हमारी बपौती के आख़री एपिसोड में हम पटना के गाँजा और गंजेडियों की बात करते-करते इंग्लंड के पार्लमेंट यानी की संसद भवन तक पहुँच गए थे। इस एपिसोड में हम आपको पटना के गंजेडियों की ब्रिटेन के संसद में भ्रमण और जलवे की बात करेंगे जिसने सिर्फ़ ब्रिटेन ही नहीं बल्कि एशिया से लेकर अफ़्रीका और दक्षिण अमरीका तक की सरकारें हिला दी थी।
गाँजा में गिरावट:
ये भसड इसलिए भी अधिक मचा क्यूँकि 1870 के दशक से ही ब्रिटेन समेत अन्य यूरोपीय देशों के साथ साथ हिंदुस्तान में भी गाँजे का उत्पादन और खपत के साथ साथ गाँजे का दाम भी कम हो रहा था। गाँजा का दाम कम हो रहा था ये तो गंजेडियों के लिए अच्छी खबर थी लेकिन गाँजा का खपत कम हो रहा था ये उन्हें समझ नहीं आ रहा था। बंगाल प्रांत में साल 1879-80 में गाँजा का कुल खपत 6778 मन था जो वर्ष 1892-93 घटकर 5451 मन हो गया, यानी 13 सौ मन से भी ज़्यादा की कमी।
इसी तरह 1874 से 1883 के दौरान ब्रिटेन में गाँजे की क़ीमत में 15 प्रतिशत की गिरावट आयी थी। 8 सितम्बर 1886 को ब्रिटिश संसद में यह सवाल उठा कि आख़िर क्यूँ ब्रिटेन में गाँजे की माँग और बिक्री कम हो रही है? जवाब में यह कहा गया कि क्यूँकि ब्रिटेन में गाँजे का स्टॉक बहुत बढ़ गया था इसलिए सम्भवतः दाम घट गए हैं। लेकिन ये तो सिर्फ़ बहाना था मामला तो कुछ और था।
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19वीं सदी के उत्तरार्ध में यानी की 1850 से 1899 के दौरान, पूरी दुनियाँ में गाँजे के उत्पादन और बिक्री में कमी आयी थी। चुकी दुनियाँ में इस दौरन युद्ध कम हो गए थे इसलिए गाँजे की माँग भी कम हुई थी। उस दौर में गाँजे का इस्तेमाल सार्वधिक सेना में होता था: ज़्यादा समय तक जगे रहने के लिए या युद्ध में घायल होने पर पेन किलर के रूप में। युद्ध कम हुए तो गाँजे की ज़रूरत भी कम हुई। दूसरी तरफ़ इस दौरान एलोपैथ इलाज का पूरी दुनियाँ तेज़ी से प्रचार भी बढ़ रहा था, जिससे गाँजा-अफ़ीम का दवाई के रूप में या दवाई बनाने के लिए ज़रूरी चीज के रूप में महत्व कम हो गया था।
गाँजा बनाम दारू:
दूसरी तरफ़ यूरोप में दारू का प्रचलन बड़ा तेज़ी से फैल रहा था। यूरोप दारू बना भी धड़ल्ले से रहा था। इन दारुओं को बेचने के लिए बाज़ार चाहिए था। हिंदुस्तान तो सदियों से गाँजा-भांग का आदि था। हिंदुस्तान के गंजेडियों और भंगेडियों को दारू का चस्का चढ़ाने के लिए हिंदुस्तान में दारू का प्रचार और गाँजा-भांग के बारे में दुष्प्रचार करवाया गया। फिरंगियों द्वारा ये काम सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि एशिया और अफ़्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका के ज़्यादातर ग़ुलाम देशों में करवाया गया।
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भारत में ही गाँजा पीने वाले कई लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया। जब भारत में विश्व की पहली गाँजा आयोग का गठन किया गया तो गाँजा आयोग ने हिंदुस्तान के अलग अलग पागलखनों में ऐसे पागलों का इंटर्व्यू लिया, जिन्हें ज़्यादा गाँजा पीने के आरोप में पागल घोषित करके पागलखाने में डाल दिया गया था।
