वर्ष 2006 में जब से नेपाल में साम्यवादी सरकार बनी है तब से भारत-नेपाल सीमा पर दोनो देश के बीच तनाव बढ़ा है जिसका फ़ायदा उठाकर चीन हमेशा नेपाल के सहारे भारत-नेपाल सीमा तक अपनी पहुँच बनाने का निरंतर प्रयास कर रहा है। इस प्रयास में चीन भारत-नेपाल सीमा पर सड़कों, पुल, रेल पटरियों के साथ साथ रेडीओ स्टेशन तक का निर्माण करवा रहा है लेकिन भारत सरकार अभी भी इन संदिग्ध गतिविधियों के प्रति संजीदा नहीं हो पायी है।
भारत-नेपाल:
भारत-नेपाल की कुल सीमा 1751 किलोमीटर लंबी है जो भारत के पाँच राज्यों के बीस ज़िलों में फैला हुआ है। भारत-नेपाल सीमा का 560 किलोमीटर हिस्सा उत्तर प्रदेश, 263 किलोमीटर उत्तराखण्ड, 100 किलोमीटर पश्चिम बंगाल, 99 किलोमीटर सिक्किम और सर्वाधिक 729 किलोमीटर बिहार के साथ लगा हुआ है। लगभग इतनी ही लम्बाई नेपाल और चीन अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की है जो लगभग 1414 किमी है।
भारत-नेपाल सीमा पर खटास तब बढ़ी जब वर्ष 2015 में नेपाल ने अपने देश में एक धर्मनिरपेक्ष संविधान लागू किया। भारत सरकार के विदेश मंत्री जयशंकर ने आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा था कि “नेपाल हिंदू राष्ट्र से सेक्युलर स्टेट ना बने।” भारत के इस बयान से पहले नेपाल की विभिन्न पार्टियों के बीच संविधान को लेकर एकमत नहीं था लेकिन एस जयशंकर के बयान के बाद नेपाल की सारी राजनीतिक पार्टियाँ एकजुट हो गई थीं और संविधान को लेकर आम सहमति बन गई। नेपाल सरकार भारत द्वारा नेपाल के आंतरिक मामलों में इस तरह के बयान को नेपाल की संप्रभुता पर हमला बता रहा था।
इससे पहले 26 मई 2006 को भी बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था, ”नेपाल की मौलिक पहचान एक हिंदू राष्ट्र की है और इस पहचान को मिटने नहीं देना चाहिए. बीजेपी इस बात से ख़ुश नहीं होगी कि नेपाल अपनी मौलिक पहचान माओवादियों के दबाव में खो दे.” अतः वर्ष 2014 में हिंदुस्तान में भाजपा की सरकार बनने के बाद भारत-नेपाल सम्बन्धों के इस पक्ष को संजीदगी से समझने और निर्णय लेने की ज़रूरत थी।
वर्ष 2015 में ही जब नेपाल की तराई में बसे मधेसी समुदायों ने अपनी कुछ मांगों को न मानने के कारण भारत–नेपाल सीमा पर कई दिनों तक आवाजाही को अवरुद्ध किया था तो इसकी इसकी प्रतिक्रिया में भारत ने नाकेबंदी लगा दी थी। नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत के इस नीति का यह कहते हुए विरोध किया था कि भारत सरकार द्वारा लिए गए इस तरह के नाकाबंदी के फ़ैसले से नेपाल में मानवीय संकट खड़ा हो जाता है क्यूँकि भारत की तरफ़ से नाकेबंदी करने पर नेपाल में ज़रूरी सामानों की किल्लत हो जाती है।

चीन-नेपाल :
भारत सरकार के नेपाल सरकार के प्रति इस रवैय के कारण चीन को नेपाल के साथ अधिक मैत्रिपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का मौक़ा मिल गया। नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार के गठन के एक दिन बाद ही चीन ने विशेषज्ञों की टीम नेपाल भेजी जो नेपाल-चीन क्रॉस-बॉर्डर रेलवे लाइन निर्माण की तैयारी में जुट गया जो भारत-नेपाल के बॉर्डर लुम्बिनी तक रेलवे लाइन निर्माण कर रही है। यह रेलवे लाइन तिब्बत के ल्हासा से शुरू होकर नेपाल की राजधानी काठमांडु होते हुए लुम्बिनी पहुंचेगी। लुम्बिनी भारत-नेपाल सीमा से मात्र 41 किमी की दूरी पर स्थित है।
