मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा खूब चर्चा है कि G 20 सम्मेलन के दौरान सभी गेस्ट को Nalanda University का बैक्ड्राप फ़ोटो स्वयं मोदी जी ने खुद दिखाया और सबको नालंदा यूनिवर्सिटी के बारे में बताया भी। हालाँकि नालंदा यूनिवर्सिटी के अलावा बैक्ड्राप में और भी कई फ़ोटो थे जिसमें कोणार्क का मंदिर भी शामिल था लेकिन मीडिया में उसकी चर्चा नहीं है। दूसरी तरफ़ बिहार की मीडिया इस ओर एक कदम आगे जा रहा है और बोल रहा है कि नालंदा विश्वविद्यालय का फ़ोटो सभी देशो के प्रतिनिधियों को दिखाकर मोदी जी ने बिहार के ऊपर एहसान किया है, इसके बावजूद कि नीतीश कुमार मोदी जी का हमेशा विरोध करते रहते हैं। मोदी जी ने G 20 सम्मेलन के दौरान मेहमानों को नालंदा विश्वविद्यालय का फ़ोटो दिखाकर बिहार और ख़ासकर नीतीश कुमार के प्रति उदारता दिखाई है।
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चलिये थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि G 20 सम्मेलन के दौरान मेहमानों को नालंदा विश्वविद्यालय का फ़ोटो दिखाकर मोदी जी ने बिहार और ख़ासकर नीतीश कुमार के प्रति उदारता दिखाई है। लेकिन थोड़ी उदारता नालंदा यूनिवर्सिटी के प्रति भी दिखाते मोदी जी तो आज भारत से ज़्यादा बड़ा नालंदा विश्वविद्यालय चीन में नहीं बन पता। चीन ने 2017 में ही अपने देश के नानशन पहाड़ी पर नालंदा यूनिवर्सिटी बना लिया है।
जो चीन हमारे बिहार के नालंदा यूनिवर्सिटी को आर्थिक मदद दे रहा था वही चीन अब अपना खुद का नालंदा यूनिवर्सिटी बना चुका है। और एशिया पूर्व के बाक़ी सहयोगी देश भी नालंदा यूनिवर्सिटी को आर्थिक मदद देना बंद कर चुके हैं। छात्रों के साथ साथ लगभग सभी प्रख्यात प्रफ़ेसर नालंदा यूनिवर्सिटी छोड़ चुके हैं या छोड़ रहे हैं। नालंदा यूनिवर्सिटी का चांसलर के पद से नोवेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को हटाकर एक कम्प्यूटर साइयन्स के प्रफ़ेसर को चांसलर बना दिया जाता है, जो RSS के सदस्य भी है। राम माधव के एक ट्वीट पर इस यूनिवर्सिटी के सबसे जानेमाने प्रफ़ेसरों में से एक को नौकरी से निकाल दिया जाता है और हम उम्मीद करते हैं कि नालंदा यूनिवर्सिटी पुनः स्थापित हो जाएगा।
चीन बनाम भारत:
चीन ने अपने देश में बनाए नालंदा विश्व विद्यालय के कैम्पस का नाम भी एक भारतीय नाम रखा है। बिहार वाला नालंदा यूनिवर्सिटी का कैम्पस 455 एकड़ में फैला हुआ है जबकि चीन वाला नालंदा यूनिवर्सिटी का कैम्पस 618.8 एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ है। भारत सरकार आज 13 सालों में नालंदा यूनिवर्सिटी के कैम्पस के निर्माण का कार्य पूरा नहीं कर पाया है और वहीं दूसरी तरफ़ चीन 2017 में ही कैम्पस का काम भी पूरा कर लिया और पढ़ाई शुरू कर दिया था। भारत वाले नालंदा यूनिवर्सिटी के पहले सत्र में मात्र 14 छात्रों का नामांकन हुआ था जबकि चीन वाले नालंदा यूनिवर्सिटी के 2017 में पहले सत्र में 220 छात्रों का नामांकन हुआ था।
