दन्तकथा:
माँ कोसी देवी भगवान शिव की बेटी थी। एक बार एक असुर उनकी सुंदरता के प्रति इतना आकर्षित हुआ कि माँ कोसी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। माता कोसी ने असुर से विवाह करने के लिए एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार असुर को कोसी नदी के प्रवाह को एक ही रात में गंगा में मिलने से रोकना था और असुर अगर ऐसा नहीं कर पाया तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।
शाम होते ही असुर कोसी नदी पर विशाल नदी तटबंध बनाना प्रारम्भ कर दिया। असुर द्वारा बांध इतना तेज़ी से बनाया जा रहा था कि उसे देखकर माता कोसी दर गई कि कहीं वास्तव में उन्हें वचन के अनुसार असुर के साथ विवाह न करना पड़ जाए। डरी और घबराई माता कोसी अपने पिता भगवान शिव के पास पहुँचे और उनसे किसी भी तरह असुर को नदी तटबंध पूरा करने से रोकने का आग्रह किया।
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भगवान शिव जब असुर द्वारा बनाए जा रहे नदी तटबंध को देखने पहुँचे तो तटबंध का निर्माण अपने आख़री चरण में थे। भगवान शिव ने झट से मुर्ग़े का रूप धारण किया और बाँग मारने लगे। उधर तेज़ी से नदी तटबंध बनाने में लगा असुर मुर्ग़े की बाँग सुनकर डर गया कि अगर वो सुबह होने से पहले तटबंध नहीं बना पाया तो उसे अपनी जान देनी पड़ेगी। अपनी मृत्यु के डर से असुर तटबंध निर्माण को अधूरा छोड़कर भाग गया। इस तरह भगवान शिव ने अपनी बेटी कोसी का विवाह उस असुर से होने से बचा लिया लेकिन उस असुर की वीरता और प्रयत्न को देखते हुए उसका नाम वीर-असुर रख दिया।

कितना प्रभावी नदी तटबंध
यह दन्तकथा नदी तटबंध बनाकर नदी के प्रवाह को रोकने या बदलने के किसी भी पहल को असुर, राक्षसी व विनाशकारी होने की तरफ़ इशारा करता है। वर्ष 1937 में पटना में हुए एक गोष्ठी में एक ब्रिटिश इंजीनियर Bradshaw Smith के अलावा आज़ादी से पूर्व और आज़ादी के बाद कई विशेषज्ञों ने भी नदी तटबंध को विनाशकारी बताया था लेकिन उनके सुझाव को न तो ब्रिटिश सरकार ने माना और न ही आज़ाद हिंदुस्तान की केंद्र या राज्य राज्य सरकार ने। आज बिहार में तक़रीबन चार हज़ार किलोमीटर नदी तटबंध बने हुए हैं लेकिन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों और बाढ़ से होने वाली क्षति लगातार बढ़ रही है।

दर-असल यह कहानी कोसी नदी पर बारहवीं सदी में राजा लक्ष्मण द्वारा बनाई गई बांध का कथात्मक विवरण है। 1810-11 में कोसी नदी क्षेत्र में यात्रा पर आने वाले ब्रिटिश खोजी फ़्रांसिस बूकानन ने भी इस इस नदी तटबंध का ज़िक्र किया था। बुकानन के अनुसार यह नदी तटबंध दरअसल किसी राज्य या प्रांत की सीमा को बाहरी हमले से सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया था। वर्ष 1877 में इस क्षेत्र में आए एक अन्य ब्रिटिश खोजी ऑफ़िसर W W Hunter के अनुसार यह नदी तटबंध कोसी नदी के पश्चमी प्रवाह को रोकने के लिए बनाया गया था।
कोसी के परे:
वास्तविक में कोसी नदी पर इस अधूरे तटबंध का निर्माण 12वीं सदी के दौरान क्षेत्र के राजा लक्ष्मण द्वितीय ने करवाया था और इसका नाम ‘वीर बांध’ रखा था। इसी तरह वर्ष 1756 में भी बंगाल के नवाब ने गंडक नदी के ऊपर 158 किलोमीटर लम्बी नदी तटबंध का निर्माण कराया था जिसकी मरम्मत ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1797 में करवाया था।

हालाँकि ब्रिटिश ने नदी तटबंध पर जिन टूट को टूटा हुआ समझकर मरम्मत करवाया था वो असल में स्थानिये लोगों ने जानबूझकर तोड़ा था ताकि नदी तटबंध द्वारा नदी के अनियंत्रित जल प्रवाह को कुछ हद तक व्यवस्थित किया जाए। न तो ब्रिटिश सरकार ने और न ही आज़ाद हिंदुस्तान की भारत सरकार या बिहार सरकार ने स्थानिये लोगों की क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण विधा का कभी सम्मान नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि सरकार द्वारा लाख प्रयासों के बावजूद उत्तर बिहार में बाढ़ से होने वाली क्षति लगातार बढ़ती गई।
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