चीन भारत-नेपाल सीमा पर बसे सुस्ता गाँव में गंडक नदी पर पुल का निर्माण कर रहा है जबकि सुस्ता गाँव पर विवाद है। भारत और नेपाल दोनो सुस्ता गाँव को अपना हिस्सा मानता है ऐसे में चीन द्वारा इस गाँव में पुल का निर्माण प्रारम्भ करना और भारत सरकार की चुप्पी बिहार-नेपाल सीमा के प्रति भारत सरकार की निरंकुशता का उदाहरण है।
इसी तरह चीन नेपाल के वुटवल से नारायण घाट तक फ़ोरलेन का निर्माण कर रही है जो बिहार कि सीमा (वाल्मीकिनगर) से मात्र 25 किमी की दूरी पर है जिसे टू लेन सड़क द्वारा पहले ही जोड़ा जा चुका है। इसके अलावा चीन भारत-नेपाल सीमा के उत्तराखंड से लगे सीमा पर भी सड़के बनवा रहा है। उत्तराखंड के धारचूला से चीन सीमा की दूरी मात्र 80 किलोमीटर है, जहां पर हाल ही में चीन ने धारचूला लिपुलेख राजमार्ग का निर्माण किया है।
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इसी तरह काठमांडू को तातोपानी ट्रांजिट पॉइंट से जोड़ने वाले अर्निको राजमार्ग जो वर्ष 2015 में आए भूकंप के बाद से बंद था वर्ष 2019 में नेपाल के दौरे पर गए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग उसका मरम्मत करने का वादा किया। चीन ने नेपाल को वर्ष 2017 में चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में शामिल कर चुका था। नेपाल ने चीन के इन योजनाओं का स्वागत किया क्यूँकि जिस तरह से भारत सरकार भारत-नेपाल सीमा पर अक्सर नाकेबंदी लगा रही थी उससे परेशान होकर नेपाल सरकार नेपाल में आम जनता के लिए ज़रूरी वस्तुओं के सप्लाई के लिए भारत पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता था।
नेपाल पेट्रोल समेत कई दैनिक आवश्यकता की चीजों के लिए भारत पर निर्भर रहता है। आज भी नेपाल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का दो-तिहाई व्यापार भारत से होता है। चीन के साथ यह व्यापार मात्र 10 प्रतिशत होता है जो कि वर्ष 1975 तक मात्र 0.7 प्रतिशत हुआ करता था। इसके अलावा वर्ष 2020 में नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया जिसमें नेपाल ने कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख के उन इलाकों को अपने क्षेत्र में दर्शाया था, जिन्हें भारत उत्तराखंड राज्य का हिस्सा मानता है।

उदासीन भारत:
दूसरी तरफ़ भारत द्वारा नेपाल में प्रस्तावित चार समन्वयित चेक पोस्ट, 33 जिलों को जोड़ने वाली 1500 किलोमीटर सड़क और दोनों देशों के मध्य 184 किमी ब्रोडगेज़ रेलवे लाइन का निर्माण आज तक प्रारम्भ नहीं हो पाया है। भारत द्वारा नेपाल को दक्षिणी नेपाल की नदियों पर बाँध बनाने के लिए दिए गए 216 मिलियन रूपये की योजना पर भी कोई विशेष प्रगति नहीं है। भारत का नेपाल के प्रति उदासीन रवैया का बेहतरीन उदाहरण है कोसी नदी पर 1950 के दशक में निजयोजित डैम का अधूरा निर्माण जिसके कारण सर्वाधिक नुक़सान बिहार को प्रतिवर्ष बाढ़ के रूप में उठाना पड़ता है।
