HomeHimalayasक्या है हरेला और बग्वाली त्योहार के बीच रिस्ता ?

क्या है हरेला और बग्वाली त्योहार के बीच रिस्ता ?

“लाग हरैला, लाग बग्वाली जी रया, जागि रयाअगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जोहिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक यो दिन, यो मास भेटने रया।”

(हिंदी अनुवाद: हरेला और बग्वाल लग रही है, जियो खुश रहो, जीते रहो आकाश के बराबर ऊंचे, धरती के बराबर चौड़े हो है लोमड़ी की तरह बुद्धि हो जाए)

उपरोक्त कुमाऊँनी पंक्तियाँ, हरेला और बग्वाली त्योहार के बीच कुछ सम्बन्धों की ओर इशारा करता है! हरेला और बग्वाली दोनो ही त्योहार कर्क संक्रांति के मौक़े पर मनाया जाता है। हरेला पर्व मनाने का कोई निश्चित दिन तय न तो अंग्रेज़ी कैलेंडर से हो सकता है और न ही हिंदी विक्रम सम्वत् पंचांग से। पहाड़ों में भी एक स्थानीय पंचांग होती है जिसे लोग ‘गति’ के नाम से सम्बोधित करते हैं। जबकि विक्रम सम्बत में हिंदू महीना तिथि (चंद्रमा) के आधार पर बदलता है गति सूर्य के अनुसार बदलता है।

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16 जुलाई 2021 ‘गति’ की गणना के अनुसार सावन महीने का पहला दिन है जबकि विक्रम सम्बत के अनुसार सावन महीने का पहला दिन 23 जुलाई को होगा। कुछ स्थानो पर ये 25 जुलाई को भी शुरू हो रहा है। गति के अनुसार सावन का पहला दिन कर्क सक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। अर्थात् सूर्य की गति के अनुसार वर्ष का दूसरा हिस्सा कर्क सक्रांति के दिन से ही शुरू होता है, जैसे वर्ष का पहला हिस्सा मकर सक्रांति के दिन से शुरू होता है।ऐसा इसलिए है कि पहाड़ों में गति कि गणना सूर्य के आधार पर होता है जबकि हिंदू पंचांग का महीना चंद्रमा की गति पर आधारित होती है।

हरेला त्योहार

हरेला पर्व इसी कर्क सक्रांति के दिन मुख्यतः कुमाऊँ में मनाया जाता है। इस दिन लोग जौ, बाजरा और गहत (दाल) या राई (तिलहन) के बीच को एकसाथ एक टोकरी में बोया जाता है एक हफ़्ते से दस दिन के भीतर अंकुरित व जन्म ले चुके पौधों की पूजा की जाती है और लोग इन अनाज के पौधों को लोग कान पर रखते हैं।

अमूमन पूजा करने की ये तिथि विकर्म सम्वत् पंचांग के अनुसार सावन का पहला दिन होता है जो इस वर्ष 23 जुलाई को होने वाला है। गढ़वाल में इस पर्व को लोग राई सक्रांति बोलते हैं जिसमें मुख्यतः मेलू, अनार, और दाड़िम का पेड़ लगाया जाता है। इसी तरह हिमाचल और उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र में इस पर्व को लोग धकरैनि कहते हैं।

“हरेला त्योहार मनाने के पीछे मक़सद के बारे में पहाड़ में मतों में विविधता है”

आजकल हरेला पर्व को पूरे पहाड़ में तक़रीबन एक समान रूप से मनाया जाता रहा है जिसमें नए पेड़-पौधे लगाकर हरियाली बनाए रखने का संदेश दिया जाता है पर बग्वाली त्योहार (विडीओ) पहाड़ के भीतर ही जगह के साथ अपना स्वरूप और समय बदल लेती है।

उदाहरण के तौर पर बग्वाली त्योहार को चम्पावत ज़िले के गुमदेश पट्टी के चमदयोल गाँव, रामगढ़ पट्टी के रामगढ़, सिलोटि के नारायणी मंदिर, और छाखटा के भिमताल में यह कर्क सक्रांति को मनाया जाता है वहीं कुमाऊँ में चम्पावत के देवीधूरा में सावन के पूर्णिमा (रक्षा बंधन) को मनाया जाता है। इसी प्रकार द्वाराहाट के सियालदे पोखर में भैयादूज व सुई के पटुआ में कार्तिक द्वितीया को मनाया जाता है। भरे भिड़ में एक दूसरे के ऊपर पत्थर फ़ेककर मारने वाले इस बग्वाली त्योहार को नेपाल में सिटी के नाम से भी जाना जाता था।(स्त्रोत)

Bagwal Festival at Champawat District

चम्पावत ज़िले के लोहाघट के पास देवीपूरा में सावन की पूर्णिमा (रक्षा बंधन) को मनाया जाने वाला बग्वाल त्योगर आज भी सुर्ख़ियों में रहता है। असल में आज भी यहाँ बरही माता के मंदिर में मनाया जाने वाला त्योहार में चार (चामयाल, लमगरिया, गढ़वाली, और वालिग) अलग अलग वंश के समूह पत्थर से एक दूसरे को मारते हैं। माना जता है कि ये लड़ाई बाहर से आए जमाई और स्थानिए बेटों के बीच होता है।

माना ये भी जता है कि त्योहार के दौरान जबतक एक मनुष्य के बराबर खून नहीं बहता है तब तक उनके इष्ट देवता (बरही) खुश नहीं होती है। लड़ाई में सबसे पहले लमगरिया वंश के लोग आते हैं और उसके बाद बाक़ी तीन वंश। मंदिर के मुख्य पुजारी को जब लगता है कि एक मनुष्य के बराबर खून बह चुका है तो वो त्योहार की समाप्ति की घोषणा करता है। मारने की इस रिवाज को अंग्रेज़ी रेज़िडेंट कोल्विन के सलाह पर जंग बहादुर ने प्रतिबंधित कर दिया था पर आज भी इस तरह की घटनाएँ सुनने को मिल जाती है।

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2019 में हुए बग्वाल त्योहार के दौरान चम्पावत में सौ से अधिक लोग पत्थरबाज़ी के दौरान घायल हो गए थे। 2015 में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री के सामने ही लगभग डेढ़ सौ लोग घायल हुए थे। तय किया गया कि 2017 में ये त्योहार पत्थर के बदले फूल से खेला जाएगा और 2018 तक खेला भी गया पर वर्ष 2019 में फिर से पत्थर का ही इस्तेमाल हुआ और 120 लोग घायल हुए। इस खूनी लड़ाई के अलवा यहाँ बकरों की भी बलि दी जाती है और साथ साथ में एतिहासिक मेला भी लगता है।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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