HomeTravellersएवरेस्ट की चढ़ाई को खेल समझने वाला एक पहाड़ी समुदाय !!

एवरेस्ट की चढ़ाई को खेल समझने वाला एक पहाड़ी समुदाय !!

पर्वतारोहण के लिए शेर्पा समुदाय के लोगों का सहयोग सिर्फ़ एवरेस्ट या हिमालय तक सीमित नहीं है बल्कि विदेशी पर्वतारोही इन्हें अपने साथ एल्प पर्वतमाला आदि पर भी पर्वतारोहण के लिए ले गए थे।

कितने कीर्तिमान

एवरेस्ट शिखर पर पहली बार पहुँचने वाले एडमंड हिलेरी को सभी जानते हैं पर उनके साथ एवरेस्ट पर पहुँचने वाले टेंज़िंग नोर्गे को शायद ही कोई जानते हैं। नोर्गे, शेर्पा समुदाय से सम्बंध रखते थे। विश्व का सर्वाधिक कम उम्र में एवरेस्ट फ़तह करने वाले 16 वर्षीय टेम्बा तशेरी, एवरेस्ट चोटी पर सर्वाधिक 21 बार सफल चढ़ाई करने वाले अपा शेर्पा, विश्व के 14 सर्वाधिक ऊँचे शिखरों पर बिना असफलता के चढ़ाई करने वाला मिग्मा और सबसे कम समय में एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले पेंबा डोरजे सभी शेर्पा ही थे। पर्वतारोहण के क्षेत्र में ऐसे कई अन्य विश्व कीर्तिमान शेर्पा समुदाय के लोगों के नाम है। 

इसे भी पढ़े: इस विश्व पर्यटन दिवस भार-वाहकों (कूली, पोर्टर, शेरपा, डोटियाल, नेपाली, बहादुर) का इतिहास ?

एवरेस्ट की पहली चढ़ाई करने वाले शेर्पा
चित्र 2: एडमंड हिलेरी के साथ एवरेस्ट शिखर की चढ़ाई करने वाले टेंज़िंग नोर्गे (स्त्रोत: विकिपीडिया)

इतिहास:

शेर्पा समुदाय के लोग पहली बार गढ़वाल 1927 में Ruttledge के नेतृत्व में आते हैं जब 1924 में एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने के प्रथम प्रयास में उनकी क्षमता का अंदाज़ा लग चुका था। पश्चिम देश के पर्वतारोहियों द्वारा शेर्पा समुदाय के लोगों को गढ़वाल लाने के कुछ कारण थे।

दरअसल वर्ष 1921 में कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पांडे, गढ़ (गढ़वाल) केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा और गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में पूरे पहाड़ में कूली-बेगार प्रथा के ख़िलाफ़ आंदोलन सफल होने के बाद कूली बेगार प्रथा को ख़त्म किया गया था। 1921 से पहले पहाड़ों में पर्वतारोहण करने आने वाले विदेशियों को सरकारी सुविधाओं के अलावा मुफ़्त में अनगिनत कूली दिए जाते थे। लेकिन अब पश्चमी पर्वतारोहियों को गढ़वाली/उत्तराखंडी पर्वतारोहण सहयोगियों को पैसे देने पड़ते थे। ऐसी स्थिति में उन्हें शेर्पा समुदाय के लोगों पर्वतारोहण क्षमता के के कारण उन्हें काम पर रखना अधिक लाभकारी लगा।

उत्तराखंड के स्थानिय पहाड़ी या भूटिया समुदाय के पर्वतारोहण सहयोगी (कूली/डोटीयाल) नंदा देवी तक चढ़ने का प्रयास भी नहीं करते थे क्यूँकि उनका मानना है कि नंदा देवी के प्रभाव के कारण कोई शिखर तक नहीं पहुँच सकता है और जो पहुँचेगा भी उसे पाप चढ़ेगा। आज भी नंदा देवी राज जात यात्रा रूपकुंड/हेमकुंड से आगे नहीं जाती है। इस समस्या से समाधान के लिए पश्चमी पर्वतारोही अपने साथ सिक्किम से शेर्पा समुदाय के लोगों को अपने साथ पर्वतारोहण के लिए लाने लगे।