चीन में स्थित नालंदा विश्व विद्यालय कैम्पस का नाम है ब्रह्मा प्योर लैंड है, जो की बुद्ध धर्म के योग वशिष्ठ और बुद्ध धर्म की महायान शाखा से लिया गया है। चीन वाले नालंदा यूनिवर्सिटी में पाली, तिब्बती, और चीनी भाषा की पढ़ाई के साथ साथ बुद्धिज्म, बुद्धिस्ट कला और बुद्धिस्ट संस्कृति की भी पढ़ाई हो रही है। जबकि दूसरी तरफ़ बिहार वाले नालंदा यूनिवर्सिटी में जहां पहले अर्थशास्त्र, मैनज्मेंट और एशियाई शक्तियों के एकीकरण के साथ साथ बुद्ध धर्म से सम्बंधित विषय केंद्रित पढ़ाई होना तय हुआ था वहाँ बाद में भारत सरकार ने अंग्रेज़ी, संस्कृत और भारतीय दर्शनशास्त्र आदि विषय केंद्रित पाठ्यक्रम तैयार कर दिया जिससे एशिया पूर्व के अन्य सहयोगी देश नाराज़ हो गए और धीरे धीरे अपने आप को नालंदा विश्व विद्यालय से अलग कर लिए है।
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दूसरी तरफ़ चीन ने अपने देश में बनाए नालंदा विश्वविद्यालय में न सिर्फ़ बुद्ध कला, धर्म, संस्कृति, दर्शन, केंद्रित पाठ्यक्रम तैयार किया बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल और कम्बोडिया जैसे देशों के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थाओं के साथ नज़दीकी सम्बन्ध भी स्थापित किया है। चीन ने तो अपने यहाँ के नालंदा यूनिवर्सिटी के कुलपति के लिए किसी चीनी नागरिक को नहीं चुना, बल्कि नेपाल में लुम्बनी में स्थित मठ के भिक्षु को नालंदा यूनिवर्सिटी का कुलपति बनाया। यानी की दुनियाँ का ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी का विरासत बिहार के पास है लेकिन चीन उस विरासत को हथियाने का पूरा प्रयास कर रहा है और भारत सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी हुई है। लेकिन सवाल उठता है कि जो चीन स्वयं बिहार वाले नालंदा यूनिवर्सिटी को पुनःजीवित करने का समर्थक था, वो एकाएक अपने ही देश चीन में ही क्यूँ नालंदा यूनिवर्सिटी बना लिया? इसका जवाब है भारत सरकार की नालंदा यूनिवर्सिटी के पुनः निर्माण की तरफ़ उदासीनता की नीति में।
Nalanda University का पुनःनिर्माण
नालंदा यूनिवर्सिटी पुनः निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई 28 मार्च 2006 में जब राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आज़ाद ने नीतीश कुमार के आग्रह पर बिहार विधान सभा और बिहार विधान परिषद के joint सेशन में भाषण दिया और उस भाषण में अब्दुल कलाम ने नालंदा यूनिवर्सिटी के पुनः निर्माण के लिए भारत सरकार से आग्रह किया। इसके बाद बिहार विधान सभा और बिहार विधान परिषद दोनो ने इस प्रस्ताव को पास भी कर दिया और केंद्र सरकार को इसके निर्माण के लिए आग्रह किया जिसपर केंद्र सरकार ने सकारात्मक रुख़ भी दिखाया। उस समय नीतीश कुमार भाजपा के साथ थे और केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी।
