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जब ढांडक में पहाड़ियों ने गर्म लोहे से दाग दिया अंग्रेज़ी साहब का चेहरा

‘दंड किए गी’ एक तरह की गढ़वाली धमकी हुआ करती थी जो गढ़वाली माँ अपने शरारती/बदमाश बच्चों को बदमाशी करने पर दिया करती थी। पहाड़ी परम्परा ‘ढांडक’ भी एक तरह की धमकी हुआ करती थी जो गढ़वाल के किसान/मज़दूर अपने राजा को दिया करते थे राजा के कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के ख़िलाफ़ राजा को सचेत करने के लिए। 

पहाड़ का इतिहास अक्सर सिर्फ़ एक ‘ढांडक’ को याद अधिक रखता है। और वो है वर्ष 1930 में टेहरी में होने वाला तिलाड़ी का ‘ढांडक’। पर पहाड़ में छोटे-बड़े कई ‘ढांडक’ हुए हैं। या यूँ कहें की पहाड़ों में शासक और शासन व्यवस्था के प्रति रोष जताने वाले सभी विरोध की आवाज़ को पारम्परिक ‘ढांडक’ कहा जा सकता है। 

ढांडकसंख्या—1

वर्ष 1885 में टेहरी, 1904 में खुजनी पट्टी, और 1906 में गढ़वाल के ख़ास पट्टी में भी यादगार ‘ढांडक’ (आंदोलन) हो चुके थे। वर्ष 1878 में अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए जंगल क़ानून के तर्ज़ पर टेहरी के राजा ने भी अपने क्षेत्र वन संरक्षण के नाम पर स्थानिये लोगों के जंगल पर अधिकर को कम करने लगे।

इसके ख़िलाफ़ वर्ष 1885 में रवाईन क्षेत्र के किसान राजा प्रताप साह के समक्ष विरोध करने के लिए टेहरी दरबार तक यात्रा किया। लेकिन टेहरी दरबार पहुँचने पर किसानो को पता चला कि कुछ ही दिन पहले राजा का देहांत हो गया था। दुःख की इस घड़ी में किसानो ने विधवा रानी को परेशान करना उचित नहीं समझा और अपने अपने घर वापस लौट गए। 

ढांडकसंख्या—2

वर्ष 1904 में टेहरी के दक्षिण में स्थित खुजनी पट्टी के किसानो ने जंगल के चरागाह का उपयोग करने के एवज़ में जानवरों पर लगाए जाने वाले एक नए कर का विरोध किया। दूसरी तरफ़ स्थानिये वन विभाग के संरक्षक केशवानंद ममगाईं लगातार स्थानिये किसानो से बरदीयश (एक तरह का कुली-बेगारी) की माँग कर रहे थे। जब किसानो ने इस नए कर देने से इंकार किया तो वन विभाग के कर्मचारीयों ने किसानो के घर में घुसकर तोड़फोड़, लूटपाट कर लोगों को गिरफ़्तार करने का प्रयास किया।

लेकिन किसानो ने उल्टा वन विभाग के कर्मचारियों को ही पीट दिया, और इसी दौरन कुछ किसान वन विभाग के कर्मचारियों की शिकायत करने टेहरी दरबार चले गए। राजा ने मामले को ठंडा करने के लिए अपने एक मंत्री हरी सिंह को भेजा पर ग्रामीणों ने उसे भी बंधक बना लिया और स्वयं राजा से आश्वासन की माँग करने लगे। अंततः नए कर को रद्द किया गया। 

ढांडक

ढांडकसंख्या—3

वर्ष 1906 में ख़ास पट्टी में होने वाला ‘ढांडक’ वर्ष 1930 में होने वाले ‘ढांडक’ से पहले तक गढ़वाल में होने वाला सर्वाधिक प्रतिमात्मक उदाहरण था। 27 दिसम्बर 1906 को टेहरी से 14 मील दुर चंद्रबदनी जंगल के जंगल का सर्वे शुरू किया गया और संरक्षित घोषित कर दिया गया। 28 दिसम्बर की सुबह को तक़रीबन 200 ग्रामीणों ने सर्वे टीम पर हमला किया, वन-संरक्षण अधिकारी (पंडित सदानंद ग़ैरोला) को पीटा, संरक्षक का चेहरा लोहा गर्म करके दागा, उनके हथियार छिन कर तोड़ दिया और उनके टेंट और अन्य ज़रूरी समान को नष्ट कर दिया।

इसे भी पढ़ें: We Need Dhandak of Tiladi (1930) More Than Ever Before 

अगले दिन राजा ने अपने छोटे भाई को सेना के साथ ‘ढांडक’ को कुचलने के लिए भेजा। उनका सामना करने लगभग तीन हज़ार ग्रामीण इकट्ठा हो गए और राजा को फिर मायूसी मिली। अब राजा ग्रामीणों के ख़िलाफ़ मदद के लिए अंग्रेजों के पास पहुँच गए पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। 

पहाड़ के इतिहास में यह ‘ढांडक’ इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज भी पहाड़ के कई हिस्सों में स्थानिये लोग मानते थे कि यह ऐतिहासिक घटना उनके क्षेत्र में हुआ था। उदाहरण के लिए अलखनंदा नदी घाटी के लोगों का मानना है कि यह ‘ढांडक’ वर्ष 1921 में उनके क्षेत्र में हुआ था। स्थानिये लोगों का यह भी मानना रहा की यह ‘ढांडक’ अंग्रेज़ी हुकूमत और उनके वन संरक्षक Percy Wyndham के ख़िलाफ़ हुआ था।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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