साल 2013 में पटना शहर में लगभग 900 दुर्गा पूजा पंडाल बनाए गए थे जो अगले साल यानी की 2014 में बढ़कर लगभग 11 सौ हो गए थे और उसके अगले साल यानी की 2015 में पटना में कुल दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या थी 1097 थी। लेकिन पिछले साल यानी की साल 2022 में पटना में दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या घटकर मात्र 529 रह गई। दो चार साल और पीछे चलते हैं। साल 2021 में पटना में दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या लगभग चार सौ थी।
साल 2020 में कोविड था इसलिए 2020 को छोड़ देते हैं। साल 2019 में पंडालों की संख्या 359 थी और साल 2018 में 324 थी और 2016 में थी 320। मतलब साफ़ है जिस पटना में दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या साल 2015 में 1097 थी वो अगले ही साल यानी की 2016 में घटकर मात्र 320 रह गई। पर आख़िर ऐसा क्या हुआ था साल 2015 और साल 2016 के बीच बिहार में कि पंडालों कि संख्या में इतनी गिरावट आ गई थी, तीन गुना से अधिक की गिरावट?
पटना में दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या कैसे घटी, क्यूँ घटी इसका जवाब तो आपको न्यूज़ हंटर्ज़ दे ही देगा लेकिन पहले ये समझ लीजिए की ये पता कैसे चलता है कि किस साल कितना पंडाल बना है पटना में या देश के किसी भी कोने में? आप या हम पूरा शहर घूम-घूमकर एक एक पंडाल की गणना तो करेंगे नहीं। तरीक़ा आसान है।
सभी पंडाल निर्माता पंडाल बनाने के लिए सरकार से पर्मिशन भी लेते हैं और बिजली विभाग से तात्कालिक बिजली के इंतेजाम के लिए आग्रह पत्र भी देते हैं। तो या तो आप ज़िला प्रशासन से सम्पर्क करके उन पूजा पंडाल के आवेदनों की संख्या पता कर सकते हैं या बिजली विभाग से पंडालों के लिए टेम्परेरी बिजली सुविधा के लिए आए आवेदनों की संख्या पता कर सकते हैं। और हमने तो सिर्फ़ पटना शहर ही नहीं पूरे पटना ज़िला के अलग अलग क्षेत्रों में कितने पंडाल बने थे उसकी भी संख्या निकाल ली।
साल 2014 में पूरे पटना ज़िला में कुल 1208 दुर्गा पूजा पंडाल बने थे, जिसमें से पटना सिटी में 515 (362+153), दानापूर में 360 (165+195) पटना सदर में 205, पालिगंज में 31, बाढ़ में 31, और मसौढ़ि में 67 दुर्गा पंडाल बने थे। इसी तरह पिछले साल पटना के कंकरबाग़ में सर्वाधिक 85 दुर्गा पूजा पंडाल बने थे, दानापूर क्षेत्र में 70, गर्दनीबाग़ और पटना सिटी में 49-49, न्यू कैपिटल में 39, खगौल में 38, डाक बंगला में 37, और पाटलिपुत्र क्षेत्र में 34 दुर्गा पूजा पंडाल बना था।
अब आते हैं उस सवाल के जवाब पर कि आख़िर पटना में पंडालों की संख्या में इतना ज़्यादा कमी क्यूँ आयी? लेकिन इस सवाल के जवाब से पहले ये सोचिए और जानिय कि साल 2015 और साल 2016 के बीच बिहार में ऐसा क्या महत्वपूर्ण हुआ था जिसके तार दुर्गा पूजा पंडालों की संख्या में आयी कमी से जोड़े जा सकते हैं। बिहार में साल 2015 और साल 2016 के बीच सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना घाटी थी साल 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव जो बिल्कुल दुर्गा पूजा के बीच में हुआ था।
दुर्गा पूजा पंडाल और चुनाव:
साल 2015 का दुर्गा पूजा 14 अक्तूबर से 23 अक्तूबर के बीच हुआ था। और बिहार विधानसभा चुनाव 12 अक्तूबर से 05 नवम्बर के बीच हुआ था। पटना में पंडालों की संख्या घटने के सवाल का जवाब इसी चुनाव में छिपा हुआ है। याद कीजिए उस चुनाव को। उस चुनाव में सभी नेता और उम्मीदवार और ख़ासकर भाजपा के नेता दुर्गा पूजा पंडाल को चुनाव प्रचार का अड्डा बना लिए थे। नीतीश कुमार से लेकर भाजपा का एक पन्ना प्रमुख तक दुर्गा पूजा पंडाल के चक्कर लगाते रहे पूरे चुनाव के दौरान।