उसी साल यानी की 2006 में जब सिंगापुर के विदेश मंत्री George Yeo ने पूर्वी एशियाई देशों के सम्मेलन के दौरान नालंदा यूनिवर्सिटी के पुनः निर्माण का सुझाव दिया तो चीन समेत सभी 18 देशों ने इस सुझाव का स्वागत किया। अगले साल हुए पूर्वी एशियाई देशों के सम्मेलन में सभी 18 देशों ने इस योजना को हरी झंडी भी दे दी, और भारत सरकार को हर सम्भव मदद करने का वादा भी किया। सिंगापुर ने यूनिवर्सिटी के लाइब्रेरी बनाने के लिए जितना भी खर्च होगा वो देने का वादा किया। इसी तरह चीन और आस्ट्रेलिया समेत सभी देशों ने आर्थिक मदद किया। लेकिन भारत में यूनिवर्सिटी के निर्माण का कार्य विलम्ब होता गया। 2010 में भारत की संसद में नालंदा यूनिवर्सिटी ऐक्ट पारित हुआ और नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई।
यूनिवर्सिटी की रूपरेखा तैयार करने के लिए नोवेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति में सुगाता बोस, मेघनाथ देसाई जैसे विद्वान समेत सभी देशों के विद्वान प्रतिनिधि इसके सदस्य थे। इस समिति में भारत सरकार द्वारा मनोनीत सिर्फ़ एक सदस्य था जो External अफ़ेर मंत्रालय के पूर्वी भाग के सेक्रेटेरी थे। यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में अमर्त्य सेन ने कार्यभार सम्भाला। इसी दौरान 2014 में नालंदा यूनिवर्सिटी का सत्र शुरू किया गया लेकिन चुकी यूनिवर्सिटी का कैम्पस तैयार नहीं हुआ था इसलिए कैम्पस के पास ही एक होटेल में सत्र प्रारम्भ हुआ। इसके बाद अगले ही साल यानी कि 2015 में अमर्त्य सेन को नालंदा यूनिवर्सिटी के चांसलर के पद से हटा दिया गया जबकि सभी देशों के प्रतिनिधि अमर्त्य सेन को दुबारा कुलपति बनाना चाहते थे।
भाजपा नेता सभ्रमण्यम स्वामी ने अमर्त्य सेन के ऊपर आरोप लगाया कि अमर्त्य सेन तनखा के रूप में पचास लाख सालाना और उसके अलावा दुनियाँ भर में भ्रमण के सारे खर्चे यूनिवर्सिटी से ही लेते थे। जब जाँच हुई तो जवाब में नालंदा विश्व विद्यालय ने खुद यह कहा था कि अमर्त्य सेन एक रुपए भी सैलरी नहीं लेते हैं। उनके आने जाने का फ़्लाइट टिकट का किराया भी यूनिवर्सिटी नहीं देती है। आज आठ साल बीत चुके हैं लेकिन न तो इस जाँच की फ़ाइनल रिपोर्ट केंद्र सरकार ने किसी को सौंपी और न ही किसी ने अमर्त्य सेन पर झूठा आरोप लगाने के लिए माफ़ी माँगी। इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बाक़ी देशों के प्रतिनिधियों ने क्यूँ धीरे धीरे नालंदा यूनिवर्सिटी के शासन प्रशासन से अपने आप को अलग कर लिया।
अमर्त्य सेन के बाद नालंदा विश्व विद्यालय के कुलपति बने सिंगापुर के विदेश मंत्री George Yeo ने भी एक वर्ष के भीतर यानी की 2016 में यह कहते हुए कुलपति के पद से त्याग दे दिया था कि विश्व विद्यालय के आंतरिक मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जा रहा है। 2016 में ही भारत सरकार ने उस समिति को भी भंग कर दिया जिसकी स्थापना यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए किया गया था और जिसमें सभी देशों के प्रतिनिधि उस समिति के सदस्य थे। इसके बाद सभी देशों ने नालंदा यूनिवर्सिटी को आर्थिक मदद देना बंद कर दिया।