वर्ष 2010 में भारत सरकार ने भारत-नेपाल सीमा पर 1377 किमी लम्बी सड़क के सहारे SSB की 448 बॉर्डर आउट्पोस्ट को जोड़ने की बनाने की योजना बनाई थी जिसका 564 किमी हिस्सा बिहार-नेपाल सीमा पर थी। योजना के अनुसार यह कार्य वर्ष 2016 में ही सम्पन्न हो जाना चाहिए था लेकिन आज तक योजना का एक तिहाई हिस्सा भी पूरा नहीं हो पाया है जबकि इस दौरान योजना की समय सीमा चार बार बढ़ाई जा चुकी है। इस सम्बंध में CAG ने भी अपनी रिपोर्ट में इस योजना में हुए भ्रष्टाचार को उजागर किया है। SSB ने भी आरोप लगाया है कि इस योजना के क्रियान्वयन के दौरान उनके सुझावों को नहीं माना जा रहा है।
नेपाल में चीन:
नेपाल में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए चीन सड़कों के अलावा नदी बाँधों का इस्तेमाल कर रहा है। चीन माबजा जांगबो नदी पर नया बांध बना रहा है जहां भारत-नेपाल-चीन की सीमाएं मिलती हैं। प्रत्येक वर्ष तिब्बत से लगभग 350 अरब क्यूबिक मीटर पानी बहकर भारत आता है जिसे चीन इस तरह के बांध से अवरुद्ध कर सकता है। इससे पहले भी गलवान झड़प के बाद भी चीन ने भारत में पानी प्रवाह रोक चुका है। साल 2017 में डोकलाम झड़प के दौरान भी ऐसी रिपोर्ट आईं थी कि चीन ने भारत के साथ ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के पानी का डाटा शेयर नहीं किया था, जिसके चलते उस साल असम और उत्तर प्रदेश में बाढ़ आई थी।
चीन ने नेपाल में हुमला ज़िले के ग्रामीण लापचा लिमी क्षेत्र में 9 बिल्डिंग तैयार कर ली हैं जहां से मानसरोवर यात्रा को साफतौर पर देखा जा सकता है। चीन ने 10 जगहों पर अतिक्रमण किया है, जिसमें 33 हेक्टेयर नेपाली भूमि शामिल है। इतना ही नहीं, वो अपने क्षेत्र को बढ़ाने के लिए नदियों के प्रवाह को भी मोड़ रहा है। नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि नेपाल के कई स्कूलों के पाठ्यक्रम में चीनी भाषा (Mandarin) के कोर्स को अनिवार्य कर दिया गया है। नेपाल के कई अखबारों और रेडियो स्टेशन में चीन की तारीफ वाले कार्यक्रम प्रकाशित और प्रसारित किये जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से नेपाल में भारत के प्रति विरोध की भावना बढ़ी है जिसके लिए भारत सरकार की नेपाल नीति भी ज़िम्मेदार है। लेकिन इसके साथ साथ चीन भी नेपाल में अलग अलग माध्यमों से नेपाली जनता को भारत के प्रति भड़का रही है। इस क्रम में चीन ने नेपाल के ख़ासकर उन हिस्सों में रेडीओ स्टेशन स्थापित कर भारत के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार फैला रहा है। इस दुष्प्रचार के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत-नेपाल सीमा पर सीमापार से पत्थरबाज़ी की कई घटनाएँ सामने आयी है। अकेले नवम्बर-दिसम्बर 2022 में एक दर्जन बार भारतीय सीमा में नेपाल की तरफ़ से पत्थरबाजी की घटनाएं हुई।
आश्चर्य है कि पिछले दिनों SSB के अधिकारी भारत सरकार के रक्षा मंत्री से मिलने के बजाय बिहार के मुख्यमंत्री से मिलकर बिहार-नेपाल सीमा पर हो रहे घुसपैठ को कम करने और अमृतपाल को पकड़ने के लिए मदद माँग रहे थे।

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