चुनाव आयोग से उम्मीद थी कि चुनाव आयोग नेताओं को दुर्गा पूजा पंडाल का चुनावी इस्तेमाल करने से रोके लेकिन इस दिशा में चुनाव आयोग ने सिर्फ़ इतना आदेश दिया कि कोई भी राजनीतिक कार्टून या फ़ोटो पूजा पंडाल के आसपास नहीं लगाया जाएगा। मतलब नेताजी पूजा पंडाल जाकर क्या बोलेंगे इसपर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई। वैसे भी केंद्र में मोदी जी की सरकार थी, भाजपा की सरकार थी, और चुनाव आयोग का इस्तेमाल हमेशा से केंद्र सरकार ही अपने फ़ायदे के लिए करती आयी है आजतक।
दुर्गा पूजा पंडाल के ज़्यादातर आयोजक ब्राह्मण या भुमिहर जाति से होते हैं और दोनो जाति के लोग भाजपा के कोर वोटर थे तो फिर चुनाव आयोग दुर्गा पूजा के चुनावी इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए कोई विशेष प्रयास क्यूँ करती। सारे दावपेंच के बावजूद भाजपा वो चुनाव हार गई और महगठबँधन उस चुनाव को एकतरफ़ा जीत गई। महगठबँधन की सरकार में नगर विकास मंत्री बने महेश्वर हज़ारी, और अगले साल यानी कि 2016 में दुर्गा पंडाल समितियों पर गाज गिरी।
जिस पटना में साल 2015 में दुर्गा पंडालों की संख्या 1097 थी वो 2016 में घटकर मात्र 320 रह गई। महगठबँधन की सरकार ने पंडाल निर्माण समितियों या दुर्गा पूजा समितियों को अग्निशमन उपचार के नियम कड़ाई से लागू करने को बोला, जो भी दुर्गा पूजा समिति बिना सरकारी पर्मिशन के पंडाल बना रही थी उन्हें पंडाल नहीं बनाने दिया गया और इस तरह पंडालों की संख्या घट गई।
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7 अक्तूबर 2016 के टाइम्ज़ ओफ़ इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार पटना सदर के 320 पंडालों में से मात्र 36 ने अग्निशमन विभाग से NOC मतलब पर्मिशन लिया था या जिसे आप Undertaking भी बोल सकते हैं। इसी तरह से पटना सिटी में 150 और कंकडबाग में मात्र 54 पूजा समितियों ने सरकार को अंडर्टेकिंग दिया था। बिहार सरकार ने अग्निशमन उपचार के अलावा और भी कई नियम क़ानून पूजा समितियों को पढ़ाया, जैसे पंडाल कि ऊँचाई चालीस फ़िट से अधिक नहीं हो सकती है, पूजा पंडाल का गेट 12 फ़िट से कम नहीं होना चाहिए। मतलब साफ़ था पंडाल बनाने वालों पर नकेल कसा जा रहा था।
इसके बाद एक और सवाल के बारे में सोचिए। साल 2013 से 2015 के दौरान पटना में पंडालों की संख्या में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 2013 में पटना में कुल पंडालों की संख्या लगभग 900 थी जो 2015 में बढ़कर 1200 से ज़्यादा हो गई थी। और दुर्गा पूजा पंडालों या किसी भी तरह से धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करने में भाजपा माहिर भी है। तो बिहार सरकार दरअसल सम्भवतः दुर्गा पूजा पंडाल पर नकेल लगाने के बहाने भाजपा के धार्मिक प्रचार तंत्र पर नकेल कस रही थी।
दुर्गा पूजा पंडालों का राजनीतिक इस्तेमाल कोई नई चीज़ नहीं है। कल यानी की 16 अक्तूबर 2023 को देश के गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल में कलकत्ता जा रहे हैं दुर्गा पूजा पंडाल का उद्घाटन करने। मक़सद समझ लीजिए? अगले साल लोकसभा चुनाव है और बंगाल और दीदी दोनो भाजपा के टार्गेट पर हैं।

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