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चित्र 3: वर्ष 1934 में नंदा देवी की असफल पर्वतारोहण के दौरान Shipton और Tilman तीन शेर्पा समुदाय के तीन पर्वतारोही सहायकों (Angtharkay, Pasang and Kusang) के साथ। (स्त्रोत: Nanda Devi: A Journey to the Last Sanctuary by Hugh Thomson)

शेर्पा के संग

नंदा पर्वत शिखर तक पहुँचने का असफल पर तीसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रयास वर्ष 1934 में Shipton और Tilman ने किया था। इस समस्या के समाधान के रूप में टीम अपने साथ सिक्किम से तीन शेरपा समुदाय (जनजाति) के लोगों (Angtharkay, Pasang and Kusang) को साथ में लाए पर चोटी तक नहीं पहुँच पाए। लेकिन दक्षिणी खाल (Col) के सहारे पहली बार ऋषि गंगा जार्ज के रास्ते नंदा देवी अभ्यारण्य के भीतर प्रवेश करने में सफल हो गए।

जब वर्ष 1936 में टिल्मन और शिम्पटन नंदा देवी पर सफल चढ़ाई करने वाले पहले व्यक्ति बने तब भी उनके साथ चार शेर्पा समुदाय के लोग थे। हलंकि शिखर तक पहुँचने से थोड़ी दूरी नीचे ये शेर्पा भी बीमार पड़ गए थे। आगे आने वाले समय में हिमालय पर पर्वतारोहण के लिए आने वाले सभी पर्वतारोहियों की पहली पसंद के रूप में शेर्पा समुदाय के लोग सर्वाधिक प्रचलित हुए। पश्चमी देशों में शेर्पा शब्द सभी पर्वतारोही सहायकों के लिए पर्यावाची शब्द बन गया है।

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चित्र 4: अपनी नंदा देवी पर्वत शिखर के दौरान कुछ शेर्पा समुदाय के पर्वतारोही सहायक (Pasang Phuta, Kitar, Nuri, Pasang Kikuli, Nima Tsering, Kalu) यह तस्वीर 9 अगस्त 1934 को ली गई थी। (स्त्रोत: The First Ascent of Nanda Devi by Tillman)

शेर्पा कौन?

शेर्पा मूल्यतः पूर्वी तिब्बत, नेपाल, भूटान, सिक्किम आदि हिमालय के उच्च स्थानो पर रहने वाली तिब्बती जनजाति है जो ज़्यादातर नेपाल के पूर्वी भाग में रहते हैं। ये जनजाति अपने पर्वतारोही क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। हलंकि इनकी पर्वतारोहण की क्षमता के सभी पर्वतारोही क़ायल थे लेकिन इनकी मनमर्ज़ी और आदेश नहीं सुनने की आदत से सभी परेशान भी रहते थे। पर्वतारोहण में इनकी दक्षता का कोई जोड़ नहीं था पर ये अजेय-अमर भी नहीं थे। कई पर्वतारोहण के दौरान इस समुदाय के कई लोगों का भी रास्ते में निधन हो जाता था।

यह शेर्पा समुदाय की पर्वतारोही क्षमता का ही नतीजा है कि कई विदेशी पर्वतारोही उन्हें अपने साथ मोटी तनख़्वाह वाली नौकरी पर अमेरिका और यूरोप ले गए। आज भी अकेले अमेरिका में शेर्पा समुदाय के लोगों की जनसंख्या एक लाख से भी अधिक है।

शेर्पा समुदाय
चित्र 5: र्ष 1934 में शिप्टोन और टिल्मन द्वारा नंदा पर्वत यात्रा के दौरान उनके साथ सिक्किम से आए तीन शेरपा टीम के लिए ऋषि गंगा वैली में जंगली मशरूम और बांस के कोंपलें का खाना बना रहे हैं। अक्सर शेर्पा अपने पश्चमी साहब के लिए खाना अलग बनाने के बाद स्वयं के लिए अलग खाना बनाया करते थे। (स्त्रोत: स्त्रोत: The First Ascent of Nanda Devi by Tillman)

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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