चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला
अक्सर जब आप चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला ट्रेक पर जाते हैं तो आपको तुंगनाथ व चंद्रशिला मंदिर के अलावा अपने नीचे हिमालय की ऋंखलाओं के अलावा शायद ही कुछ और याद रहता है। पर इस क्षेत्र का इतिहास और उससे जुड़ी पौराणिक कहानियाँ भी रोचक है।
चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला ट्रेक उत्तराखंड के चमोली और रुद्रप्रयाग जिले के सीमा पर स्थित है। तुंगनाथ पंच (पाँच) केदारों में से एक और पाँच केदारों में से सर्वाधिक ऊँचे स्थान पर स्थित है। माना जाता है कि यहाँ नंदीरूपी भगवान शिव के हाथ हैं जिस तरह से केदारनाथ में उनका पुँछ, रुद्रनाथ में उनका चेहरा, मध्यमेश्वर में शरीर का बिच का हिस्सा और कल्पेश्वर में उनकी बालों चोटी विराजमान है।

इतिहास:
इतिहास के अनुसार चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला क्षेत्र को तुंगेश्वर क्षेत्र बोला जाता था जो लगभग दो वर्ग योजन क्षेत्र में फैला हुआ था। तुंगनाथ के पश्चिम में स्फ़तिकलिंग था, दक्षिण में गरुड़तीर्थ और वहाँ से आधी मिल की दूरी पर मानसरोवर तालाब था जिसमें ब्रह्मकमल भी उगता था। इस तालाब को आजकल देवरिया ताल (झील) के नाम से जानते हैं। इस तालाब के उत्तर में शिव भगवान के मरकटेश्वर रूप का एक मंदिर स्थित है जो मक्कु मठ गाँव में स्थित है। इस मंदिर के साथ इसके दक्षिण में महेश्वरी देवी का भी मंदिर है।
तुंगनाथ से तीन धाराएँ निकलती थी। इन तीन धाराएँ आगे चलकर आकाशगंगा नदी बनती थी जिसे अगस्कमानी या अरगस्कमानी भी बोला जाता था। एक मान्यता के अनुसार इन्हीं तीन धाराओं से बनकर निकली आकाशगंगा नदी को भागीरथी नदी का उद्ग़म स्त्रोत भी माना जाता था।

दंत-कहानियाँ:
इस क्षेत्र का वर्णन ‘धर्मदत्त और कर्मशर्म’ की कहनी में वर्णित है। धर्मदत्त बहुत ही धार्मिक और सज्जन पुरुष था जबकि उसका पुत्र कर्मशर्म जुआख़ोर और ग़लत प्रवृतियों वाला व्यक्ति था। दिल का दौरा पड़ने से धर्मदत्त की आकस्मिक मृत्यु हो गई और उसके बाद कर्मशर्म ने अपनी सारी पैत्रिक सम्पत्ति बेचकर बर्बाद कर दिया और चोरी-चमारी करने लगा। उसने अपनी बहन को भी ग़लत काम करने के लिए प्रेरित किया। अपनी बहन से कुछ समय के लिए तबायफ का काम करवाने के बाद कर्मशर्म ने अपनी बहन से ही विवाह कर लिया।
एक बार जंगल में जाते समय कर्मशर्म को एक बाघ ने अपना शिकार बना लिया। उसके परिवार को अंतिम संस्कार के लिए उसके शरीर का कोई अंग नहीं मिल पाया। मान्यता है कि कर्मशर्म के शरीर का एक हड्डी एक कौए ने अपनी चोंच में ले जाते समय तुंगक्षेत्र में गिरा दिया। यह क्षेत्र इतना अधिक पवित्र था कि उस हड्डी के एक टुकड़े ने कर्मशर्म की आत्मा को सीधे शिव के स्वर्ग तक पहुँचा दिया।
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पुराने रास्ते:
चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला जाने के लिए उखिमठ—गोपेश्वर सड़क भी डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है। गोपेश्वर से मंडल तक की सड़क यात्रा बहुत आसान था लेकिन उसके बाद की चढ़ाई बहुत तीखी हुआ करती थी। तुंगनाथ की चढ़ाई का रास्ता आज भले ही चोपता से शुरू होता हो पर इतिहास में तुंगनाथ या चंद्रशिला की चढ़ाई एक अन्य पुराने रास्ते से होती थी। यह पुराना रास्ता गोपेश्वर—चोपता रास्ते पर चोपता से तक़रीबन दो मील पहले दाहिने तरफ़ ऊपर की ओर चढ़ाई करती है। इस ऐतिहासिक रास्ता का अवशेष आज भी देखा जा सकता है। जंगली जानवर और स्थानिये भेड़पालक आज भी ज़्यादातर इसी पुराने रास्ते का इस्तेमाल करते हैं।

नए रास्ते:
रूट 1: ऋषिकेश/हरिद्वार/देहरादून—श्रीनगर—रुद्रप्रयाग—उखिमठ—चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला
रूट 2: ऋषिकेश/हरिद्वार/देहरादून—श्रीनगर—रुद्रप्रयाग—कर्णप्रयाग—चमोली—गोपेश्वर—मंडल—चोपता—तुंगनाथ—चंद्रशिला
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