अगस्त 2016 से लेकर आज तक किसी भी देश ने नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए एक रुपया भी नहीं दिया है जबकि इसके पहले सभी देश मिलकर तक़रीबन एक सौ करोड़ का मदद कर चुके थे जबकि अगस्त 2016 तक यूनिवर्सिटी का कैम्पस बनना भी शुरू नहीं हुआ था। यानी की कैम्पस बनाना शुरू होने से पहले ही नालंदा यूनिवर्सिटी को एक सौ करोड़ का मदद मिल चुका था। इसके अलावा साल 2017 में विदेशी छात्रों द्वारा कोर्स के बीच में ही यूनिवर्सिटी छोड़ने के कई मामले सामने आने लगे। कई प्रफ़ेसर ने भी यूनिवर्सिटी से नौकरी छोड़ दिया।
इसी बीच RSS के सदस्य और कम्प्यूटर साइयन्स के एक प्रफ़ेसर Vijay Pandurang Bhatkar को सरकार ने 25 जनवरी 2017 को नालंदा यूनिवर्सिटी का चांसलर बना दिया। Vijay Pandurang Bhatkar के चांसलर बनने के छह महीने के भीतर यूनिवर्सिटी में इतिहास, बुद्धिस्ट स्टडी, फ़िलासफ़ी और comparative रिलिजन की पढ़ाई बंद कर दी गई। राम माधव के एक ट्वीट के बाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाने वाला एक कोर्स “Politics of Yoga” को बंद कर दिया गया और इस कोर्स को पढ़ाने वाले प्रसिद्ध प्रफ़ेसर Patricia Sauthoff ने नौकरी छोड़ दी।
मतलब जिन विषयों की पढ़ाई के लिए नालंदा विश्व विद्यालय विख्यात था और जिन विषयों की पढ़ाई के लिए एशिया पूर्व के देशों ने मिलकर इस यूनिवर्सिटी को पुनः स्थापित करने के लिए समग्र प्रयास किया था उन्हीं विषयों की पढ़ाई को ख़त्म कर दिया गया। ऐसे में कोई भी अन्य देश अब इस यूनिवर्सिटी के पुनः निर्माण में क्यूँ रुचि लेगा?
सभी देशों के प्रतिनिधियों ने भारत सरकार पर नालंदा यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट को बर्बाद करने का आरोप लगाया है। Buddhist channel के संस्थापक Lim Kooi Fong ने भारत वाले नालंदा यूनिवर्सिटी में बुद्ध शास्त्र की पढ़ाई नहीं करवाने की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि नालंदा यूनिवर्सिटी के नाम का इस्तेमाल सिर्फ़ फंड जमा करने के लिए किया गया था।
इसी तरह सिंगापुर के विदेश मंत्री जो नालंदा यूनिवर्सिटी के दूसरे चांसलर भी थे उन्होंने भी भारत सरकार पर यही आरोप लगाते हुए एक साल के भीतर चांसलर के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था कि भारत सरकार नालंदा यूनिवर्सिटी के क्रियान्वयन में राजनीतिक हस्तक्षेप कर रही है। अमर्त्य सेन को नालंदा यूनिवर्सिटी के कुलपति के पद से सिर्फ़ इसलिए हटा दिया गया था क्यूँकि उन्होंने एक इंटर्व्यू में बोल दिया था कि अगर उन्हें भारत के चुनाव में वोट देने का अधिकार होता तो वो नरेंद्र मोदी को वोट नहीं देते। इसपर मोदी के कुछ समर्थकों ने तो अमर्त्य सेन से भारत रत्न वापस लेने तक का सुझाव दे डाला था।
असल में जब मोदी जी G 20 सम्मेलन के दौरान सभी देशों के प्रतिनिधियों को नालंदा यूनिवर्सिटी का फ़ोटो दिखा रहे थे तो यही दिखा रहे थे कि देखो ये खंडर था और खंडर ही रहेगा। लेकिन आप अपने दिमाग़ को खंडर मत बनाइए। कुछ भी मीडिया में सुनने या देखने के बाद उसका फ़ैक्ट चेक कीजिए।

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