HomeHimalayasकब, क्यूँ और कैसे बसा चमोली का गोपेश्वर शहर ?

कब, क्यूँ और कैसे बसा चमोली का गोपेश्वर शहर ?

वर्ष 1960 में चमोली ज़िले के प्रशासनिक केंद्र के रूप में निव रखे जाने वाले गोपेश्वर शहर के बसावट व संरचना में अस्पृश्यता और भेदभाव का झलकता रूप जितना जातिवादी है उससे अधिक उपनिवेशवादी है।

24 फ़रवरी 1960 को एक स्थानिये अख़बार में एक विज्ञापन छपता है जिसमें इस खबर को सरेआम किया जाता है कि चमोली जिले का प्रशासनिक केंद्र गोपेश्वर होगा। अभी बिरही नदी पर बना दुर्मी ताल को टूटने और उससे आने वाली बाढ़ से चमोली शहर का आधा तबाह होने में 11 वर्ष बाक़ी थे। अर्थात् आम धारणा के विपरीत गोपेश्वर शहर की निव चमोली शहर के डुबने से पहले ही रखी जा चुकी थी। शहर में आम जन का यह मानना है कि गोपेश्वर शहर की निव 1971 में बिरही नदी में बाढ़ और दुर्मी ताल के टूटने से चमोली शहर की तबाही के बाद रखी गई।

वर्ष 1960 में गोपेश्वर कोई शहर या क़स्बा भी नहीं बल्कि चमोली शहर से 12 किमी की दूरी पर स्थित गोपीनाथ मंदिर के दक्षिण और पूर्व में बसा एक छोटा सा गाँव मात्र था। नौवीं सदी में गोपीनाथ मंदिर के निर्माण के बाद से 1960 तक मंदिर के आस-पास का हिस्सा ग्रामीण ही रहा। धीरे-धीरे मंदिर के उत्तरी भाग में कुछ दुकानें खुली और उत्तरी हिस्से को गोपेश्वर शहर कहा जाने लगा। आज ये उत्तरी भाग इस शहर मंदिर मार्ग के नाम से भी प्रचलित है जो आज भी गोपेश्वर शहर का मुख्य बाज़ार भी है।

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चित्र 2: गोपेश्वर शहर के मध्य में स्थित गोपीनाथ मंदिर जहाँ सर्दी मौसम के दौरान रुद्रनाथ भगवान का निवास होता हाई। (चित्र: आत्मानंद)

गोपेश्वर: ग़ुलामी का प्रतीक

जब इस शहर को जिले का प्रशासनिक केंद्र के रूप में 1960 के दशक में विकसित किया जाने लगा तो शहर को दो भागों में विभाजित किया गया: पेट्रोल पम्प से ऊपर का हिस्सा और पेट्रोल पम्प से नीचे का हिस्सा। पेट्रोल पम्प से ऊपर के हिस्से में सरकारी अधिकारी को बसाया गया और नीचे के हिस्से को आम जनता और आम कर्मचारियों के लिए छोड़ दिया गया। ये बसावट बिल्कुल वैसी ही थी जैसी अंग्रेजों के जमाने में बसाए गए किसी शहर या हिल स्टेशन की हुआ करती थी जिसमें ऊँचा शहर अंग्रेजों के लिए और नीचा शहर भारतीयों के लिए हुआ करती थी।

गोपेश्वर शहर का वो ऊपरी हिस्सा जो 1960 के बाद अधिकारियों और कार्यालयों के लिए तैयार किया गया उसे कुंड क्षेत्र बोलते हैं। पेट्रोल पम्प से ऊपर का हिस्सा ऊँचा शहर (कुंड) था और पेट्रोल पम्प से नीचे का हिस्सा नीचा शहर। लोगों का मानना था कि कुंड क्षेत्र में पहले एक झील हुआ करती थी। ऊँचा शहर सरकारी था और नीचा शहर ग़ैर-सरकारी। आज भी जिला न्यायालय, DM कोठी, SP कोठी समेत अन्य आला-अधिकारियों का निवास इसी कुंड क्षेत्र में है।