भारतीय गाँजा आयोग ने पटना के पागल खाने में भी ऐसे आठ गंजेडी पागलों का इंटर्व्यू लिया और पाया कि आठ में से पाँच पागल तो न के बराबर गाँजा पीते थे। उसमें से एक तो कभी गाँजा पिया ही नहीं था। एक सिंबा ठाकुर को गंजेडी बोलकर इसलिए पागलखाने में ठूँस दिया गया था क्यूँकि वो बहुत ज़्यादा सेक्स करता था।
आसाम में तो ऐसे गंजेडी पागलों के नाम पर जिन तेरह लोगों को पागलखाने में ठुस दिया गया था उसमें से आयोग के अनुसार एक भी पागल के पागलपन के पीछे कारण गाँजा था ही नहीं। लेकिन उन्हें गाँजा पीने के नाम पर पागलखाने में रखा गया था। (Vol १, २३८) कुछ तो ऐसे भी थे जो पागलखाने में आने के बाद पागल हुए थे।
ब्रिटिश संसद में गाँजा:
दुनियाँ और हिंदुस्तान के इस पहले गाँजा आयोग के ऊपर न सिर्फ़ हिंदुस्तान के भीतर बवाल मचा बल्कि ब्रिटेन के संसद में भी खूब हंगामा हुआ। इस रिपोर्ट के प्रति ब्रिटिश नेताओं में उत्सुकता कितनी थी इसका अंदाज़ा आप सिर्फ़ इस बात से लगा सकते है कि कई मंत्रियो ने बार बार ब्रिटिश सांसद में सवाल किए। ये रिपोर्ट कब तक पूरा होगा, कौन-कौन इस आयोग के सदस्य है , इस गाँजा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भारत में क्या फ़ैसले लिए गए या लिए जाएँगे?
ऐसे तमाम विषयों पर ब्रिटिश संसद में खूब सवाल किए गए और खूब चर्चा हुआ। 25 अप्रैल 1895 को ब्रिटिश संसद के एक सदस्य ने पूछा कि अभी तक ब्रिटेन की संसद में आयोग की रिपोर्ट नहीं पहुँची है लेकिन हिंदुस्तान के अख़बारों में इस गाँजा आयोग की रिपोर्ट के सुझावों के बारे में कैसे छप रहा है?
अप्रैल 1894 के चौथे हफ़्ते के दौरान टाइम पत्रिका में भारतीय गाँजा आयोग की इस रिपोर्ट पर 6-6 कॉलम छाप दिया गया। जबकि उस समय तक रिपोर्ट ब्रिटिश संसद के पास पहुँचा तक नहीं था। ब्रिटिश संसद में यह रिपोर्ट 14 नवम्बर 1894 में इतने हल्ले के बाद बहुँचती है जबकि हिंदुस्तान में यह रिपोर्ट 23 मार्च 1894 को ही छप चुकी होती है और अगस्त में ही Times of India, से लेकर The Pioneer और The Englishman के हाथ लग चुकी थी। और वो छाप चुके होते हैं।
गाँजा आयोग का सुझाव:
इस रिपोर्ट में आयोग ने अपने सुझाव में गाँजा के सीमित उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाने का सुझाव दिया। गाँजा आयोग ने यह भी कहा कि गाँजा पीने से कोई पागल नहीं होता है। आयोग के अलावा Patna Medical School, के नरेंद्र नाथ गुप्ता और सूरजी नारायण सिंह, जैसे कई भारतीय चिकित्सकों ने भी अपने अपने सुझाव दिए और सुझाव में यही कहा कि गाँजा से कोई हानि नहीं होती है।
ब्रिटेन के प्रख्यात मानसिक रोगी चिकित्सक वॉल्टर डिक्सन ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में 1899 में लिखे एक शोधपत्र में लिखा था कि पेय पदार्थ के रूप में लिया गया भांग-गाँजा चाय, कॉफ़ी और कोला की तरह रेफ़्रेशिंग चीज़ है जो खाने के साथ लिया जा सकता है। और इसकी न तो कोई आदत लगती है और न ही इसका कोई बुरा प्रभाव होता है।
