HomePoliticsक्यूँ और कैसे हुआ GMVN (गढ़वाल मण्डल विकास निगम) बदहाल ?

क्यूँ और कैसे हुआ GMVN (गढ़वाल मण्डल विकास निगम) बदहाल ?

जिस GMVN की स्थापना के बाद उत्तराखंड में पर्यटन को नई उछाल मिली थी उसी GMVN की हालत आज दिन-ब-दिन बदहाल होती जा रही है। सरकारी तंत्र और नेता-नौकरशाह-ठेकेदार गठजोड़ इस बदहाली के पीछे मुख्य कारण है।

GMVN की स्थापना वर्ष 1976 में एक सरकारी वाणिज्य संस्था के रूप में हुई जिसका आज पूरे गढ़वाल क्षेत्र में लगभग 80 गेस्ट हाउस और पर्यटक बंगले हैं। इन गेस्ट हाउस में पर्यटकों के रहने, खाने से लेकर पर्यटन की अन्य सुविधाएँ (राफ़्टिंग, सकिंग, परिवहन, आदि) भी उपलब्ध है जिसके एवज़ में पर्यटकों से बाज़ार मूल्य पर राशि लिया जाता है। इसके अलावा निगम उत्तराखंड के छात्रों और बेरोज़गारों को पर्यटन के क्षेत्र में राफ़्टिंग, होटेल मैनज्मेंट आदि कई प्रकार शिक्षा और प्रशिक्षण भी देता रहा।

वर्ष 1983 में निगम ने 3,04,970 रुपए का ट्रेकिंग सम्बन्धी यंत्र-संयंत्र ख़रीदा और वर्ष 1990 आते आते उसके किराए से GMVN को होने वाली आय 2,39,190 रुपए तक पहुँच गया। इसी तरह निगम द्वारा पर्यटकों को हवाई सेवा देने के एवज़ में निगम को होने वाली आय वर्ष 1977-78 में 3,77,168 रुपए से बढ़कर वर्ष 1989-90 में 58,63,865 रुपए तक पहुँच गई। अपनी स्थापना के एक दशक के भीतर निगम की माउंटेनरिंग और ट्रेकिंग सेवा से कुल बचत (आय) वर्ष 1990 में 2,53,604 रुपए और वर्ष 2005-6 में 32,83,311 रुपए तक पहुँच गई।

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चित्र 2: ऋषिकेश के कौड़ियाल में स्थित GMVN का राफ़्टिंग प्रशिक्षण केंद्र। फ़ोटो साभार: अंकित मागर

GMVN की घटती आय:

पर अगले कुछ वर्षों में GMVN की माउंटेनरिंग और ट्रेकिंग सेवा से होने वाली आय में तेज़ी से गिरावट आइ और वर्ष 2008-09 में कुल आय कम होकर 21,19,427 रुपए तक पहुँच गई। इसी तरह बोटिंग से GMVN को होने वाली आय वर्ष 2005-06 में 3,39,650 रुपए से वर्ष 2008-09 में घटकर मात्र 2,45,950 रुपए तक सिमट गई। वहीं निगम को राफ़्टिंग सेवा से होने वाली आय इसी कालखंड के दौरन 13,46,970 से घटकर 7,23,000 रह गई।

ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में आने वाले पर्यटकों की संख्या में कमी आइ है और इस कारण GMVN को उपभोक्ता (पर्यटक) कम मिल रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से उत्तराखंड में आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों की संख्या में कई गुना इज़ाफ़ा हुआ है। वर्ष 1975 में बद्रीनाथ में कुल 1,80,000 यात्री आए थे जो वर्ष 1990 में बढ़कर 3,65,000 और वर्ष 2019 में 12,44,993 तक पहुँच गई। इसी तरह फूलों की घाटी में वर्ष 1975 के दौरान मात्र 5,830 पर्यटक आए थे जो वर्ष 1990 में बढ़कर 59,778 और वर्ष 2019 में 2,84,898 तक पहुँच गए। (स्त्रोत)

उत्तराखंड में आने वाले पर्यटकों की संख्या चाहे जितनी बढ़ी हो लेकिन GMVN के गेस्ट हाउस में रुकने वाले पर्यटकों की संख्या/अनुपात लगातार घट रही है। वर्ष 2001 में निगम के गेस्ट हाउस की कुल क्षमता का मात्र 33.33% कमरे ही पर्यटकों को सेवा दे पाई जो वर्ष 2006-07 तक आते आते घटकर मात्र 24.28% ही रह गई। आज अपनी घटती आय से परेशान GMVN अपने कार्यालय तक को किराए पर गिरवी रखने को मजबूर है।

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चित्र 3: टेहरी ज़िले के धनोल्टी में स्थित GMVN का गेस्ट हाउस। चित्र साभार: भाबनि बिस्वास

भ्रष्टाचार का नमूना:

देहरादून में राजपुर रोड पर GMVN का बहुमंज़िला कार्यालय है। वर्ष 2015 में GMVN ने RBI को अपने ऑफ़िस का 10,107.57 वर्ग फ़ीट क्षेत्र 90 रुपए प्रति वर्ग फ़िट की दर से किराए पर RBI को दिया। RBI से ली जाने वाली रक़म वर्ष 2017 में 108 रुपए प्रति वर्ग फ़िट कर दी गई। CAG की रिपोर्ट में ये बात सामने आइ कि उसी दौरान GMVN अपने ऑफ़िस का कुछ भाग स्टेट इन्फ़र्मेशन एंड पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट को मात्र 24.63 रुपए प्रति वर्ग फ़िट की दर से किराए पर दे रखा था जो कि एक प्रकार का भ्रष्टाचार है। इस भ्रष्टाचार के कारण GMVN को 1.08 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ। (स्त्रोत)

आज GMVN के गेस्ट हाउस पर्यटकों की कम और नेता, मंत्री, ऑफ़िसर, पत्रकारों और ठेकेदारों के लिए मुफ़्त सेवा में लगा रहता है। मुफ़्त सेवा उठाने वाले यही नेता और ऑफ़िसर GMVN के बढ़ते घाटे के एवज़ में इसका निजीकरण का रास्ता साफ़ करना चाहते हैं। GMVN की कहानी BSNL, ONGC, हिंदुस्तान मोटेर्स और भारतीय रेल आदि सरकारी उद्ध्यमों जैसी है जिसे सरकार पूँजीपतियों के हाथ बेचने का हर सम्भव प्रयास कर रही है।

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चित्र 4: देहरादून में राजपुर रोड पर स्थित GMVN के हेड ऑफ़िस के प्रांगण में RBI का ऑफ़िस।

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Sweety Tindde
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Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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