किसानों के लिए आरक्षण:
वर्ष था 1937, अंग्रेजों के अधीन हिंदुस्तान में पहली बार राज्य सरकारों के निर्वाचन के लिए चुनाव हुए। उत्तर प्रदेश विधान सभा से कांग्रेस की तरफ़ से चुनकर आए कई विधायकों में से एक थे, चौधरी चरण सिंह। वही चरण सिंह जो आगे चलकर इंदिरा गाँधी के कांग्रेस के लिए भाषमाशूर साबित होते हैं गद्दी से हटाकर हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बनते हैं। वर्ष 1937 में जब चरण सिंह विधायक बनकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुँचते हैं और अपने अभिभाषण में एक अनोखा भाषण देते हैं:
“हिंदुस्तान के दो सौ वर्षों की ग़ुलामी के दौरान कोई वर्ग जिसने अंग्रेजों को सर्वाधिक साथ दिया है तो वो है ज़मींदारों, वकीलों, आढ़तिया (व्यापारियों), ठेकेदारों, डाक्टरों आदि का सम्पन्न वर्ग जो शहरों में निवास करता है और अंग्रेज़ीयत को जीता है। एकक वर्ग जिसने हमेशा से अंग्रेजों का सर्वाधिक विरोध और भारतीय संस्कृति का संरक्षण करता रहा, वो है ग्रामीण परिवेश में रहने वाला छोटे और मध्यम वर्ग के किसान जो देश की आबादी का तीन चौथाई से अधिक हिस्सा हैं। इस वर्ग को हिंदुस्तान प्रशासन (नौकरियों) में कम से कम 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए।”

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ये वही 1930 का दशक था जब बाबा साहेब अम्बेडकर दलितों के लिए नौकरियों व देश की राजनीति में पृथक निर्वचन प्रणाली और आरक्षण की माँग कर रहे थे। किसी राजनीतिक वर्ग या नेता ने इस उभरते नवयुवक कांग्रेसी की माँग की तरफ़ ध्यान नहीं दिया पर आल इंडिया जाट महासभा ने चौधरी चरण सिंह के इस माँग का समर्थन किया। आज़ाद हिंदुस्तान में पंडित नेहरु की अर्थिक नीतियों और किसान नीतियों का खुलकर विरोध करने वाले चरण सिंह को कांग्रेस की राजनीति में किनारे कर दिया जाता है।
किसानों की राजनीति:
लेकिन जब 1960 और 1970 के दशक में भूमि-सुधार, भू-दान आंदोलन और हरित क्रांति के साथ जे॰पी॰ आंदोलन होने लगी तो मध्य वर्ग के किसानो का देश में दवदवा बढ़ने लगा तो यकायक चरण सिंह देश के इतने महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरे कि वर्ष 1970 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं और जब 1977 में मोरारजी देशाई के नतृत्व में हिंदुस्तान में पहली बार ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनती है तो चरण सिंह देश के पहले ग़ैर-कांग्रेसी गृह मंत्री, फिर उप-प्रधानमंत्री सह वित्तमंत्रि और बाद में 1979 में प्रधानमंत्री भी बनते हैं।
1979 के वित्ततिय बजट में इन्होंने किसानों के लिए खुलकर सौग़ात बाटें। खेती में इस्तेमाल होने वाले मशीनों और ऋण पर आधे से अधिक कर कम कर दिए गए, उन्हें अलग अलग तरह की सब्सिडी दी गई, फ़सल बीमा के साथ फ़सल न्यूनतम मूल्य घोषित की गई। उनकी सरकार के प्रमुख सहयोगी के रूप में भारतीय जन संघ और ज़मींदारों व बड़े किसानों का नेतृत्व करने वाले नेताओं ने उनके किसान-ग्रामीण नीती का विरोध किया। वर्ष 1979 में ही उनकी सरकार गिर गई और कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई।
अजगर:
मतदाताओं के जिस वर्ग ने चरण सिंह को इतना बड़ा नेता बनाया उन्हें उस दौर में अजगर भी बोला जाता था। अजगर अर्थात् अहीर, जाट, गुजर, और राजपूत का समूह (अ: अहीर, ज: जाट, ग: गुजर, र: राजपूत)। इस अजगर समूह में राजपूत को छोड़कर अन्य सभी OBC से सम्बंध रखते हैं। पर आज जब कोई किसी को दम्भ या सम्मान के साथ ‘चौधरी’ शब्द से नवाजता है तो उसके तार चौधरी चरण सिंह को ही जाता है जिन्होंने कुछ समय के लिए ही पर कांग्रेस की निव हिला दी थी।
भारतीय राजनीति में यह एक नई शुरुआत थी जो आगे चलकर OBC केंद्रित भारतीय राजनीति का जनक साबित होने वाला था जिसे आगे चलकर मंडल-कमंडल की राजनीति की संज्ञा भी दी गई। इसी मंडल-कमंडल की राजनीति में बीजेपी और लालू, मुलायम जैसे पिछड़े वर्ग के नेताओं की राजनीति की जन्मभूमि छिपी हुई है और इसी मंडल-कमंडल की राजनीति में धर्म और जातिगत राजनीति की कहानी छिपी हुई है।
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