DM की कोठी से नंदा पर्वत का विहंगम दृश्य दिखता है और SP कोठी से पुरा शहर। SP कोठी किसी जेल के उस टावर जैसा लगता है जहाँ से गोपेश्वर शहर के सभी क़ैदियों (निवासियों) पर नज़र रखा जा सके।

उपनिवेशिक (ब्रिटिश) शासन के दौरन गोरे अधिकारियों के कार्यालय और निवास उक्त शहर के सर्वाधिक ऊँचे स्थान पर बनाया जाता था जिसके पीछे मुख्यतः दो कारण हुआ करते थे। पहला कारण था अंग्रेज़ी सरकार द्वारा जनता पर प्रशासनिक रूप से कड़ी नज़र रखना जो किसी ऊँचे स्थान से रखना ज़्यादा सुलभ होता था।

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चित्र 3: कुंड अर्थात् ऊँचा/ऊपरी गोपेश्वर से नीचा गोपेश्वर (जो कभी गोपेश्वर गाँव हुआ करता था और आम जन का निवास)

भेदभाव का प्रतीक

अधिकारियों का कार्यालय और निवास शहर के ऊपरी भाग पर रहने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण था गोरे द्वारा रंग-भेद की नीती जिसके तहत उनका मानना होता था कि भारतीय मूल के लोग साफ़-सफ़ाई से नहीं रहते हैं इसलिए उन्हें शहर के निचले भाग में रखा जाय ताकी उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए पानी व अन्य कचड़े ऊपर रह रहे गोरे लोगों तक नहीं पहुँच पाए। शहरों के बसावट में अस्पृश्यता और भेदभाव का यह रूप जितना जातिवादी है उससे अधिक उपनिवेशवादी है।

वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार बनती है उससे पहले ही दलित और पिछड़ों का सत्ता में भागेदारी बढ़ चुकी होती है। वर्ष 1995 में ही गोपेश्वर शहर के विकास के लिए ‘चमोली-गोपेश्वर महायोजना प्रारूप (1995-2016)’ तैयार किया जाता है। इस बार शहर के निचले क्षेत्र पर ध्यान दिया गया। कालेज, अस्पताल, खेल-मैदान, वनस्पति केंद्र आदी सभी का निर्माण शहर के निचले भाग में किया गया। सीमित ही सही पर यह प्रतिरोध था सैकड़ों वर्ष के उपनिवेशवादी व जातिवादी नगरी बसावट के प्रारूप के ख़िलाफ़।

गोपेश्वर
चित्र 4: निचले गोपेश्वर (गोपेश्वर गाँव) से दिखता गोपेश्वर। ऊपरी गोपेश्वर (कुंड) और निचले गोपश्वर के बिच दुरियाँ तय करती बिना बसावट की हरी पेड़ों और घास की पट्टी। (चित्र: धीरज)

चमोली जिला

चमोली उत्तराखंड राज्य का एक सीमांत ज़िला है जिसकी सीमाएँ चीन के साथ है। वर्ष 1960 में चमोली को पौड़ी गढ़वाल ज़िले से अलग करके पृथक ज़िला बनाया गया जिसमें आज का रुद्रप्रयाग जिला भी शामिल था। आज भी दोनो ज़िले के वन विभाग का प्रशासनिक केंद्र गोपेश्वर शहर ही है।

आज भी किसी आला अधिकारी का चमोली जिले में कार्यवाह मिलना तीन P का प्रतीक माना जाता है: Promotion, Probation, और Punishment (पदोन्नति, परिवीक्षा या सजा)। गोपेश्वर में कार्यभार मिलना किसी आला अधिकारी के लिए काला पानी की सजा के बराबर हुआ करती थी। ज़्यादातर शादी-शुदा आला-अधिकारियों के परिवार देहरादून में ही रहते थे।

पहाड़ों में निम्न कहावत यूँ ही नहीं प्रचलित है,

गौं को बास कुल को नाश

“To live in the village is to ruin one’s own descendants

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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