इन सुझावों का ब्रिटिश सरकार के फ़ैसले पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। आयोग तो 1893 में बनी थी, लेकिन हिंदुस्तान में गाँजे के इस्तेमाल पर अंकुश लगाना तो ब्रिटिश सरकार ने 1870 के दशक से ही शुरू कर दिया था। Excise Act 1881 के तहत भारतीयों को अधिकतम पाँच टोला गाँजा रखने का क़ानूनी अधिकार था।
इसके पहले 1870 में दक्षिण अफ़्रीका में भारत से आए मज़दूरों द्वारा गाँजे के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। ब्रिटिश के अनुसार भारतीय मज़दूरों द्वारा गाँजे का इस्तेमाल ब्रिटिश उपनिवेशवद के लिए चैलेंज था। इसी तरह से वेस्ट इंडीज़ में भी भारत से आने वाले गाँजे की बिक्री को रोकने के लिए गाँजे के इस्तेमाल पर आंशिक प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1925 के जिनेवा कन्वेन्शन में जब भारतीय गाँजे को अफ़ीम की तरह डेंजरस और अडिक्टिव बताया गया और भारतीय गाँजा-भांग को बदनाम करने का हर सम्भव प्रयास किया गया। इस कन्वेन्शन में न तो ब्रिटिश सरकार ने और न ही भारत सरकार ने इसका कोई विरोध किया। क्यूँकि ब्रिटिश सरकार भी भारतीय गाँजा-भांग और गंजेडियों को बदनाम करना चाहती थी।
गाँजा का दमन:
हालाँकि दूसरी तरफ़ ब्रिटेन में गाँजे की बिक्री कम होने और उसके दाम घटने पर ब्रिटिश संसद में चिंता भी जतायी जा रही थी और दूसरी तरफ़ हिंदुस्तान में इनके इस्तेमाल के ग़लत प्रभाव का हवाला देकर इसके उत्पादन और बिक्री पर अधिक कर लगाया जा रहा था और हिंदुस्तान के गंजेडियों को पागलखाने में डाला जा रहा था। यानी ब्रिटेन को गंजेडियों से प्रॉब्लम नहीं थी उन्हें सिर्फ़ भारतीय गंजेडियों से दिक़्क़त थी।
गाँजा आयोग की सकारात्मक रिपोर्ट के बाद भी गाँजे और गंजेडियों के दमन की यह प्रक्रिया जारी रही। हिंदुस्तान में भी और हिंदुस्तान के बाहर अन्य ग़ुलाम देशों में भी। हिंदुस्तान पर लिखी इस रिपोर्ट के छपने और ब्रिटिश संसद तक पहुँचने और उसपर बहस होने के बाद ब्रिटिश संसद में श्रीलंका, बर्मा आदि एशिया के अन्य देशों में भी गाँजे के उपयोग के मुद्दे पर बहस होने लगी। जैसे हिंदुस्तान में भारतीय गाँजा आयोग का गठन हुआ वैसे ही इन देशों में भी गाँजा आयोग का गठन हुआ। इस दौरान श्रीलंका के साथ साथ कई ग़ुलाम देशों की सरकारों ने 1897 में गाँजे के आयात पर टैक्स दुगना कर दिया।
इस तरह जो आग पटना के गंजेडियों ने या यूँ कहें की बालूचर के गंजेडियों ने लगाया था वो आग ब्रिटिश संसद से लेकर दुनियाँ के लगभग सभी ग़ुलाम देशों तक पहुँच गई। इस आग में श्रीलंका से लेकर अफ़्रीका और वेस्ट इंडीज़ तक के गंजेडियों को झुलसना पड़ा। जिस गंगा तट पर सौ साल पहले गाँजा उगता था वही गंगा का तट से आज बिहार के अलग अलग कोने में सब्ज़ी सप्लाई होता है। आज गंगा तट का मैदान सब्ज़ी उत्पादन के लिए फ़ेमस है। सब्ज़ी उत्पादन में बिहार हिंदुस्तान का चौथा सबसे बड़ा सब्ज़ी उत्पादक राज्य है।
हालाँकि इन सब के बीच हिंदुस्तान में एक चीज़ की बिक्री और खपत दोनो बढ़ी, और वो था भांग। जिस दौरान हिंदुस्तान में इसी दौरान भांग की खपत 811 से बढ़कर 1064 हो गई। (Vol 4, caste, 1-2)

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