्ति डाक्टरों की आधी से भी कम है।

2) टीकाकरण के मामले में भी हिमांचल उत्तराखंड से कहीं आगे है। उत्तराखंड में टीकाकरण की सफलता दर मात्र 58% है जबकि हिमांचल प्रदेश में ये सफलता दर 69.5% है। 

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में शायद ही कोई ज़िला अस्पताल हो जहाँ ज़िला अस्पताल को सुचारु रूप से चलाने के लिए सभी ज़रूरी यंत्र और स्वास्थ्यकर्मी उप्लब्ध हो। यहाँ तक कि उत्तराखंड की भावी राजधानी गैरसैन के स्वास्थ्य केंद्र में भी अल्ट्रासाउंड मशीन तक नहीं है।

स्वास्थ्य सम्बंधी आधारभूत संरचना के विकास की परिकल्पना भी कैसे की जा सकती है जब हिंदुस्तान के सभी पहाड़ी राज्यों में से उत्तराखंड का स्वास्थ्य बजट का अनुपात सर्वाधिक कम है जबकि जम्मू और कश्मीर पूरे देश में स्वास्थ्य पर सर्वाधिक बजट बनाने वाला राज्य है। वर्ष 2019-20 में उत्तराखंड का स्वास्थ्य बजट 2643 करोड़ रुपए का बनाया गया था। चुनावी वर्ष होने के बावजूद वर्ष 2020-21 में प्रदेश के हेल्थ बजट में मामूली वृद्धि कर मात्र 2680 करोड़ रुपए किया गया। दूसरी तरफ़ हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष चुनाव नहीं होने के बावजूद प्रदेश का स्वास्थ्य बजट वर्ष 2019-20 में 2752 करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2020-21 के लिए 2976 करोड़ रुपए कर दिया गया।

पहाड़ों में जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए दूसरी अवधारणा जिसे ज़िम्मेदार ठहराने का प्रयास किया जाता है वो है पहाड़ों के गाँव की दुर्गमता। हिमालय के सभी गाँव तो दुर्गम ही हैं फिर चाहे वो उत्तराखंड के गाँव हो या हिमांचल या फिर जम्मू और कश्मीर का गाँव। सरकार द्वारा ग्रामीण दुर्गमता के अवधारणा का प्रयास भी ग़ैर-तार्किक है क्यूँकि हिमाचल प्रदेश की तुलना में उत्तराखंड में शहरीकरण तीन गुना है। उत्तराखंड की लगभग 30.13 % आबादी शहरों में निवास करती है जबकि हिमांचल प्रदेश में शहरी आबादी का अनुपात मात्र 11.15% है।

आँकड़ो की चोरी:

उपरोक्त आँकडें मुख्यतः वर्ष 2018 में जारी नैशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे-4 पर आधारित है। पिछले महीने जारी नैशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे-5 में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब का डेटा नहीं दिया गया है। ये संयोग नहीं है की कुछ ही महीनो में इन तीनो राज्य में चुनाव होने वाले हैं और तत्कालीन सरकार स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बंधित किसी भी नवीनतम आँकड़े को जारी करके बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती है।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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